
अब जनगणना के साथ पूछी जाएगी जाति, केंद्र का जाति गणना कराने का फैसला
मोदी सरकार ने बिहार चुनाव से पहले बहुत बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने खुद जाति जनगणना कराने का फैसला लिया है। विपक्ष लंबे समय से जाति जनगणना की मांग उठाता रहा है।
इस बार की जनगणना में जाति भी पूछी जाएगी। ऐसे मौके पर जबकि पूरे देश की नजर इस पर थी कि मोदी सरकार पहलगाम आतंकी हमले के जवाब को लेकर क्या फैसला लेती है, सरकार ने जाति जनगणना का बड़ा फैसला लेकर सबको चौंका दिया।
जातिगत जनगणा कराने का फैसला केंद्र सरकार की राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCPA) की बैठक में लिया गया है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। कैबिनेट के फैसले की जानकारी बाद में एक प्रेस ब्रीफिंग में सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी।
सरकार ने फैसला किया है कि देश में जो अगली जनगणना होगी, उसी में जाति की जनगणना भी होगी। मतलब आजादी के बाद पहली बार जनणना के वक्त लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाएगी।
कांग्रेस पर साधा निशाना
कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए वैष्णव ने कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, "कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया है। 2010 में दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए। इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था। अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की सिफारिश की है। इसके बावजूद, कांग्रेस सरकार ने जाति का सर्वेक्षण या जाति जनगणना कराने का फैसला किया। यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
उन्होंने कहा, कुछ राज्यों ने जातियों की गणना के लिए सर्वेक्षण किए हैं। जबकि कुछ राज्यों ने यह अच्छा किया है, कुछ अन्य ने केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह पैदा किया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति से हमारा सामाजिक ताना-बाना खराब न हो, सर्वेक्षण के बजाय जाति गणना को जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।
विपक्ष की मांग के बीच आया फैसला
यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित समूचा विपक्ष केंद्र सरकार पर जातिगत जनगणना की मांग को लेकर लगातार दबाव बना रहा था।
राहुल गांधी ने कई बार अपने बयानों में कहा कि जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर देशव्यापी अभियान चलाए और संसद में भी इसे ज़ोर-शोर से उठाया।
कुछ राज्यों में पहले ही हो चुकी है जातिगत गणना
ध्यान देने योग्य है कि बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने पहले ही अपने स्तर पर जाति आधारित जनगणनाएं कराई हैं। इन सर्वेक्षणों के नतीजों ने सामाजिक और राजनीतिक चर्चाओं को नई दिशा दी है।
विशेष रूप से बिहार में, नीतीश कुमार सरकार द्वारा 2023 में कराई गई जातिगत जनगणना के आंकड़ों ने राज्य में आरक्षण व्यवस्था और सामाजिक नीतियों को लेकर व्यापक बहस की शुरुआत कर दी थी।
आजाद भारत में पहली बार
भारत में पिछली बार जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी, लेकिन तब देश में अंग्रेजों का राज था। आजाद भारत में ये पहली बार है जब देशभर में एक साथ जाति आधारित गणना होगी।