मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र में सियासी उबाल, क्या है SEBC एक्ट 2024
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मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र में सियासी उबाल, क्या है SEBC एक्ट 2024

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा बेहद पेचीदा है. इस मामले में अब तक सरकार की तरफ से कोशिश और उसके विरोध के बारे में बताएंगे.


महाराष्ट्र में 10 फीसद मराठा आरक्षण के मुद्दे पर बांबे हाईकोर्ट ने सुनवाई 13 जून तक के लिए टाल दी है. लेकिन यहां पर हम चर्चा करेंगे कि यह पूरा मामला क्या है. मराठा आरक्षण की बात करने वाले मनोज जरांगे कौन है. मराठा आरक्षण के मुद्दे पर महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों की राय क्या है. दरअसल विषय सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े मराठा समाज से जुड़े लोगों को आरक्षण देने का है. यह विषय ना सिर्फ मराठा समाज के शैक्षणिक और सामाजिक उत्थान से जुड़ा हुआ है बल्कि इसके पीछे सियासत भी है. जिस तरह से देश की सियासत में यूपी की 80 सीटों का महत्व है ठीक वैसे ही महाराष्ट्र की 48 सीटों का भी अपना योगदान है. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी- शिवसेना ने 41 सीटों पर जीत हासिल की थी. बता दें कि अब शिवसेना दो हिस्सों में बंट चुकी है. एक का नेतृत्व उद्धव ठाकरे तो दूसरे की अगुवाई एकनाथ शिंदे कर रहे हैं.

क्या है मराठा आरक्षण

बांबे हाइकोर्ट में सुनवाई से पहले शिंदे- फडनवीस सरकार ने कुछ एक्ट में कुछ बदलाव किये थे. उस विषय में अदालत ने कहा कि बदलाव की वजह से जिन लोगों पर असर हुआ है वो अदालती आदेश के दायरे में आएंगे.महाराष्ट्र में मराठा समाज पूरी आबादी में एक तिहाई है. मराठों के लिए आरक्षण की मांग पुरानी है और इस लोकसभा चुनाव में अहम मुद्दा भी है.मराठा समाज की मांग को पूरी करने के लिए दो कानून बनाए गए. लेकिन अदालत ने उन्हें खारिज कर दिया.लिहाजा 2024 में जो कानून बनाया जाएगा वो राज्य सरकार के लिए चुनौती भरा है. राज्य सरकार को यह देखना होगा कि अदालत की कसौटी पर कानून खरा उतरे.

20 फरवरी 2024 को महाराष्ट्र विधानसभा ने एक सुर में मराठाओं को 10 फीसद आरक्षण के प्रस्ताव को पारित कर दिया. जब इस प्रस्ताव को अधिसूचित किया गया ठीक उसके चार दिन बाद 1 मार्च को अदालत में चुनौती दी गई. यहां बता दें कि 2018 में बांबे हाईकोर्ट ने इसी तरह के कानून पर टिप्पणी करते हुए मान्यता दी.हालांकि टिप्पणी करते हुए कहा कि 16 फीसद आरक्षण न्यायसंगत नहीं है. हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.2021 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने महाराष्ट्र एसईबीसी एक्ट 2018 को खारिज कर दिया.

किस आधार पर एसईबीसी एक्ट 2024 लाया गया

मराठा समाज को आरक्षण दिए जाने के मुद्दे पर शिंदे-फडनवीस सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस सुनील शुक्रे की अगुवाई में महाराष्ट्र स्टेट बैकवर्ड क्लास कमीशन(MSBCC) गठित की. इस कमेटी की रिपोर्ट के बाद सरकार ने विधानसभा में बिल लाई. कमेटी की रिपोर्ट में मराठा समाज को सााजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा माना गया था. जस्टिस शुक्रे कमेटी ने मराठा समाज में लड़कियों में बाल विवाह को आधार बनाया. रिपोर्ट के मुताबिक 2018 तक गर्ल चाइल्ड मैरिज.32 फीसद से बढ़कर करीब 13 फीसद हो गया. जबकि 2018 में सरकारी नौकरियों में मराठाओं की सरकारी भागीदारी करीब 14 फीसद थी(एम जी गायकवाड़ कमेटी का आंकड़ा) वो 2024 में घटकर करीब 9 फीसद हो गई.कमेटी ने माना कि मराठा समाज मुख्यधारा से पूरी तरह कटा हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट में गायकवाड़ कमीशन की रिपोर्ट पेश की गई थी. उसमें 335 तालुका के दो गांवों(जहां मराठा आबादी 50 फीसद से अधिक थी) को शामिल करते हुए करीब 44 हजार परिवारों पर अध्ययन किया गया था. हालांकि अदालत ने इस आधार को पर्याप्त नहीं बताया, अदालत का कहना था कि इसे असाधारण परिस्थित मानते हुए इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के फैसले में 50 फीसद से ऊपर नहीं ले जाया जा सकता. सामान्य अर्थ यह है कि कोई भी सरकार आरक्षण की सब कैटिगरी में बढ़ोतरी तो कर सकती है लेकिन वो 50 फीसद से अधिक नहीं होगी. लेकिन शुर्के कमेटी ने एक करोड़ से अधिक परिवारों पर अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर निकला कि महाराष्ट्र की आबादी में मराठाओं की संख्या 28 फीसद के करीब है.

26 जनवरी 2024 को एसईबीसी बिल 2024 को महाराष्ट्र विधानसभा ने पारित किया था, उससे तीन हफ्ते पहले राज्य सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया है जिसमें कुछ कैटिगरी को ओबीसी कैटिगरी में आरक्षण का फायदा लेने के लिए कुनबी सर्टिफिकेट को अनिवार्य बनाया जबकि शेष मराठाओं को 10 फीसद आरक्षण के दायरे में रखा गया. इस तरह के फॉर्मूले का इजाज मनोज जरांगे पाटिल के भूख हड़ताल के बाद राज्य सरकार ने किया. हालांकि वो सरकार की इस कवायद से खुश नजर नहीं आए. यही नहीं जिस तरह से कुनबी सर्टिफिकेट के जरिए ओबीसी कैटिगरी में मराठाओं को लाने की कोशिश हुई उसकी जबरदस्त आलोचना हुई.

एसईबीसी एक्ट 2024 का विरोध क्यों

एसईबीसी एक्ट का विरोध करने वाले याचिकाकर्ता का कहना है कि इससे इंजिरा साहनी बनाम भारत सरकार में 50 फीसत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हो रहा है. इसमें किसी तरह का बदलाव संविधान में संशोधन कर संसद ही कर सकती है. इसके साथ ही एमएसबीसीसी के चेयरपर्सन के तौर पर जस्टिर शुक्रे की नियुक्ति पर भी ऐतराज जताया गया है.

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