आखिर 30 जून को क्यों मनाया जाता है रेम्ना नी, अधिकतर भारतीयों को नहीं इसकी जानकारी
x

आखिर 30 जून को क्यों मनाया जाता है 'रेम्ना नी', अधिकतर भारतीयों को नहीं इसकी जानकारी

30 जून 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने मिजो नेशनल फ्रंट के साथ मिजो समझौते पर हस्ताक्षर किए. जिससे दो दशकों से चल रहे उग्रवाद के बाद पहाड़ी क्षेत्र में शांति लौट आई.


Mizoram Peace Accord: भारत में जश्न मनाने लायक कुछ उपलब्धियां हैं. उनमें से कुछ ऐसी हैं, जिनके साथ एक तारीख जुड़ी है और जिसे पूरे देश में मनाया जा सकता है. हालांकि, ऐसा होता नहीं है. 16 दिसम्बर 1971 और 30 जून 1986 दो ऐसी तारीखें हैं, जिनको हर भारतीय मना सकते हैं.

बांग्लादेश का जन्म

16 दिसम्बर 1971 का दिन भारतीय सशस्त्र बलों और बंगाली गुरिल्लाओं की पाकिस्तान की क्रूर सेना पर निर्णायक जीत का दिन है. इस दिन पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अब्दुल्ला नियाज़ी ने ढाका के सुहरावर्दी उद्यान में भारत के पूर्वी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे. इस आत्मसमर्पण ने पाकिस्तान के बंटवारे और बांग्लादेश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था.

पड़ोसी से सबक

बांग्लादेश के निर्माण से भारत के समक्ष उपस्थित अनेक प्रश्नों के उत्तर मिल गए हैं. कश्मीर में आज़ादी चाहने वालों के लिए बांग्लादेश एक तरह की प्रेरणा हो सकती है. लेकिन सैयद अली शाह गिलानी जैसे लोग जो पाकिस्तान में विलय की वकालत करते हैं, उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए. अविभाजित पाकिस्तान में बहुसंख्यक बंगाली मुसलमानों को न्याय नहीं मिल सका तो कश्मीरी मुसलमान पाकिस्तान में शामिल होकर क्या उम्मीद कर सकते हैं? लेकिन पाकिस्तान का कश्मीर को अपने में शामिल करने का दृढ़ संकल्प, जबकि भारत की इच्छा है कि बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरे, अपने आप में यथास्थिति में किसी भी बदलाव की संभावना को नकार देता है. चाहे वहां कितनी भी तीव्र हिंसा क्यों न देखी गई हो.

मिज़ो समझौता

वहीं, 30 जून 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के साथ मिजो समझौते पर हस्ताक्षर किए. जिससे दो दशकों के खूनी उग्रवाद से त्रस्त पहाड़ी क्षेत्र में शांति लौटने का मार्ग प्रशस्त हुआ. मिजोरम में समझौता काफी हद तक कायम रहा है और अब इसे संघर्ष समाधान और शांति स्थापना के एक मॉडल के रूप में देखा जाता है. सबसे बढ़कर, यह समायोजन की भावना का उदाहरण है, जो औपनिवेशिक काल के बाद के भारत की बहुलतावादी इकाई के रूप में नियति के साथ मुलाकात को दर्शाता है. मिजोरम इस दिन को 'रेम्ना नी' या शांति दिवस के रूप में मनाता है. लेकिन शेष भारत को इसकी जानकारी तक नहीं है.

भारत की जीत

मिजोरम हमारा सर्वोत्तम समय था. जहां पाकिस्तान साल 1971 में बुरी तरह विफल हुआ. वहीं भारत के लिए 30 जून 1986 का दिन उस भावना का उदाहरण है, जो पूरे देश को एकजुट रखती है. राजधानी आइजोल का दौरा करें और आपको थ्लानमुअल या माटिर्स स्मारक दिखेगा, जिसे एमएनएफ (जिसने मिजोरम पर दो पूर्ण पांच-वर्षीय कार्यकालों तक शासन किया) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने साल 2008 में अपने उन गुरिल्ला लड़ाकों की याद में बनवाया था. जो मिजो की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे.

इस तरह का स्मारक भारत की अखंडता की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों को सलामी देने वाले हमारे अपने सैन्य स्मारकों के साथ-साथ मौजूद हो सकता है, जो उस भावना का उदाहरण है, जो भारत को एक साथ बांधे रखती है. यह एक संयुक्त परिवार है, जहां कटुता और गलतफहमी को केवल लाठी से नहीं, बल्कि बातचीत से निपटाया जाता है और मिजोरम इस भावना से मिलता जुलता है.

मेल-मिलाप की भावना

जिन लोगों ने 'रांबुआई' (संकटग्रस्त) वर्षों में भारत के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी थी, उनके बेटे और बेटियां अब बढ़ती संख्या में भारतीय प्रशासन में शामिल हैं और जेजे (जेजे लालपेखलुआ फनाई) और शायलो मालस्वामा जैसे फुटबॉल खिलाड़ी मजबूत प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ रक्षापंक्ति को भेदकर और गोल करके भारत को गौरवान्वित करते हैं. इसी भावना को रेखांकित करने के लिए भारत को 30 जून को सुलह दिवस के रूप में मनाना चाहिए. ठीक उसी तरह जैसे हम 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मना सकते हैं, ताकि "द्विराष्ट्र" सिद्धांत को कब्र में डाला जा सके, जब तक कि कोई भारत में जिन्ना को पुनर्जीवित करने की कोशिश नहीं कर रहा हो. एक तो इससे हमें मिजोरम और पूर्वोत्तर को देश के विचार मानचित्र पर लाने में मदद मिलेगी तथा दूसरा इससे हमें अपने मित्रवत पूर्वी पड़ोसी के साथ और अधिक घनिष्ठ संबंध बनाने में मदद मिलेगी.

नागा समस्या

नरेन्द्र मोदी सरकार को भी मिजो शांति प्रक्रिया से सीख लेकर सही सबक सीखना चाहिए, जिससे नागा समस्या को सुलझाने में मदद मिलेगी. जो भारत में अब तक का सबसे लंबे समय से जारी जातीय विद्रोह है. साल 2015 में रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, जो मिजोरम-प्रकार के अंतिम समझौते का मार्ग प्रशस्त करने वाला था, साझा संप्रभुता की व्यापक रूप से भिन्न धारणाओं के कारण नागा शांति प्रक्रिया में बड़ी बाधा आ गई है. कुछ लोग कहेंगे कि यह अपना रास्ता भटक गया है. ऐसा नहीं होना चाहिए. भारत जैसी युवा संघीय व्यवस्था में सामंजस्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है. लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों.)

Read More
Next Story