सियासी मैदान में फिर सक्रिय मोदी, एक साल बाद बदले राजनीतिक समीकरण
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सियासी मैदान में फिर सक्रिय मोदी, एक साल बाद बदले राजनीतिक समीकरण

एक साल बाद मोदी फिर से आत्मविश्वास से लबरेज़ नजर आ रहे हैं। जिसे राजनीतिक विश्लेषक उनके "मोदी मोमेंट" की वापसी मानते हैं।


चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कहा कि "अगर मिशन पूरा हो गया तो नुकसान मायने नहीं रखते।" यह कथन न केवल सशस्त्र बलों की भावना को दर्शाता है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजनीतिक रणनीति की भी झलक देता है। पिछले साल, जब आम चुनाव के नतीजे आए थे, भाजपा बहुमत से काफी दूर रह गई थी। 'अबकी बार 400 पार' के नारे के बावजूद पार्टी सिर्फ़ 240 सीटों पर सिमट गई थी और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से पिछड़ गई थी। लेकिन इसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में मोदी ने राजनीतिक वापसी की।

मोदी की वापसी

एक साल बाद मोदी फिर से आत्मविश्वास से लबरेज़ नजर आ रहे हैं। पोस्ट-ऑपरेशन सिंदूर उनके भाषणों में वह फिर से अपने बारे में तीसरे व्यक्ति में बोलते दिखे, जिसे राजनीतिक विश्लेषक उनके "मोदी मोमेंट" की वापसी मानते हैं। पहलगाम हमले और उसके बाद सैन्य कार्रवाई को मोदी ने जिस अंदाज़ में हैंडल किया, वह चाणक्य नीति की झलक देता है। सरकार ने धारा 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर को सुरक्षित दिखाने की कोशिश की थी, जिससे सुरक्षा तैनाती में कमी आई और हमले का रास्ता बना।

विपक्ष की कमजोर घेराबंदी

पहलगाम हमले के बाद INDIA गठबंधन ने सरकार को सुरक्षा चूक पर घेरने की कोशिश की, लेकिन वह असरदार नहीं रही। इसकी दो मुख्य वजहें रहीं:-

1. राष्ट्रीय शोक के समय राजनीति करना उल्टा पड़ सकता था।

2. सरकार की मजबूत प्रचार मशीनरी और 'गोदी मीडिया' ने आतंकी हमले पर बदले की भावना को हवा दी।

बीजेपी का नैरेटिव

भाजपा और आरएसएस का मिशन "Make India Great Again" इस सोच पर आधारित है कि भारत एक हिंदू बहुल राष्ट्र है, जो हजार वर्षों तक अपनी पहचान दबाकर जीता रहा। मोदी समर्थकों के अनुसार, 80% हिंदुओं को सांस्कृतिक रूप से एकजुट करना प्राथमिक लक्ष्य है। 14% मुस्लिमों को चुनावी रूप से अप्रासंगिक बनाना अगला कदम है। लंबे समय में ‘घर वापसी’ के ज़रिये मुस्लिम समुदाय को फिर से हिंदू संस्कृति में शामिल करने की बात कही जा रही है।

नया नैरेटिव गढ़ने की ज़रूरत

अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी की तरह भारतीय विपक्ष भी स्पष्ट नैरेटिव की कमी से जूझ रहा है। David Brooks ने The New York Times में लिखा कि Democrats को नए युग के लिए एक नई पहचान गढ़नी होगी। ट्रंप का नैरेटिव सीधा है — 'एलीट अमेरिका को बर्बाद कर रहे हैं'। मोदी और ट्रंप दोनों ही जनवादी (populist) नेता हैं, जो सीधी और भावनात्मक बात करते हैं।

हिंदू असंतोष और सांस्कृतिक विमर्श

भारत में भी कई हिंदू यह मानते हैं कि आज़ादी के बाद के नेताओं ने मुसलमानों को तवज्जो दी और हिंदू पहचान को दबाया। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति में मुसलमानों की हालत देश के आदिवासियों के बाद सबसे खराब है।

वैचारिक बदलाव और नया नेतृत्व

राजनीतिक विशेषज्ञ सुहास पल्शिकर और योगेंद्र यादव कहते हैं कि आज़ादी की लड़ाई के समय धार्मिक समावेशिता और आधुनिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने की एक “महत्वाकांक्षी कोशिश” हुई थी, जिसका विरोध सावरकर जैसे नेताओं के कड़े राष्ट्रवाद से हुआ। David Brooks का निष्कर्ष यही है कि राजनीतिक परिवर्तन चुनाव से नहीं, बल्कि विचारकों, संगठकों और नई पीढ़ी से होता है। यह दशकों का काम है।

क्या राहुल गांधी तैयार हैं?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी और INDIA गठबंधन वह नया 'Grand Narrative' बना पाएंगे, जो मोदी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ठोस विकल्प पेश कर सके? या फिर भाजपा, ‘राष्ट्रवाद’ और ‘धार्मिक अस्मिता’ के ज़रिए भारत की राजनीति पर यूं ही हावी बनी रहेगी?

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