ओम बिरला होंगे लोकसभा के नए स्पीकर, वोटिंग की नहीं आई नौबत
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ओम बिरला होंगे लोकसभा के नए स्पीकर, वोटिंग की नहीं आई नौबत

लोकसभा के स्पीकर का चुनाव संपन्न हो चुका है. सदन ने ध्वनिमत से ओम बिरला को स्पीकर चुन लिया. वोटिंग की जरूरत नहीं पड़ी.


Lok Sabha Speaker Election: 18वीं लोकसभा को स्पीकर मिल चुका है. ओम बिरला एक बार फिर उस कुर्सी पर विराजमान होंगे. बता दें कि ध्वनिमत से सदन ने उनके नाम पर मुहर लगा दी. बता दें कि वोटिंग की जरूरत नहीं पड़ी. उससे पहले की तस्वीर गहमागहमी वाली थी. दरअसल विपक्ष ने के सुरेश को साझा उम्मीदवार के तौर पर उतारा था. मंगलवार 26 जून को यह साफ हो गया कि लोकसभा स्पीकर पद के लिए चुनाव होगा. एनडीए की तरफ से जहां ओम बिरला उम्मीदवार हैं वहीं कांग्रेस ने दलित चेहरे के सुरेश पर दांव खेला है.कांग्रेस सांसद ने बाकायदा मोदी सरकार पर आरोप भी लगाया कि ये लोग कहते कुछ और करते कुछ हैं. हमारे सीनियर नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का अपमान किया है. हालांकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा तीन बार फोन पर बातचीत हुई थी. लेकिन यहां हम समझने की कोशिश करेंगे कि जब कांग्रेस के पास संख्या बल की कमी है तो के सुरेश को चुनावी मैदान में उतारने का क्या मतलब है. सबसे पहले यहां बताएंगे कि संख्या बल किसके पक्ष में हैं.

नंबर में एनडीए आगे
अगर आप लोकसभा में एनडीए और इंडिया ब्लॉक के नंबर को देखें तो एनडीए 293 सीट के साथ बढ़त पर है जबकि 234 सीट के साथ इंडिया ब्लॉक पीछे है. इंडिया ब्लॉक के साथ टीएमसी है या नहीं इस पर भी सस्पेंस कायम है. इसके साथ ही ऐसा माना जा रहा है कि जगनमोहन रेड्डी की पार्टी एनडीए को समर्थन दे सकती है. एनडीए के लोग 307 सांसदों के समर्थन का दावा भी कर रहे हैं. बता दें कि लोकसभा स्पीकर के चुनाव में जीत के लिए सामान्य बहुमत की जरूरत होती है. यानी कि संख्या बल एनडीए के पक्ष में है.

विपक्ष की सांकेतिक लड़ाई
अब इस नंबर से साफ है कि इंडिया ब्लॉक सांकेतिक लड़ाई रह रही है. जानकारों के मुताबिक कुछ लड़ाई संदेश देने के लिए दी जाती है. इंडिया ब्लॉक के नेता जनता को यह बताने की कोशिश में जुटे हैं कि विपक्ष किसी भी मामले में कमजोर नहीं. 2014 से लेकर 2024 तक भले ही हम आवाज नहीं उठा पाते थे. लेकिन जनता ने हमें मजबूत विपक्ष का जनादेश दिया है और वो अपनी ड्यूटी निभाने की कोशिश करेंगे. आपने देखा होगा कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी किस तरह से संविधान की प्रति हाथ में लेकर शपथ ले रहे थे. अब तो वो विपक्ष का नेता भी बनने जा रहे हैं. ऐसी सूरत में मामला 2014 से 2019 जैसा नहीं रहेगा जब लोकतंत्र में विपक्ष के सामने संख्याबल की कमी थी.

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