
जस्टिस यशवंत वर्मा का विवादों में घिरा करियर, सिंभौली शुगर से लेकर अधजले नकदी तक
जस्टिस यशवंत वर्मा इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली डबल बेंच का हिस्सा थे; वे गन्ना किसानों के बकाया भुगतान से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
Justice Yashwant Verma controversy: दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा इन दिनों एक गंभीर विवाद में फंसे हुए हैं, जिसमें उनके आधिकारिक आवास से जलाए गए नकद नोटों का मामला सामने आया है. इस विवाद ने जस्टिस वर्मा के पूरे करियर की एक नई परत खोल दी है, जिसमें पहले भी कई ऐसे विवाद सामने आए हैं, जिनमें उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए थे. आइए जानते हैं इस विवाद और उनके करियर के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में...
सिंभौली शुगर से जुड़ा विवाद
जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम सिंभौली शुगर से जुड़ा हुआ है, जिसे लेकर पहले भी विवाद उठ चुके हैं. अक्टूबर 2014 में जस्टिस वर्मा को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. लेकिन उससे पहले वह सिंभौली शुगर कंपनी के कानूनी सलाहकार रहे थे. साल 2012 में वह इस कंपनी के निदेशक भी थे. इस कारण, जब 2018 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सिंभौली शुगर और इसके प्रमोटरों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया तो जस्टिस वर्मा का नाम भी आरोपी के रूप में सामने आया. इससे पहले साल 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक अन्य मामले में भी उन्हें खुद को बेंच से हटाना पड़ा था. क्योंकि याचिकाकर्ता ने उनके सिंभौली शुगर से जुड़ी पृष्ठभूमि के आधार पर आपत्ति जताई थी.
इलाहाबाद हाई कोर्ट में खुद को हटाना
यह घटना जनवरी 2016 की है, जब जस्टिस वर्मा एक डिवीजन बेंच का हिस्सा थे, जिसकी अध्यक्षता तब के इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, जज डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे. यह मामला उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के लंबित बकाए से जुड़ा था. याचिकाकर्ता ने इस मामले में जस्टिस वर्मा के बेंच में होने पर आपत्ति जताई और जस्टिस वर्मा ने खुद को मामले से हटा लिया. बेंच ने इस आवेदन को स्वीकार करते हुए यह सुनिश्चित किया कि इस मामले को किसी अन्य बेंच के सामने रखा जाए, जिसमें जस्टिस वर्मा शामिल न हों. यह घटना उनके न्यायिक दृष्टिकोण और निष्पक्षता की ओर इशारा करती है.
नोटों का मामला
अक्टूबर 2021 में जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट से दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. लेकिन 14 मार्च 2023 को एक नया विवाद सामने आया, जब उनके आधिकारिक आवास से जलाए गए नकद नोटों का भंडारण पाया गया. यह मामला एक गंभीर कानूनी और राजनीतिक प्रश्न खड़ा करता है. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की निष्पक्ष जांच का आदेश दिया है और फिलहाल जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में दोबारा ट्रांसफर कर दिया गया है. इस जांच का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि इस मामले में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे.