स्वदेशी लड़ाकू इंजन की वापसी, कावेरी प्रोजेक्ट फिर चर्चा में
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कावेरी इंजन प्रोजेक्ट पर 1989 में काम शुरू हुआ। लेकिन अलग अलग वजहों से इस प्रोजेक्ट पर विराम लगा। लेकिन अब एक बार फिर उम्मीद जगी है। प्रतीकात्मक तस्वीर

स्वदेशी लड़ाकू इंजन की वापसी, कावेरी प्रोजेक्ट फिर चर्चा में

कावेरी इंजन भारत का स्वदेशी फाइटर जेट इंजन प्रोजेक्ट है, जो तकनीकी चुनौतियों और विदेशी असहयोग के कारण रुका रहा, अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद फिर चर्चा में है।


Kaveri Engine: हाल ही में जब ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर दुश्मन के ठिकानों को सफलतापूर्वक नष्ट किया और सुरक्षित लौट आए, तब पूरे देश ने महसूस किया कि इन विमानों की शक्ति और सटीकता का सबसे बड़ा स्तंभ इनका इंजन। होता है यही इंजन विमान को ध्वनि से तेज गति, ऊँचाई पर उड़ान और हवा में अद्भुत करतब करने की क्षमता देते हैं।

भारत लंबे समय से एक स्वदेशी फाइटर जेट इंजन विकसित करने की कोशिश कर रहा है, और इसी प्रयास का नाम है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट। 1980 के दशक में शुरू हुआ यह डिफेंस प्रोजेक्ट आज एक बार फिर चर्चा में है, और इसका कनेक्शन सीधे राफेल विवाद से जुड़ गया है।

कावेरी इंजन की शुरुआत

कावेरी प्रोजेक्ट की शुरुआत 1989 में हुई थी। इसका उद्देश्य था 81-83 kN थ्रस्ट क्षमता वाला एक टर्बोफैन इंजन तैयार करना है जिसे भारत के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस में इस्तेमाल किया जा सके। इस परियोजना को DRDO की प्रयोगशाला GTRE (Gas Turbine Research Establishment) द्वारा विकसित किया गया।

हालांकि यह कोई सामान्य तकनीक नहीं थी। इसके लिए भौतिकी, रसायन, धातु विज्ञान और हवा के दबाव जैसे पेचीदा विषयों में गहरी समझ और उच्च स्तरीय तकनीकी कुशलता की ज़रूरत थी।

देरी के पीछे की चुनौती

कावेरी इंजन को समय पर तैयार न कर पाने के पीछे कई बड़ी वजहें थीं:

तकनीकी बाधाएं- उन्नत एयरोथर्मल डायनामिक्स और कंट्रोल सिस्टम की सीमा।

सामग्री की कमी जैसे सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड, जिन्हें भारत को 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद पश्चिमी देशों ने देने से मना कर दिया।

वित्तीय समर्थन की कमी- सालों तक परियोजना को उचित फंड नहीं मिला।

पश्चिमी देशों की दोहरी नीति

वे भारत को केवल हथियारों का बाजार मानते हैं, तकनीक साझा करने से कतराते हैं, ताकि भारत आत्मनिर्भर न बन जाए।इन कारणों से तेजस जैसे विमानों में अमेरिकी GE F404 इंजन का उपयोग करना पड़ा।

फिर से क्यों हो रही है चर्चा?

हाल के वर्षों में भारत ने 'मेक इन इंडिया' और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह माँग और तेज़ हो गई कि भारत को अपने स्वदेशी इंजन पर और तेज़ी से काम करना चाहिए। GTRE ने हाल ही में कावेरी के ड्राई वैरिएंट की सफल टेस्टिंग की है। अब यह इंजन एक विश्वसनीय और शक्तिशाली प्रोपल्सन सिस्टम के रूप में उभर रहा है। खास बात यह है कि इसका नया पंखा डिजाइन 13-टन RPSA (Remotely Piloted Strike Aircraft) के लिए अनुकूल है जो भारत का अगली पीढ़ी का मानव रहित लड़ाकू विमान है।

रणनीतिक अहमियत और भविष्य की दिशा

भारत सरकार ने DRDO को हर साल 100 कावेरी इंजन बनाने का लक्ष्य और बजट दिया है। यह न केवल सेना के लिए, बल्कि नागरिक उड्डयन के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।भारत-चीन सीमा तनाव, क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियां और विदेशी तकनीक पर निर्भरता को कम करने की नीति ने कावेरी को एक रणनीतिक जरूरत बना दिया है।

राफेल और सोर्स कोड विवाद

भारत ने हाल ही में फ्रांस से राफेल विमान का सोर्स कोड मांगा था, ताकि इसमें स्वदेशी हथियार, जैसे अस्त्र मिसाइल, को एकीकृत किया जा सके। लेकिन फ्रांस की कंपनियों, Dassault Aviation और Safran, ने इसे साझा करने से इनकार कर दिया।सोर्स कोड किसी डिजिटल सिस्टम का मूल कोड होता है, जो विमान को यह बताता है कि उसे क्या करना है और कैसे करना है — मिसाइल कैसे छोड़ी जाए, रडार कैसे स्कैन करे, आदि। फ्रांस का इनकार इसलिए था क्योंकि यह उनका बौद्धिक संपदा अधिकार है और वे इसे गोपनीय रखना चाहते हैं।

कावेरी इंजन बनाम राफेल इंजन

यहीं पर कावेरी इंजन की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। अगर यह इंजन अपने पूर्ण थ्रस्ट लक्ष्य (90 kN) को प्राप्त कर लेता है, तो यह भविष्य में राफेल जैसे विमानों के लिए स्वदेशी विकल्प बन सकता है। एक ऐसा विकल्प जो भारत को आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और रणनीतिक रूप से मजबूत बनाएगा।

कावेरी इंजन भारत की तकनीकी क्षमता, वैज्ञानिक आत्मबल और रणनीतिक सोच का प्रतीक बन चुका है। यह केवल एक इंजन नहीं, बल्कि उस संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है कि भारत अब रक्षा तकनीक के क्षेत्र में किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता।राफेल विवाद ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक तकनीक स्वदेशी नहीं होगी, संप्रभुता अधूरी रहेगी। और कावेरी इंजन उसी पूर्ण संप्रभुता की ओर भारत का एक निर्णायक कदम है।

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