जस्टिस पंचोली की नियुक्ति पर विवाद, कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल
x

जस्टिस पंचोली की नियुक्ति पर विवाद, कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल

जस्टिस विपुल पंचोली की सुप्रीम कोर्ट नियुक्ति पर विवाद, महिला जजों की अनदेखी और असहमति नोट ने कॉलेजियम की पारदर्शिता व नीति पर गंभीर सवाल खड़े किए।


कैपिटल बीट के इस एपिसोड में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी. लोकर ने नीलू व्यास से बातचीत में पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपुल पंचोली को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने के फैसले और उससे जुड़ी विवादित परिस्थितियों पर अपने विचार रखे। इस फैसले की कैंपेन फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म (CJAR) ने कड़ी आलोचना की है। संगठन ने जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की असहमति दर्ज करने वाली टिप्पणी का हवाला देते हुए कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।

कॉलेजियम का 4:1 फैसला और प्रक्रिया

जब जस्टिस लोकर से पूछा गया कि असहमति नोट के बावजूद कॉलेजियम ने जस्टिस पंचोली को कैसे मंजूरी दी, तो उन्होंने कहा: "मुझे नहीं लगता कि कॉलेजियम की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी हुई है। यह 4:1 का निर्णय था, जो कि मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के तहत मान्य है। बैठक हुई, विचार-विमर्श हुआ, एक जज ने असहमति जताई। बहुमत का फैसला लागू किया जा सकता है और यही हुआ।"

क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और वरिष्ठता का प्रश्न

जस्टिस पंचोली ऑल इंडिया सीनियरिटी लिस्ट में 57वें स्थान पर हैं और वे गुजरात से तीसरे जज होंगे। इस पर जस्टिस लोकर ने कहा: क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व हमेशा बहस का मुद्दा रहा है।पहले भी ऐसे अवसर आए हैं जब दिल्ली या बॉम्बे हाईकोर्ट से एक साथ चार जज सुप्रीम कोर्ट में रहे हों।वरिष्ठता में भी पहले अपवाद रहे हैं — जस्टिस संजीव खन्ना 33वें स्थान से और जस्टिस रूमा़ पाल लगभग 58वें स्थान से सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं।क्यों कॉलेजियम ने पंचोली को चुना, इसका जवाब वही दे सकता है।

असहमति नोट की पारदर्शिता पर सवाल

जस्टिस नागरत्ना की असहमति टिप्पणी मीडिया में आंशिक रूप से लीक हुई है। इस पर जस्टिस लोकर का कहना था: "पूरा नोट सार्वजनिक होना चाहिए या बिल्कुल नहीं होना चाहिए। केवल कुछ अंश लीक करना भी अनैतिक है। यह पहली बार हुआ है, मुझे किसी और असहमति नोट का उदाहरण याद नहीं आता। अब सुप्रीम कोर्ट को तय करना होगा कि भविष्य में ऐसे मामलों से कैसे निपटा जाए।"

महिला जजों की अनदेखी

सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने यह मुद्दा उठाया कि तीन वरिष्ठ महिला जज — जस्टिस सुनीता अग्रवाल, जस्टिस रेवती मोहिटे डेरे और जस्टिस लिसा गिल — को नजरअंदाज किया गया। इस पर जस्टिस लोकर बोले: यह अच्छा संकेत नहीं है, खासकर तब जब महिला जजों की योग्यता स्पष्ट हो।जस्टिस सुनीता अग्रवाल पहले भी उपेक्षित रही हैं।पारदर्शिता के लिए कॉलेजियम को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उन्हें क्यों नजरअंदाज किया गया।

कॉलेजियम की नीति और सुधार की ज़रूरत

जस्टिस लोकर ने सुझाव दिया कि कॉलेजियम की कार्यप्रणाली के लिए एक सुसंगत और लिखित नीति होनी चाहिए।अभी मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर में उम्र और आय जैसी बुनियादी शर्तें हैं।लेकिन इसमें लैंगिक प्रतिनिधित्व, क्षेत्रीय संतुलन, लीगल एड कार्य और संभाले गए मामलों की प्रकृति जैसे मानदंड भी शामिल होने चाहिए।यह मानदंड सार्वजनिक किए जाने चाहिए ताकि चयन प्रक्रिया पर भरोसा कायम रहे।

बाहरी प्रभाव और अपॉइंटमेंट पर सवाल

यह धारणा भी है कि नियुक्तियों में बाहरी कारक असर डालते हैं। जस्टिस लोकर के अनुसार:पारदर्शिता ही समाधान है।कभी सुप्रीम कोर्ट खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट तक सार्वजनिक करता रहा है और कभी कुछ नहीं।सबसे ज़रूरी है एक स्थायी नीति, जो हर मुख्य न्यायाधीश के हिसाब से न बदले।

कॉलेजियम की विश्वसनीयता पर असर?

जस्टिस लोकर का मानना है कि:"यह मुद्दा अभूतपूर्व जरूर है, लेकिन इससे कॉलेजियम की विश्वसनीयता को नुकसान नहीं हुआ है। 4:1 का फैसला प्रक्रिया के मुताबिक है। अब ज़रूरत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट यह तय करे कि भविष्य में ऐसे मामलों को किस तरह सुलझाया जाए।"

जजों पर आरोप और नियुक्ति

मीडिया में न्यायाधीशों पर आरोपों की खबरें सामने आ रही हैं। इस पर जस्टिस लोकर ने कहा:ऐसे आरोपों को सावधानी से परखा जाना चाहिए।पहले भी जजों के खिलाफ आई चिट्ठियों और शिकायतों की जांच करवाई जाती रही है।लेकिन जब तक पूरे तथ्य सामने न आएं, केवल अटकलों से न्यायपालिका को नुकसान पहुंचता है।

जस्टिस मदन बी. लोकर का स्पष्ट मत है कि कॉलेजियम की मौजूदा कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और लिखित नीति की गंभीर आवश्यकता है। महिला जजों की अनदेखी और असहमति नोट जैसी घटनाएँ न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती हैं। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट को अब भविष्य के लिए एक ठोस और स्पष्ट व्यवस्था तय करनी होगी।

Read More
Next Story