CM के तौर पर एक साल पूरा: कई परेशानियों के बीच बने ब्रांड सिद्धारमैया, जानें वजह
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के दूसरे वर्ष की शुरुआत करने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
CM Siddaramaiah: कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के दूसरे वर्ष की शुरुआत करने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जबकि, उनकी पार्टी को विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है. उनके सहयोगियों का कहना है कि सिद्धारमैया एक साल पहले राज्य की कमान संभालने के बाद से ही अपने वरिष्ठ पार्टी सहयोगियों के कड़े विरोध के बीच कठिन राह पर चल रहे हैं. लेकिन 75 वर्षीय इस बुजुर्ग नेता से कांग्रेस को मजबूत आधार देने का श्रेय कोई नहीं छीन सकता है. यही कारण है कि कांग्रेस ने उन्हें मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए सुरक्षित उम्मीदवार माना है. सिद्धारमैया को विकास और सामाजिक इंजीनियरिंग के एक बेहतरीन मिश्रण के रूप में देखा जाता है.
कांग्रेस नेता कोंडाज्जी मोहन ने कहा कि सिद्धारमैया ने अपनी सूझबूझ से हर संकट को कूटनीतिक ढंग से संभाला है और ब्रांड कांग्रेस तथा ब्रांड सिद्धारमैया बनाने में सफल रहे हैं. एक अन्य सहयोगी एचसी महादेवप्पा ने कहा कि मुख्यमंत्री को अपने सहयोगियों के साथ-साथ विपक्ष से भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे.
सिद्धारमैया को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली आक्रामक केन्द्र सरकार का भी सामना करना पड़ा है, जो यह नहीं भूले हैं कि भाजपा के लिए उनके आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद कांग्रेस कर्नाटक में सत्ता में आई थी. कांग्रेस सरकार मतदाताओं से किये गए अपने कल्याणकारी योजनाओं के वित्तीय प्रभावों को वहन करने के लिए तैयार थी, लेकिन वह पिछले वर्ष कर्नाटक में आई प्राकृतिक आपदा के लिए तैयार नहीं थी. कर्नाटक में पिछले कुछ दशकों में इतना बड़ा सूखा कभी नहीं देखा गया. इससे निपटने के लिए राज्य सरकार ने 18,171 करोड़ रुपये कीर आर्थिक सहायता मांगी थी. लेकिन केंद्र ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. कर्नाटक द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद भी केंद्र ने मात्र 3,454 करोड़ रुपये ही जारी किए. इससे सिद्धारमैया को मोदी सरकार पर पक्षपात करने और भाजपा के 25 निवर्तमान सांसदों पर कर्नाटक के हितों के लिए नहीं लड़ने का आरोप लगाने का कारण मिल गया.
ठेकेदारों के एक संगठन द्वारा लगाए गए रिश्वतखोरी के आरोपों ने पिछली भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन ठेकेदारों के नेता डी केम्पन्ना ने सिद्धारमैया पर आरोप लगाकर उन्हें शर्मिंदा कर दिया कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार जारी है. मुख्यमंत्री ने तुरंत ही ठेकेदारों को सरकार द्वारा बकाया राशि का एक हिस्सा जारी कर दिया. इसके बाद भी मुश्किलें नहीं रुकी और बेंगलुरू के प्रसिद्ध रामेश्वरम कैफे में हुए बम विस्फोट, जिसका आरोप इस्लामवादियों पर लगाया गया, तथा हुबली में एक मुस्लिम युवक द्वारा एक हिन्दू महिला की हत्या से कर्नाटक सरकार पर दबाव आया. इसके साथ ही सिद्धारमैया को अपनी पार्टी के कुछ नेताओं बसवराज रायरेड्डी, बीआर पाटिल और बीके हरिप्रसाद शामिल से भी परेशानियों का सामना करना पड़ा.
सिद्धारमैया का अपने उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के साथ प्रेम-घृणा संबंध राजनीतिक हलकों में कोई रहस्य नहीं है. लेकिन लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने एकता का दिखावा किया. लेकिन उनके कट्टर समर्थक खुलेआम अपने मतभेदों को उजागर कर रहे हैं. सहकारिता मंत्री राजन्ना ने तीन और उपमुख्यमंत्री बनाने का विचार पेश किया है. इस प्रस्ताव को सिद्धारमैया गुट द्वारा शिवकुमार को मात देने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
जब सिद्धारमैया सरकार अच्छी स्थिति में थी तो उसे कई मोर्चों पर परेशानियों का सामना करना पड़ा. राजनीतिक रूप से कांग्रेस नेताओं के बीच मतभेद, तब सामने आए, जब बीके हरिप्रसाद ने सिद्धारमैया पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया. वह चाहते थे कि दलित जी परमेश्वर को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए. जब कांग्रेस ने हरिप्रसाद को नोटिस जारी किया तो उन्हें परमेश्वर और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे का समर्थन मिला.
अब सत्तारूढ़ पार्टी में विशेषकर दलित विधायकों के बीच असंतुष्ट गतिविधियों की खबरें फिर से सामने आई हैं. दलित विधायक और नेता प्रशासन में अपने समुदायों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर बैठकें कर रहे हैं. पीडब्ल्यूडी मंत्री सतीश जरकीहोली और गृह मंत्री परमेश्वर के बीच हुई बैठकों के पीछे भी मायने निकाले जा रहे हैं. जारकीहोली और परमेश्वर दोनों ही सरकार में उच्च पदों के आकांक्षी हैं. उनकी बार-बार की मुलाकातों से पार्टी में असंतोष पनपने की अटकलें तेज हो गई हैं. हालांकि, कांग्रेस ने कथित तौर पर सिद्धारमैया और शिवकुमार से असंतुष्ट विधायकों की शिकायतों को दूर करने के लिए कदम उठाने को कहा है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस सरकार की अंतिम परीक्षा 4 जून को होगी. जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होंगे. कर्नाटक की बहुचर्चित जाति जनगणना भी एक और पेचीदा क्षेत्र रही है. सिद्धारमैया द्वारा इसे स्वीकार करने के फैसले ने राज्य में जाति युद्ध को जन्म दे दिया है. प्रभावशाली लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के नेता खास तौर पर इसके खिलाफ हैं. मुख्यमंत्री ने पहले इसे लोकसभा चुनावों तक टाल दिया. बाद में उन्होंने जनगणना रिपोर्ट को कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्णय लियाा. हालांकि, अभी भी जाति जनगणना का मुद्दा एक अनसुलझी चुनौती बना हुआ है.
REPORT BY: Muralidhara Khajane