एग्जिट पोल- शेयर स्कैम कनेक्शन ?  जिस JPC की मांग कर रहे राहुल क्या है वो
x
राहुल गांधी, कांग्रेस नेता

एग्जिट पोल- शेयर स्कैम कनेक्शन ? जिस JPC की मांग कर रहे राहुल क्या है वो

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का कहना है कि एग्जिट पोल का शेयर स्कैम से सीधा नाता है. उन्होंने जेपीसी जांच की मांग की है. यहां हम जेपीसी के बारे में जानकारी देंगे


What is Joint Parliamentary Committee: आम चुनाव 2024 में जिस तरह से एग्जिट पोल के नतीजे धाराशायी हो गए. ठीक वैसे ही शेयर बाजार में भूचाल आ गया था. कांग्रेस के कद्दावर नेता राहुल गांधी का दावा है कि एग्जिट पोल के जरिए पहले शेयर स्कैम किया गया. कुछ चुनिंदा लोगों को फायदा हुआ और आम निवेशकों के 30 हजार करोड़ डूब गए. उन्होंने मंगलवार को इस विषय को उठाते हुए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की मांग भी की. राहुल गांधी ने कहा कि जनता के सामने सच आना ही चाहिए कि किसको फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही थी. वैसे तो देश को पता है कि किसे फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई हालांकि इस मामले में गहराई से जांच होनी चाहिए जोकि जेपीसी के जरिए ही संभव है. हालांकि राहुल गांधी के आरोप पर बीजेपी नेता पीयूष गोयल ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस के आरोपों में दम नहीं है. हकीकत में तो विदेशी निवेशकों की तुलना में भारतीय निवेशक समझदार निकले. आरोप और प्रत्यारोप के बीच संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के बारे में विस्तार से बताएंगे.

क्या है जेपीसी

जेपीसी, संसद द्वारा बनाई गई एक तदर्थ समिति होती है. इसके जरिए किसी विषय या बिल की हर एक बिंदू पर गहराई से जांच की जाती है. इस समिति में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पक्ष-विपक्ष के सदस्य चुने जाते हैं. इस समिति की अध्यक्षता लोकसभा स्पीकर द्वारा चयनित सांसद करता है. जेपीसी के सदस्य संख्या के बारे में फैसला संसद करती है और इसके लिए पहले से कोई तय संख्या नहीं है. जब समिति अपने काम को अंजाम तक पहुंचा देती है तो उसे भंग कर दिया जाता है. जेपीसी की सिफारिशें सरकार पर सलाह के रूप में होती हैं, उसे मानना या ना मानना सरकार पर निर्भर करता है. लेकिन ऐसा देखा गया है कि जेपीसी की सिफारिशों को सरकार अक्सर मान लेती है क्योंकि उसमें सत्ता पक्ष के सदस्यों की संख्या अधिक होती है. जेपीसी को यह अधिकार है कि किसी भी विषय या बिल के परीक्षण के लिए वो किसी भी शख्स, संगठन, सरकारी एजेंसी से साक्ष्य इकट्ठा कर सकती है. यहा पर हम कुछ खास मामलों के बारे में जानकारी देंगे जब जेपीसी गठित की गई थी.

  • बोफोर्स कांड (1987)
  • हर्षद मेहता स्टॉक मार्केट स्कैम(1992)
  • केतन पारेख शेयर मार्केट स्कैम(2001)
  • नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस(2016)
  • पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (2019)

जेपीसी जांच से क्या हुआ है हासिल

कांग्रेस में किसी शख्स पर बोफोर्स ‘शूट एंड स्कूट’ तोप खरीदने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगा. उसकी जांच के लिए 1987 में संयुक्त संसदीय समिति गठित की गई थी. राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और विपक्ष का सीधा आरोप था कि राजीव गांधी को रिश्वत ली थी. विपक्ष का अभियान तब और मजबूत हुआ जब वित्त मंत्री वी पी सिंह ने उनके साथ मिलकर कांग्रेस छोड़ दी. संसद में व्यवधान के बाद जब सरकार ने जेपीसी के लिए विपक्ष की मांग स्वीकार कर ली तो विपक्षी दलों ने इस आधार पर समिति का बहिष्कार कर दिया कि इसमें कांग्रेस का दबदबा है. जेपीसी रिपोर्ट संसद में रखी गई लेकिन विपक्ष ने इसे खारिज कर दिया था.

हर्षद मेहता कांड
1992 में एक और जेपीसी गठित की गई. इस दफा मामला शेयर स्कैम से जुड़ा हुआ था. आरोप था कि बिग बुल हर्षद मेहता ने सार्वजनिक क्षेत्र की मारुति उद्योग लिमिटेड (एमयूएल) से धन को अपने खातों में डायवर्ट किया था. जिससे सेंसेक्स में रिकॉर्ड 570 अंकों की गिरावट आई. अक्टूबर 1997 में ही प्रतिभूति घोटाले से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालत केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा लगाए गए 34 आरोपों पर अभियोजन को मंजूरी दे दी. सीबीआई ने कुल मिलाकर आपराधिक अपराधों से संबंधित 72 आरोप दायर किए, जबकि 600 से अधिक दीवानी मामले साथ-साथ चले. इनमें से अब तक केवल चार के मामले में दोष साबित हुआ. सितंबर 1999 में मेहता को एमयूएल को धोखा देने के लिए चार साल की सजा मिली थी.

शेयर बाजार घोटाला (2001)
अहमदाबाद स्थित सहकारी बैंक माधवपुरा मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक (एमएमसीबी) को शेयर बाजार में भारी निवेश की वजह से अपनी जमाराशि पर संकट का सामना करना पड़ा था. केतन पारेख के माध्यम से एमएमसीबी का शेयर बाजार में बड़ा निवेश था. बैंक ने केतन पारेख के साथ मिलीभगत करके पर्याप्त धन के बिना पे ऑर्डर जारी किए. केतन पारेख ने बदले में इन पैसों का इस्तेमाल शेयरों की कीमतों में हेराफेरी के लिए कियाय इस गठजोड़ पर करीब एक साल तक किसी की नजर ही नहीं गई. लेकिन जब एमसीसीबी ने अपने द्वारा जारी किए गए पे ऑर्डर का सम्मान करने में नाकाम रहा तो घोटाला सामने आया. जेपीसी का आदेश दिया गया, जिसने शेयर बाजार के नियमों में व्यापक बदलाव की सिफारिश की. बाद में कई और बदलाव सुनिश्चित हुआ.

Read More
Next Story