
India Russia relations: पुतिन–मोदी मुलाकात, कैसे रूस की ‘लाइफलाइन’ बना भारत?
पुतिन की दिल्ली यात्रा सिर्फ तेल और हथियारों के सौदे तक सीमित नहीं है। यह रूस की वैश्विक पहचान बचाने, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने और दोनों देशों के लिए नए भूराजनीतिक संतुलन बनाने की कवायद है।
Vladimir Putin India visit: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गुरुवार शाम नई दिल्ली पहुंचे। यह उनकी दो दिन की भारत यात्रा की शुरुआत है, जो फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद उनकी पहली भारत यात्रा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाला यह शिखर सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अमेरिका द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों के चलते रूस के तेल निर्यात पर भारी दबाव है और वैश्विक स्तर पर रूस अलग-थलग पड़ते हुए दिखाई दे रहा है। ऐसे में मॉस्को, भारत के साथ अपने रिश्तों को और गहरा करना चाहता है।
क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने भारत को रूस का ऐतिहासिक साझेदार बताया और यूक्रेन मुद्दे पर भारत की दोस्ताना नीति की सराहना की। उन्होंने कहा कि रूस, भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने पर गर्व महसूस करता है।
दौरा क्यों है अहम?
यह सिर्फ औपचारिक यात्रा नहीं, बल्कि बेहद संवेदनशील रणनीतिक बातचीत है। पुतिन को जरूरत है कि भारत रूसी तेल और हथियारों की खरीद जारी रखे और पूरी तरह अमेरिका या चीन की ओर न झुक जाए। वहीं, मोदी सरकार को जरूरत है कि रूस ऊर्जा आपूर्ति, रक्षा सौदों और बड़े भू-राजनीतिक मुद्दों पर भारत का भरोसा बनाए रखे—साथ ही अमेरिका से रिश्तों को भी संतुलित रख सके। भारत आज ऐसी स्थिति में है, जहां उसे मॉस्को और वॉशिंगटन दोनों के साथ रिश्तों को सावधानी से संभालना पड़ रहा है।
भारत–रूस तेल रिश्ते पर बढ़ता दबाव
रूस आज भी अपनी आर्थिक ताकत बरकरार रखने के लिए तेल पर निर्भर है और भारत उसके सबसे बड़े खरीदारों में शामिल है। साल 2022 से पहले भारत सिर्फ 2% रूसी तेल खरीदता था। अब यह बढ़कर 35–40% तक पहुंच गया है। लेकिन अमेरिका द्वारा रूसी कंपनियों (जैसे Rosneft और Lukoil) पर नए प्रतिबंध लगाने से भारतीय रिफाइनर घबरा गए हैं। इसके चलते तेल आयात तेजी से घटा है और दिसंबर में यह तीन साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच सकता है। अमेरिकी सांसद भारत पर आरोप लगा चुके हैं कि भारत, रूस के कच्चे तेल को प्रोसेस कर दुनिया को बेचकर उसे आर्थिक मदद दे रहा है।
मॉस्को की सिमटती वैश्विक जगह
पुतिन की यह यात्रा रूस की बदलती वैश्विक स्थिति के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण है। यूरोप ने रूसी तेल और गैस आयात में भारी कटौती की है। G7 ने रूसी जहाजों, बीमा और ऊर्जा ढांचों पर प्रतिबंध लगाए हैं। रूस के रक्षा और तेल उद्योग को जरूरी पश्चिमी तकनीक मिलना मुश्किल हो गया है। अब मॉस्को, चीन और भारत पर निर्भर है। जहां चीन, रूस को बाजार देता है। वहीं भारत उसे वैश्विक वैधता और रणनीतिक संतुलन देता है।
भारत–रूस व्यापार बना सिरदर्द
दोनों देशों के बीच व्यापार पिछले तीन साल में कई गुना बढ़कर $68.7 अरब डॉलर पहुंच चुका है। लेकिन असंतुलन बहुत बड़ा है। भारत का रूस से आयात $63.8 अरब है। जबकि, भारत का रूस को निर्यात 5 अरब से भी कम है। रूस भारत से दवाइयां, खाद्य पदार्थ, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी वस्तुएं ज्यादा खरीदना चाहता है, ताकि यह व्यापार संतुलन सुधर सके। दिक्कत यह है कि प्रतिबंधित रूसी बैंक भारत से पैसों की वापसी नहीं कर पा रहे और रुपया–रूबल लेनदेन भी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है।
सस्ता रूसी तेल: फायदे और खतरे
फायदा
* महंगाई नियंत्रित करने में मदद
* रिफाइनरी को भारी लाभ
* रुपये को सहारा
नुकसान
* रूस के साथ रिकॉर्ड व्यापार घाटा
* भुगतान अटका
* अमेरिका और यूरोपीय संघ की नाराज़गी
इसके बावजूद भारत रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करेगा—बस इसे “पुनर्गठित” करेगा। वहीं, रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर है, लेकिन उसकी हिस्सेदारी घट रही है। कभी रूस की हिस्सेदारी 70% थी, अब 36% रह गई है।
भारत अब फ्रांस, अमेरिका और घरेलू रक्षा उद्योग पर अधिक भरोसा कर रहा है। इसके बावजूद रूस बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि, T-72 टैंकों के इंजन अपग्रेड का बड़ा करार, Su-57 फाइटर पर बातचीत, S-400 की नई डिलीवरी और ब्रह्मोस और AK-203 जैसे संयुक्त प्रोजेक्ट चल रहे हैं. नया RELOS समझौता भारत और रूस को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों के उपयोग की सुविधा देगा। भारत ऐसा समझौता अमेरिका, जापान, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के साथ पहले ही कर चुका है।
अमेरिका–भारत तनाव और ट्रंप फैक्टर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 50% तक के नए टैरिफ लगाए और कारणों में भारत का रूसी तेल खरीदना भी शामिल था। वॉशिंगटन का दावा है कि भारत का यह रुख "अमेरिका की सुरक्षा के खिलाफ" है। भारत को अमेरिका से बातचीत भी जारी रखनी है और रूस से रिश्ते भी नहीं बिगाड़ने।
भारत की मुख्य मांगें
* रूस भारत से ज्यादा सामान खरीदे
* स्थानीय मुद्रा में भुगतान व्यवस्था मजबूत हो
* तेल सप्लाई और कीमतों पर स्पष्टता
* परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट में तेजी
* रूस–चीन रिश्तों से भारत को नुकसान न हो
शिखर सम्मेलन
ये संभावित घोषणाएं हो सकती हैं।
* नए रक्षा करार
* S-400 की अपडेटेड डिलीवरी टाइमलाइन
* रुपये–रूबल भुगतान पर नया ढांचा
* BRICS आधारित भुगतान सिस्टम
* RELOS के विस्तार
* ऊर्जा और तेल समझौते

