'कवच' होता तो रोका जा सकता था कंचनजंगा हादसा, जानें- कैसे करता है काम
पिछले एक सात में कुल सात बड़े रेल हादसे हुए हैं. रेल मंत्रालय के मुताबिक कवच के जरिए हादसों पर लगाम लगाने की दिशा में काम किया जा रहा हैय.
What is Kavach System: क्या कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे को रोका जा सकता था. ऐसा इसलिए कि जानकारी के मुताबिक मालगाड़ी के ड्राइवर ने रेड सिग्नल को तोड़ा था. अब मालगाड़ी के ड्राइवर ने जानबूझकर ऐसा किया या कोई और वजह थी. उसके बारे में पुख्ता तौर पर जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है. हालांकि रेलवे के जानकारों के मुताबिक अगर उस ट्रैक पर कवच रहा होता तो यह हादसा नहीं होता. हम यहां पर उसी कवच सिस्टम के बारे में बताएंगे कि यह कैसे काम करता है, इसका मकसद क्या है.
कवच, ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, इसे रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन RDSO की मदद से विकसित किया गया है, 2012 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया और नाम ट्रेन कोलिजन अवाएडेंस सिस्टम दिया गया था.इसका पहला ट्रायल 2016 में हुआ और फेज वाइज इसे इंस्टाल किया जा रहा है. इसका मकसद जीरों एक्सीडेंट के टारगेट को हासिल करना है. कवच के बारे में कहा जाता है कि इसके जरिए एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों के आने की सूरत में लोको पायलट्स को आगाह करेगा. अगर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आती है तो वे एक दूसरे से 500 मीटर के फासले पर रुक जाएंगी. इसके साथ ही अगर कोई लोको पायलट ट्रेन सिग्नल को ओवरशॉट करता है तो उस सेक्शन में सभी स्टेशनों को जानकारी मिल जाएगी और बचाव के उपाय किये जा सकते हैं.
कवच कैसे करता है काम
कवच में इलेक्ट्रानिक डिवाइस और सेंसर का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें रेडिया फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस को ट्रेन, रेलवे ट्रैक और रेलवे सिग्नल, और स्टेशन से एक किमी की दूरी पर इंस्टाल किया जाता है. यह सिस्टम लगातार ट्रेन के मूवमेंट को मॉनिटर करता है और कुछ असामान्य होने की सूरत में संबंधित स्टॉफ को आगाह करता है. अगर कोई लोको पायलट सिग्नल को तोड़ते हुए आगे बढ़ता है तो ट्रेन के ब्रेक अपने आप एक्टिवेट होने लगते हैं और ट्रेन रुक जाती है.
इन रूट्स पर किया जा रहा है काम
कवच के लिए अभी तीन इंडियन फर्म एचबीएल, कर्नेक्स और मेधा का चयन किया गया है. हाल ही में साउथ सेंट्रल रेलवे के लिंगमपल्ली- विकराबाद और विकराबाद- बीदर सेक्शन पर इसका सफल परीक्षण किया गया.इसके बाद दूसरे जोन में भी काम किया जा रहा है. बता दें कि भारतीय रेल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है जिसके पास 68 हजार किमी पटरियां है.