
सीईसी नियुक्ति से पहले जगदीप धनखड़ बोल गए बड़ी बात, क्या है मामला?
भोपाल में एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि कार्यपालिका से जुड़े विषयों में न्यायपालिका की भूमिका पर विचार होना चाहिए।
CEC Appointment Issue: भारत की राजनीतिक व्यवस्था में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीन महत्वपूर्ण अंग हैं। मजबूत लोकतंत्र के लिए संविधान बनाने वालों ने कहा था कि यह एक दूसरे पर चेक बैलेंस की तरह काम करेंगे। इसका फायदा यह होगा कि कोई भी अंग निरंकुश नहीं होगा। लेकिन अब इस मुद्दे पर सियासत गरमा गई है। विपक्ष का कहना है कि संवैधानिक नियुक्तियों में अब मनमर्जी हो रही है। खासतौर से चुनाव आयु्क्त,सीवीसी, सीबीआई निदेशक की नियुक्तियों में विपक्ष की आवाज को न्यायपालिका की आवाज को दबाया जा रहा है। इस विषय पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि यह समझ के बाहर है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में सीजेआई की भूमिका क्यों होनी चाहिए। बता दें कि यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 18 फरवरी को मौजूदा मुख्य निर्वाचन आयुक्त रिटायर हो जाएंगे। पहली दफा नए कानून के तहत सीईसी की नियुक्ति होगी।
'संवैधानिक विरोधाभास'
भोपाल में एक कार्यक्रम में जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की वर्किंग अपनी राय रखी। वैसे तो वो सीबीआई निदेशक के मुद्दे पर बोल रहे थे। लेकिन जिस समय उनकी टिप्पणी आई वो अहम है। 18 फरवरी को मौजूदी सीईसी रिटायर होने वाले हैं और 17 फरवरी को अगले सीईसी को लेकर बैठक होने वाली है। नेशनल ज्यूडिसियल एकेडमी में धनखड़ ने कहा कि वो संवैधानिक विरोधाभास देख रहे हैं। कार्यपालिका को जो फैसले लेने हैं उसका हिस्सा न्यायपालिका को क्यों होना चाहिए। नियुक्ति गलत तरीके से हुई या किसी और विषय पर न्यायपालिका अपनी राय रख सकता है। आप खुद बताइए कि इसके पीछे कानूनी तर्क क्या हो सकता है। सही मायने में यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से मेल नहीं खाता है।
2023 में बना नया कानून
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के संबंध में 2023 में नया कानून पारित किया गया था। इस कानून में अब मुख्य न्यायधीश की भूमिका नहीं है। उन्हें पैनल से हटा दिया गया है। नई व्यवस्था में सीईसी चयन के मामले में पीएम, मंत्रिमंडल का एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष शामिल होंगे। यहां बता दें कि 19 फरवरी को इस मामले में सु्प्रीम कोर्ट में नए कानून की वैधता के खिलाफ दायर अर्जी पर सुनवाई होने वाली है। याचिका मुख्य रूप से पैनल से मुख्य न्यायधीश को पैनल से हटाए जाने से जुड़ी है।
मुख्य न्यायाधीश कभी भी मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का हिस्सा नहीं रहे। संविधान का अनुच्छेद 324 से 329 चुनाव और चुनाव आयोग और कार्यशक्तियों के बारे में है। संविधान में भी सीईसी और ईसी की नियुक्ति के बारे में कोई खास प्रक्रिया का जिक्र नहीं है। इस बात का जिक्र है कि संसद इन नियुक्तियों को लेकर कानून बना सकती है। मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और यही परंपरा चली आ रही थी कि वह सरकार की सलाह पर नियुक्तियां करेंगे।
2015 में अनूप बर्नवाल नाम के शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल लगाई। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर कि कोलेजियम जैसा सिस्टम बनाने की मांग की। पीआईएल (PIL) पर फैसला सुनाते हुए मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने आदेश दिया कि संसद सीईसी और ईसी की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर कानून बनाए। जब तक इस विषय पर कानून नहीं बनता तब तक के लिए चयन पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई शामिल रहेंगे। 2023 में ही मोदी सरकार ने सीईसी (Chief Election Commissioner) और ईसी की नियुक्ति को लेकर संसद में बिल पेश किया जो बाद में कानून बना। इस पैनल में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और पीएम की सलाह पर एक मंत्री शामिल होता है।