सीएए को लेकर मतुआ समाज में क्यों है उलझन, एक क्लिक में पूरी जानकारी
पश्चिम बंगाल में करीब 8 लोकसभा सीटों पर मतुआ समाज का प्रभाव है.CAA के मुद्दे पर बंगाल में सियासत गरम है. लेकिन इस समाज में भी कुछ बिंदुओं को लेकर उलझन है.
Matua Community News: हाल ही में सीएए के तहत 14 शरणार्थियों को औपचारिक तौर पर नागरिकता मिली. नागरिकता मिलने के बाद उनकी खुशी की सीमा नहीं थी. लेकिन पश्चिम बंगाल की 30 मिलियन यानी 3 करोड़ मतुआ समाज के लोगों को भरोसा नहीं हो रहा. उन्हें ऐसा लगता है कि बीजेपी उन्हें सीएए के तहत नागरिकता देगी.नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत चुनाव के बाद मैं भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करुंगा.यह बात मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर पोर्ट्स, शिपिंग एंड वाटरवेज शांतनु ठाकुर ने द फेडरल से बातचीत में कही. लेकिन उसमें विरोधाभास था.शांतनु ठाकुर, मतुआ समाज के बड़े नेता है और इनका नाता बीजेपी से हैं. बनगांव लोकसभा सीट पर वो दोबारा भारतीय नागरिक होने के आधार पर चुनाव की मांग कर रहे हैं. लेकिन यहीं सवाल है कि दोबारा नागरिकता के लिए केंद्रीय मंत्री को जरूरत क्यों आन पड़ी.
मतुआ समाज का आठ लोकसभा सीटों पर असर
इस सवाल का जवाब समझने के लिए आपको बीजेपी-टीएमसी के बीच की तकरार को समझना होगा. भारत सरकार ने सीएए-2019 को अधिसूचित कर दिया है. इस विषय को बीजेपी ने 2019 के आम चुनाव के साथ साथ 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा में जोरदार तरीके से उठाया था.लोकसभा की लड़ाई जब मतुआ समाज वाले इलाकों में पहुंच चुकी है तो टीएमसी- बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लग चुकी है. मतुआ समाज की आबादी करीब 3 करोड़ है. इनमें से ज्यादातर को अनुसूचित जाति का दर्जा हासिल है. नॉर्थ 24 परगना जिले के साथ साथ नादिया जिले के अलावा ईस्ट बर्दवान, साउथ 24 परगना,हुगली और कूचबिहार जिलों में इनकी आबादी है. कम से कम आठ लोकसभा के नतीजों को यह समाज प्रभावित करता है.
केंद्रीय मंत्री ने दोबारा नागरिकता लेने की बात क्यों कहीं
सीएए के तहत नागरिकता हासिल करने के मुद्दे पर इस समाज में भ्रम की स्थिति बनी हुई है. इस समाज की स्थापना का श्रेय 1800 इस्वी में हरिचंद ठाकुर को जाता है. 2003 से बीजेपी एनडीए के शासन के दौर में अवैध प्रवासी के रूप में जगह दी गई. अब मतुआ समाज में इस एक्ट को लेकर जो भ्रम की स्थिति बनी हुई है उसे दूर करने के लिए केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने कहा कि वो खुद नागरिकता के लिए आवेदन करेंगे ताकि टीएमसी जो बार बार इस समाज के नकली होने की बात करती है वो दूर हो सके.
कानूनी उलझनों से मतुआ समाज परेशान
संशोधित सीएए में अवैध प्रवासी को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है. ऐसे विदेशी जो बिना वैध दस्तावेज या जिनके पास वैध दस्तावेज थे. लेकिन वो निर्धारित समय के बाद भी रुक गए. इस तरह के लोगों को रजिस्ट्रेशन या प्राकृतिक तौर पर मिलने वाली नागरकिता से दूर रखा गया है. यही नहीं जिनके वंशज जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 के बाद और 3 दिसंबर 2004 से पहले हुआ है उन्हें भी नागरिकता हासिल करने की प्रक्रिया से दूर रखा गया है.यदि उनके माता पिता उनके जन्म के समय भारतीय नागरिक ना रहे हों.यही नहीं 3 दिसंबर 2004 के बाद उन्हीं बच्चों को भारतीय माना जाएगा जिनके माता-पिता भारतीय हों या उनमें से कोई एक भारतीय नागरिक हो या दूसरा अवैध प्रवासी ना हों.अब इतनी कानूनी उलझनों की वजह से मतुआ समाज में भ्रम की स्थिति है.