बाहुबली’ रॉकेट से इसरो ने सफलतापूर्वक लॉन्च किया CMS-03
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'बाहुबली’ रॉकेट से इसरो ने सफलतापूर्वक लॉन्च किया CMS-03

इसरो का कहना है कि 4,410 किलोग्राम का सीएमएस-03 एक मल्टी बैंड संचार उपग्रह है, जो भारतीय भूभाग सहित विस्तृत समुद्री क्षेत्र में सेवाएं प्रदान करेगा।


Bahubali Satellite : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार को अपनी सबसे बड़ी सफलता में से एक दर्ज की। इसरो ने अपने सबसे भारी संचार उपग्रह CMS-03 को स्वदेशी रॉकेट LVM3-M5, जिसे उसकी अद्भुत भार-वहन क्षमता के कारण ‘बाहुबली’ कहा जाता है, के ज़रिए अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। यह रॉकेट 4,410 किलोग्राम वजनी उपग्रह को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में ले गया। लॉन्च शाम 5 बजकर 26 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुआ।


पहली बार बिना विदेशी सहायता के भारी सैटेलाइट लॉन्च

अब तक इसरो 4,000 किलो से अधिक वज़न वाले उपग्रहों को फ्रांस स्थित एरियनस्पेस के रॉकेट से फ्रेंच गुयाना से प्रक्षेपित करता रहा है। 5 दिसंबर 2018 को इसरो ने अपना अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट GSAT-11 (5,854 किलो) एरियन-5 रॉकेट से कौरू लॉन्च बेस से भेजा था। लेकिन CMS-03 का यह प्रक्षेपण इसरो की पूर्ण आत्मनिर्भरता और भारत की तकनीकी परिपक्वता का प्रतीक बन गया है।


‘बाहुबली’ रॉकेट की तकनीकी ताकत

43.5 मीटर ऊँचा यह रॉकेट तीन चरणों वाला है;

दो ठोस मोटर स्ट्रैप-ऑन बूस्टर (S200) एक तरल ईंधन आधारित कोर स्टेज (L110) और एक क्रायोजेनिक स्टेज (C25)।

इन्हीं की मदद से LVM3 भारत को 4,000 किलो से अधिक वज़न वाले संचार उपग्रहों को GTO में भेजने की क्षमता देता है। इसे इसरो के वैज्ञानिक GSLV Mk-III भी कहते हैं।

यह LVM3 रॉकेट की पाँचवीं परिचालन उड़ान (fifth operational flight) है। इससे पहले इसी रॉकेट ने चंद्रयान-3 मिशन को चंद्रमा की कक्षा तक पहुँचाया था।


CMS-03: नौसेना की आँख और कान

CMS-03 एक मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन सैटेलाइट है, जिसे मुख्य रूप से भारतीय नौसेना की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। यह 2013 में प्रक्षेपित पुराने GSAT-7 (रुक्मिणी) का स्थान लेगा। सैटेलाइट हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय युद्धपोतों, पनडुब्बियों और विमानों को सुरक्षित, उच्च-बैंडविड्थ संचार लिंक प्रदान करेगा।

इससे नौसेना को रीयल-टाइम कमांड एंड कंट्रोल और समुद्री निगरानी में बड़ी बढ़त मिलेगी।

रणनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम

हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) में भारत की निगरानी क्षमता बढ़ाना इस मिशन का अहम उद्देश्य है। विशेषज्ञों के मुताबिक, CMS-03 चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते समुद्री तनाव के दौर में भारत की स्ट्रैटेजिक तैयारी को मज़बूत करेगा। यह सैटेलाइट दूरस्थ समुद्री क्षेत्रों तक कवरेज का विस्तार करेगा, जिससे भारत अपने तटीय इलाकों से दूर भी निर्बाध संचार बनाए रख सकेगा।

नागरिक और आर्थिक महत्व

CMS-03 न केवल रक्षा क्षेत्र के लिए बल्कि नागरिक और वाणिज्यिक संचार के लिए भी अहम है। यह भारत के भूभाग और आसपास के महासागरों में बेहतर दूरसंचार सेवाएँ प्रदान करेगा। इससे अंडमान-निकोबार जैसे दूरस्थ द्वीपों, मछुआरा समुदायों और अपतटीय उद्योगों को सीधी सहायता मिलेगी।

इसके अलावा यह उपग्रह टेलीमेडिसिन, ई-शिक्षा, आपदा प्रबंधन, तटीय निगरानी और डिजिटल इंडिया मिशन को भी सशक्त करेगा। उदाहरण के तौर पर, इसके हाई-कैपेसिटी ट्रांसपोंडर चक्रवात-प्रवण तटीय क्षेत्रों में बेहतर वीडियो लिंक और आपातकालीन प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेंगे।

आत्मनिर्भर भारत की ओर छलांग

CMS-03 का सफल प्रक्षेपण इस बात का प्रमाण है कि भारत अब भारी पेलोड वाले मिशनों के लिए विदेशी रॉकेट्स पर निर्भर नहीं है। यह इसरो को न केवल लागत-प्रभावी और स्वदेशी लॉन्चिंग में विश्वस्तर पर स्थापित करेगा, बल्कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को व्यावसायिक रूप से और सशक्त बनाएगा।


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