ISRO का बाहुबली, भारत की अंतरिक्ष ताकत में नया आयाम
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ISRO का बाहुबली, भारत की अंतरिक्ष ताकत में नया आयाम

Bahubali Rocket LVM3-M5: 1963 से लेकर 2025 तक भारत की अंतरिक्ष यात्रा ने यह साबित किया है कि यह केवल सितारों तक पहुंचने की कहानी नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय विकास, रणनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक प्रगति की कहानी है।


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ISRO Launch 2025: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सबसे भारी लॉन्च ने एक नई शुरुआत की है और भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाएं अब सिर्फ श्रीहरिकोटा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि चंद्रमा, सूर्य और उससे परे तक फैल रही हैं। 1960 के दशक की वह प्रसिद्ध तस्वीर शायद आप देख चुके होंगे, जिसमें भारतीय वैज्ञानिक एक रॉकेट का नोज़ कोन साइकिल पर ले जाते दिखाई दे रहे हैं। पहली नजर में यह तस्वीर लगभग असली से परे और पुरानी लगती है, लेकिन ध्यान से देखने पर यह एक मजबूत संदेश देती है: सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं रोका।

इस तस्वीर को 1966 में केरल के थुम्बा में प्रसिद्ध फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसन ने कैद किया था। यह सिर्फ एक पुरानी यादगार तस्वीर नहीं है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष इतिहास की धड़कन है, यह दिखाती है कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा साहस, कल्पना और दृढ़ निश्चय से शुरू हुई थी। रॉकेट कंपोनेंट पकड़ रहे व्यक्ति के रूप में माना जाता है कि वह इंस्ट्रूमेंट मेकर वेलप्पन नायर हैं, उनके पास इंजीनियर सी.आर. सत्य मौजूद हैं। यह छोटा सा दल भारत की सबसे बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों में से एक की नींव रख रहा था।

ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन के अनुसार, पहली महत्वपूर्ण उपलब्धि 21 नवंबर 1963 को आई, जब भारत ने थिरुवनंतपुरम के पास थुम्बा से अपना पहला साउंडिंग रॉकेट लॉन्च किया। उस मामूली शुरुआत से भारत ने अद्भुत प्रगति की है। उस समय भारत ने नासा का Nike Apache रॉकेट लॉन्च किया, जो 715 किलोग्राम वजन का था और 30 किलोग्राम पेलोड को 207 किलोमीटर ऊंचाई तक पहुंचा सका। वैश्विक मानकों पर यह मामूली था, लेकिन एक युवा राष्ट्र के लिए यह वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक था।

वहीं, से आज तक की यात्रा लंबी रही है। जब LVM3-M5, जिसे बाहुबली के नाम से जाना जाता है, ने रविवार शाम श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी, यह केवल एक और लॉन्च नहीं था, बल्कि भारत की शक्ति, आत्मविश्वास और प्रगति का संकेत था। 43.5 मीटर लंबा यह रॉकेट भारत का सबसे भारी संचार उपग्रह CMS-03 कक्षा में पहुंचाने में सफल रहा। 4,410 किलोग्राम वजन वाला यह उपग्रह भारत की कम्युनिकेशन नेटवर्क को मजबूत करेगा और रणनीतिक व नागरिक कनेक्टिविटी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

LVM3-M5 रॉकेट अपनी पांचवीं ऑपरेशनल उड़ान पर था, जिसमें सॉलिड स्ट्रैप-ऑन बूस्टर, लिक्विड कोर और उन्नत क्रायोजेनिक अपर स्टेज शामिल थे। इसने ISRO की विकास यात्रा का प्रतीक बनकर दिखाया कि भारत अब किसी पर निर्भर नहीं है। भारत की अंतरिक्ष सफलता की कहानी सिर्फ मिशनों तक सीमित नहीं है। 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग, Aditya-L1 मिशन, XPoSat और NISAR जैसे प्रोजेक्ट्स ने भारत की तकनीकी क्षमता और अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता को दिखाया।

भविष्य की योजनाएं

भारत की अंतरिक्ष नीति 2047 तक ‘विकसित भारत’ की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

* Gaganyaan प्रोग्राम का पहला अनक्रूड उड़ान 2025 में और 2027 में क्रूड मिशन।

* 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का पहला मॉड्यूल।

* Chandrayaan-4 और Venus Orbiter Mission 2028।

* Next Generation Launch Vehicle (NGLV) का विकास 2032 तक।

* 2040 तक चंद्रमा पर मानव मिशन।

निजी क्षेत्र की भागीदारी और आर्थिक विस्तार

2023 की Indian Space Policy और IN-SPACe ने निजी कंपनियों को लॉन्च और परीक्षण में भाग लेने का अवसर दिया। Skyroot, Agnikul, Pixxel जैसी 300+ कंपनियां अब भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सक्रिय हैं। ISRO निजी कंपनियों को मार्गदर्शन और परीक्षण सुविधा प्रदान कर रही है। सरकारी लक्ष्य 2033 तक भारत की वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 2% से बढ़ाकर 8% करना है, जिसका बाजार अनुमानित रूप से 1.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

रणनीतिक और रक्षा क्षमताएं

भारत 52 ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस) उपग्रह तैनात कर रहा है। NavIC और GSAT उपग्रह देश को सुरक्षित, सटीक और जुड़ा हुआ बनाए रखते हैं।

स्वायत्तता और वैश्विक सहयोग

2023 में भारत ने Artemis Accords में शामिल होकर चंद्रमा की खोज और अंतरिक्ष सहयोग में नई दिशा ली। Axiom-4 मिशन और BAS (Bharatiya Antariksh Station) भारत की अंतरिक्ष स्वायत्तता सुनिश्चित करेंगे।

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