रेल दुर्घटना रिपोर्ट कार्ड: मोदी सरकार के दावे क्या झूठे हैं?
पिछले दशक में दुर्घटनाओं की संख्या में कमी आई है. लेकिन प्रति दुर्घटना मृत्यु की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे गंभीर सुरक्षा चिंताएं उत्पन्न हुई हैं.
Indian Railway accident report card: भारतीय रेलवे लगातार यह दावा कर रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार के एक दशक के कार्यकाल साल 2014-15 से 2023-24 (वित्त वर्ष 2014 से 2024) में सुरक्षा के मामले में उनका ट्रैक रिकॉर्ड काफी बेहतर हुआ है. वहीं, देश के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर का दुर्घटना रिपोर्ट कार्ड अभी भी अच्छा नहीं है.
8 महीनों में 29 दुर्घटना
इस साल 1 अप्रैल से 26 नवंबर के बीच दुर्घटनाओं की कुल संख्या 29 थी. यानी हर महीने औसतन कम से कम तीन. इस वित्तीय वर्ष के आठ महीनों में ही 17 लोगों की जान चली गई. यानी हर महीने करीब दो लोग और 71 अन्य घायल हुए. इस साल जून में बंगाल के रंगापानी और छतर हाट स्टेशनों के बीच एक मालगाड़ी और एक यात्री ट्रेन के बीच पीछे से टक्कर होने से 10 लोगों की मौत हो गई और 43 लोग घायल हो गए. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा कि इस घातक दुर्घटना का कारण “ट्रेन संचालन में त्रुटि” थी. इस बीच वैष्णव ने मोदी दशक के दौरान दुर्घटनाओं में “भारी गिरावट” पर जोर देना जारी रखा. एक लिखित उत्तर में उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में किए गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के परिणामस्वरूप दुर्घटनाओं की संख्या में भारी गिरावट आई है. परिणामी रेल दुर्घटनाएं 2014-15 में 135 से घटकर 2023-24 में 40 हो गई है. अप्रैल से अक्टूबर 2024 की अवधि के दौरान दुर्घटनाओं की संख्या 25 है. जबकि 2013 में इसी अवधि के दौरान 67 दुर्घटनाएं हुई थीं.
क्या दुर्घटनाएं अब अधिक घातक हो गयी हैं?
वित्त मंत्री के अनुसार, वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2024 के बीच 678 दुर्घटनाएं हुईं, 748 मौतें हुईं और 2,087 लोग घायल हुए. उन्होंने कहा कि यह पिछले दशक की तुलना में कहीं बेहतर है, जब 1,711 परिणामी रेल दुर्घटनाएं हुईं, 904 मौतें हुईं और 3,155 लोग घायल हुए. हालांकि, दुर्घटनाओं की संख्या में कमी आने के बावजूद वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2024 की अवधि में दुर्घटनाओं की संख्या के मुकाबले मौतों की संख्या का अनुपात बढ़ा है. वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 के दशक में यह अनुपात सिर्फ़ 0.52 था, जो वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 1.1 हो गया है. दूसरे शब्दों में दुर्घटनाओं की कुल संख्या में कमी के बावजूद ट्रेन दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है. वैष्णव ने कहा कि दुर्घटनाएं उपकरण विफलता, पर्यावरणीय परिस्थितियों, मानवीय भूलों और तोड़फोड़ के कारण हुईं. इसके बाद उन्होंने विभिन्न सुरक्षा उपायों पर बढ़े हुए व्यय का विस्तृत ब्यौरा दिया.
अनेक प्रश्न, स्टॉक उत्तर
उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2015-2024 के दौरान ट्रैक नवीनीकरण पर व्यय पिछले दशक की तुलना में 2.33 गुना बढ़ गया है; प्राथमिक ट्रैक नवीनीकरण पर व्यय 1.34 गुना बढ़ा है, नई पटरियों पर व्यय कम से कम दोगुना हो गया है; मानव रहित लेवल क्रॉसिंग पूरी तरह से समाप्त कर दिए गए हैं; स्टेशनों पर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग पर व्यय 3.52 गुना बढ़ा है. वित्त वर्ष 2025 के लिए सुरक्षा संबंधी गतिविधियों पर कुल बजटीय व्यय लगभग 1.09 लाख करोड़ रुपये है. रेल मंत्री संसद के दोनों सदनों में अपने मंत्रालय के सुरक्षा रिकार्ड के बारे में पूछे गए अनेक प्रश्नों का एक ही शब्दशः उत्तर दे रहे थे. शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद से राज्य सभा में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत कम से कम चार प्रश्न पूछे गए हैं: दुर्घटना पीड़ितों को दिया जाने वाला मुआवजा, दुर्घटनाओं को कम करने के लिए अपनाए जा रहे उपाय तथा दुर्घटनाओं की संख्या. हर बार मंत्री के जवाब में दुर्घटनाओं की संख्या में कमी और सुरक्षा संबंधी व्यय में वृद्धि का हवाला दिया गया है. लोकसभा में भी रेल दुर्घटनाओं से संबंधित किसी भी और सभी प्रश्नों पर संसद के विभिन्न सदस्यों द्वारा पूछे गए आठ अलग-अलग प्रश्नों के उत्तर में यही उत्तर शब्दशः दिया गया है.
भीड़भाड़ और सुरक्षा
जबकि मंत्रालय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए व्यय में पर्याप्त वृद्धि को रेखांकित करने में कठिनाई महसूस कर रहा है. विशेषज्ञों ने रेलवे नेटवर्क में भारी भीड़ को सुरक्षा प्रथाओं में ढिलाई के कारणों में से एक बताया है. रेलवे के सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता आलोक कुमार वर्मा ने इससे पहले राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय रेल योजना का हवाला देते हुए बताया था कि नेटवर्क में लगभग 10,000 किलोमीटर मुख्य मार्ग इतना भीड़भाड़ वाला है कि इसकी क्षमता का उपयोग 125 प्रतिशत है. वर्मा ने बताया कि इस तरह की भीड़भाड़ के बीच, अगर नेटवर्क में कहीं कोई सिस्टम फेलियर होता है तो बहुत सारी ट्रेनें एक साथ आ जाती हैं. जब ट्रेनें एक साथ आ जाती हैं तो इसका असर नेटवर्क पर कई 100 किलोमीटर तक महसूस किया जा सकता है और इसका असर दो-तीन दिन तक रहता है. जब तक कि परिचालन सामान्य नहीं हो जाता. इस दौरान कोई निरीक्षण या रखरखाव कार्य नहीं हो सकता, भले ही यह एक निर्धारित रखरखाव ब्लॉक हो. इसलिए भीड़भाड़ और ट्रेनों के विलंबित होने के कारण रेलवे नेटवर्क में सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है.
निजीकरण की आशंका
इस बीच विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार रेलवे (संशोधन) विधेयक 2024 लाकर रेलवे की स्वायत्तता को कम करना और उसका निजीकरण करना चाहती है. सरकार भारतीय रेलवे बोर्ड अधिनियम, 1905 को रेलवे अधिनियम, 1989 के साथ मिलाकर एक एकीकृत कानून - रेलवे (संशोधन) विधेयक, 2024 बनाने का प्रस्ताव करती है.