
लोगों को मरते हुए देखा, यूएस से भारत आए शख्स ने साझा किया भयावह दर्द
यूएस से डिपोर्ट किए गए 104 भारतीयों में हरियाणा, गुजरात और पंजाब के रहने वालों की संख्या अधिक है। डिपोर्ट लोगों में से एक शख्स ने भयावह अनुभव को साझा किया है।
US Illegal Immigrants: अमेरिका में अवैध अप्रवासियों के मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की नजर टेढ़ी है। उन्होंने साफ कर दिया है कि ऐसे सभी अप्रवासी जो वैध दस्तावेज के बगैर उनके देश में हैं उन्हें बाहर जाना होगा। उस क्रम में 5 फरवरी को 104 भारतीयों को लेकर यूएस एयरफोर्स का प्लेन अमृतसर में उतरा। कुल 104 लोगों में से 13 बच्चे भी थे। ज्यादातर लोगों का नाता पंजाब, गुजरात, राजस्थान से है। लेकिन यहां हम आपको एक ऐसे शख्स की दास्तां बताएंगे जो किस तरह अमेरिका पहुंचा। अमेरिका पहुंचने के दौरान उसने क्या देखा, झेला और महसूस किया उसे सुनकर, पढ़कर आप विचलित हो जाएंगे। आम तौर पर किसी विदेशी मुल्क में जब कोई शख्स बिना किसी वैध दस्तावेज के दाखिल होता है तो उसे डंकी रूट कहते हैं।
- 104 में हरियाणा-गुजरात से 33-33 लोग
- पंजाब से 30
- महाराष्ट्र और यूपी से 3-3
- चंडीगढ़ से दो लोग
- 19 महिलाएं, 13 नाबालिग जिनमें चार साल का बच्चा
- दो लड़कियां पांच और सात साल की
'भयावह अनुभव'
जसपाल सिंह उन 104 लोगों में से एक हैं जिन्हें यूएस ने डिपोर्ट किया है। जसपाल सिंह के मुताबिक उनके हाथों और पैरों को बांध कर रखा गया था। हथकड़ी से आजादी उन्हें तब मिली जब वो यूएस एयरफोर्स की प्लेन से बाहर निकले। पंजाब के रहने वालों को पुलिस की गाड़ियों के जरिए उनके गांव भेजा गया।36 साल के जसपाल, पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले हैं। वो बताते हैं कि 24 जनवरी को यूएस बॉर्डर गश्ती दल ने पकड़ा था। जसपाल कहते हैं कि उसे ट्रैवेल एजेंट ने धोखा दिया। एजेंट ने कहा था कि उसे वैध तरीके से यूएस भेजेगा। उन्होंने एजेंट से वैध वीजा के बारे में पूछा था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबित जसपाल ने कहा कि मैंने एजेंट से कहा था कि वह मुझे उचित वीजा के जरिए भेजे। लेकिन उसने मुझे धोखा दिया। उन्होंने कहा कि सौदा 30 लाख रुपये में हुआ था।जसपाल ने दावा किया कि वह पिछले साल जुलाई में हवाई जहाज से ब्राजील पहुंचा था। उसने कहा कि उससे वादा किया गया था कि अमेरिका की यात्रा का अगला चरण भी हवाई जहाज से होगा। हालांकि, उसके एजेंट ने उसे धोखा दिया, जिसने उसे अवैध रूप से सीमा पार करने के लिए मजबूर किया।
ब्राजील में छह महीने रहने के बाद, वह सीमा पार करके अमेरिका चला गया, लेकिन अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने उसे गिरफ्तार कर लिया।उसे वहां 11 दिनों तक हिरासत में रखा गया और फिर वापस घर भेज दिया गया।जसपाल ने कहा कि उसे नहीं पता था कि उसे भारत भेजा जा रहा है।
हमें लगा कि हमें दूसरे शिविर में ले जाया जा रहा है। फिर एक पुलिस अधिकारी ने हमें बताया कि उन्हें भारत ले जाया जा रहा है।हमें हथकड़ी लगाई गई और हमारे पैरों में जंजीरें बंधी थीं। उन्होंने दावा किया कि अमृतसर एयरपोर्ट पर इन्हें खोला गया।जसपाल ने कहा कि निर्वासन से वह टूट गया है। बहुत बड़ी रकम खर्च की गई। पैसे उधार लिए गए थे। इससे पहले जसपाल के चचेरे भाई जसबीर सिंह ने कहा कि हमें बुधवार सुबह मीडिया के माध्यम से उनके निर्वासन के बारे में पता चला।
निर्वासन के बारे में उन्होंने कहा कि ये सरकारों के मुद्दे हैं। जब हम काम के लिए विदेश जाते हैं, तो हमारे पास अपने परिवारों के बेहतर भविष्य के लिए बड़े सपने होते हैं। वे अब टूट गए हैं। बुधवार रात होशियारपुर में अपने गृह नगर पहुंचे दो और निर्वासितों ने भी अमेरिका पहुंचने के लिए अपने कष्टों को साझा किया।
होशियारपुर के टाहली गांव के रहने वाले हरविंदर सिंह ने कहा कि वह पिछले साल अगस्त में अमेरिका चले गए थे। उन्हें कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा, निकारागुआ और फिर मैक्सिको ले जाया गया।उन्होंने कहा कि मैक्सिको से उन्हें और अन्य लोगों को अमेरिका ले जाया गया।
हमने पहाड़ियां पार कीं। एक नाव, जो उन्हें अन्य व्यक्तियों के साथ ले जा रही थी, समुद्र में पलटने वाली थी, लेकिन हम बच गए। उन्होंने कहा कि उन्होंने पनामा के जंगल में एक व्यक्ति को मरते हुए और एक को समुद्र में डूबते हुए देखा। सिंह ने कहा कि उनके ट्रैवल एजेंट ने उनसे वादा किया था कि उन्हें पहले यूरोप और फिर मैक्सिको ले जाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि उन्होंने अमेरिका की अपनी यात्रा के लिए 42 लाख रुपये खर्च किए। उन्होंने कहा, "कभी-कभी हमें चावल मिलते थे। कभी-कभी, हमें खाने के लिए कुछ नहीं मिलता था। हमें बिस्कुट मिलते थे। पंजाब से निर्वासित एक अन्य व्यक्ति ने अमेरिका ले जाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले डंकी रूट के बारे में बताया।
रास्ते में हमारे 30,000-35,000 रुपये के कपड़े चोरी हो गए। निर्वासित व्यक्ति ने कहा कि उन्हें पहले इटली और फिर लैटिन अमेरिका ले जाया गया। उन्होंने कहा कि उन्होंने 15 घंटे लंबी नाव की सवारी की और उन्हें 40-45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। हमने 17-18 पहाड़ियां पार कीं। अगर कोई फिसल जाता, तो उसके बचने की कोई संभावना नहीं होती। हमने बहुत कुछ देखा है। अगर कोई घायल हो जाता, तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता।