
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ठप, लंबित शिकायतों का अंबार
NCM में चेयरपर्सन, वाइस-चेयरपर्सन और छह अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधियों के पद महीनों से खाली हैं।
अल्पसंख्यक समुदायों से भेदभाव की शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) इन शिकायतों का निपटारा करने में विफल साबित हो रहा है। केंद्र सरकार के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों में लंबित मामलों में भारी वृद्धि दर्ज की गई है, वह भी तब, जब आयोग महीनों से बिना अध्यक्ष और सदस्यों के लगभग निष्क्रिय पड़ा है।
लंबित शिकायतें कई गुना बढ़ीं
राज्यसभा में 3 दिसंबर को CPI(M) सांसद ए.ए. रहीम द्वारा पूछे गए प्रश्न के लिखित उत्तर में अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि मुस्लिम समुदाय की लंबित शिकायतें 2020-21 में 3 से बढ़कर 2024-25 में 217 हो गईं। ईसाई समुदाय की लंबित शिकायतें शून्य से बढ़कर 42 हो गईं।
लंबित मामलों में उछाल का असली कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि शिकायतों में गिरावट का मतलब समस्याओं में कमी नहीं, बल्कि आयोग के लगभग ठप हो जाने के कारण अल्पसंख्यकों का संस्था पर भरोसा खत्म होना है। कुल शिकायतें घटी हैं, पर उनका निपटान भी तेज़ी से कम हुआ है, जिससे लंबित मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
आयोग की स्थिति
NCM में चेयरपर्सन, वाइस-चेयरपर्सन और छह अल्पसंख्यक समुदायों (पारसी, बौद्ध, मुस्लिम, सिख, जैन, क्रिश्चियन) के प्रतिनिधियों के पद महीनों से खाली हैं। अप्रैल में पूर्व अध्यक्ष इक़बाल सिंह लालपुरा के पद छोड़ने के बाद आयोग को दोबारा गठित नहीं किया गया। आयोग सिर्फ कागज़ पर काम कर रहा है; वास्तविक रूप से शिकायतों की सुनवाई और जांच लगभग ठप है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और अल्पसंख्यक मामलों के विशेषज्ञ अनस तनवीर कहते हैं कि यह कोई राज़ नहीं कि अल्पसंख्यक समूह हाल के वर्षों में बढ़ती चुनौतियों से गुजर रहे हैं। आयोग के लगभग खत्म हो जाने से अब लोगों को अदालतों का रुख करना पड़ रहा है। असल डेटा वहीं मिलता है।
आंकड़े चिंताजनक
2020-21 में NCM ने मुस्लिम समुदाय की 1,105 में से 1,102 शिकायतों का निपटान किया था। ईसाई समुदाय की सभी 103 शिकायतें निपटा दी गई थीं। साल 2024-25 में आयोग को 855 मुस्लिम और 95 ईसाई शिकायतें मिलीं, लेकिन निपटान सिर्फ 638 और 53 मामलों का ही हुआ।
जवाब में स्पष्टता नहीं
AIADMK और BRS के राज्यसभा सांसदों ने सरकार से पूछा कि क्या आयोग में खाली पद भरने की प्रक्रिया शुरू की गई है? क्या कोई अंतरिम व्यवस्था बनाई गई है? इसके जवाब में रिजिजू ने कहा कि शिकायतें संबंधित अधिकारियों तक भेजी जाती हैं। लेकिन डेटा दिखाता है कि लंबित मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जो इस दावे को खंडित करता है। इसके अलावा सरकार ने आयोग के पुनर्गठन के लिए कोई समयसीमा भी नहीं बताई।
अल्पसंख्यक अधिकारों पर खतरा
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने कहा कि ये आंकड़े असल स्थिति का एक छोटा हिस्सा हैं। असलियत में कई लोग शिकायत ही दर्ज नहीं करा पाते। दर्ज होती है तो ठीक से रजिस्टर नहीं होती और जब रजिस्टर हो जाती है तो निपटान नहीं होता। यह आज के भारत की सच्चाई है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और राष्ट्रीय एकता परिषद के पूर्व सदस्य जॉन दयाल ने कहा कि यह बेहद शर्मनाक है कि पाकिस्तान ने अभी अपने अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया है, जबकि भारत में आयोग महीनों से बिना सदस्यों के पड़ा है। वे आगे कहते हैं कि सरकार का रवैया और संस्थाओं का व्यवहार संदेश देता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान नहीं किया जा रहा। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। क्योंकि जब सरकारी एजेंसियां सरकार के इरादे को पढ़कर उसी दिशा में काम करने लगती हैं तो न्याय व्यवस्था प्रभावित होती है और कानून व्यवस्था की जगह अराजकता पनपती है।

