75 साल की सीमा पर बोले भागवत: रिटायरमेंट की बात कभी नहीं की
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75 साल की सीमा पर बोले भागवत: 'रिटायरमेंट की बात कभी नहीं की'

75 years retirement dispute: यह तीन दिवसीय कार्यक्रम न सिर्फ संघ की भविष्य रणनीति की झलक देता है, बल्कि भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विमर्श में संघ की भूमिका को भी और स्पष्ट करता है।


Mohan Bhagwat speech: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित व्याख्यान सीरीज में तीन दिनों तक विभिन्न मुद्दों पर खुलकर संवाद किया. नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में देश-विदेश से आए प्रतिनिधियों के लिए उनके भाषण का सीधा अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच और स्पैनिश में किया गया.

भविष्य का भारत और स्वयंसेवकों की भूमिका

पहले दिन मोहन भागवत ने भारत के भविष्य को लेकर अपना दृष्टिकोण साझा किया और बताया कि स्वयंसेवकों की इसमें क्या भूमिका होनी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में कट्टरता बढ़ रही है और जो लोग अलग राय रखते हैं, उन्हें अक्सर 'कैंसिल' कर दिया जाता है.

स्वदेशी की सच्ची भावना

दूसरे दिन भागवत ने स्वदेशी पर ज़ोर देते हुए कहा कि उसकी सच्ची भावना तब है, जब देश अपनी मर्ज़ी से वैश्विक मंच पर जुड़े, किसी दबाव में नहीं. उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर होना चाहिए, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूरी नहीं, विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए.

समाज से जुड़े सवालों पर जवाब

तीसरे दिन भागवत ने समाज से जुड़े तमाम सवालों का जवाब दिया, जिसमें भाजपा और आरएसएस के रिश्ते, आरक्षण, जनसंख्या, संस्कृत और नई शिक्षा नीति जैसे मुद्दे प्रमुख रहे.

भाजपा-आरएसएस संबंध

भागवत ने साफ किया कि भाजपा और आरएसएस के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं. उन्होंने कहा कि हम सुझाव दे सकते हैं, निर्देश नहीं. मैं शाखा चलाने में माहिर हूं, वे सरकार चलाने में. अगर कुर्सी पर बैठा व्यक्ति 100% हमारा हो भी तो भी उसे स्वतंत्रता देनी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि भारत की वर्तमान शासन प्रणाली अंग्रेजों द्वारा बनाई गई थी, जिसमें कुछ आंतरिक विरोधाभास हैं और अब समय है इन व्यवस्थाओं में नवाचार लाने का.

75 साल की उम्र में रिटायरमेंट पर सफाई

हाल ही में पीएम मोदी से जोड़े गए उनके कथित रिटायरमेंट वाले बयान पर उन्होंने स्पष्ट किया कि मैंने कभी नहीं कहा कि मैं रिटायर हो रहा हूं या किसी को रिटायर होना चाहिए. संघ में काम दिया जाता है, चाहें आप 80 के हों या 60 के — जो कहा जाएगा, वो करना होगा.

आरक्षण पर संघ का समर्थन बरकरार

मोहन भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि आरएसएस संविधान में दिए गए आरक्षण का समर्थन करता है. उन्होंने कहा कि जाति आधारित आरक्षण को संवेदनशीलता से समझना चाहिए. दीनदयाल का भी यही विचार था — नीचे के लोग ऊपर आएं और ऊपर के लोग हाथ बढ़ाएं. उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1969 में उडुपी सम्मेलन में सभी हिंदू धर्माचार्यों ने अछूत प्रथा को धर्मविरुद्ध घोषित किया था.

जनसंख्या और धर्मांतरण पर चिंता

भागवत ने कहा कि जनसंख्या को लेकर तीन बच्चों की नीति संतुलन बनाए रखने के लिए ठीक है. एक सभ्यता को बनाए रखने के लिए 2.1 की दर ज़रूरी है, जिसका अर्थ है लगभग तीन बच्चे. लेकिन संसाधनों के हिसाब से हमें इसे नियंत्रित करना चाहिए. उन्होंने धर्मांतरण और घुसपैठ को जनसांख्यिकीय असंतुलन के मुख्य कारण बताया और कहा कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है. जबरन धर्म परिवर्तन नहीं होना चाहिए. घुसपैठ को रोकना भी जरूरी है, क्योंकि हर देश की सीमाएं और संसाधन सीमित होते हैं.

संस्कृत अनिवार्य हो या नहीं?

संस्कृत को अनिवार्य बनाने के सवाल पर भागवत ने कहा कि संस्कृत का बुनियादी ज्ञान भारत को समझने के लिए जरूरी है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए. एक साझा व्यवहारिक भाषा सभी को मिलकर तय करनी चाहिए.

नई शिक्षा नीति और भारतीय मूल्य

भागवत ने कहा कि शिक्षा केवल जानकारी देने का माध्यम नहीं है, बल्कि एक संस्कारी व्यक्ति बनाने की प्रक्रिया है. उन्होंने पंचकोशी शिक्षा (शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास) की बात की और कहा कि नई शिक्षा नीति इसी दिशा में एक कदम है.

भविष्य की योजनाएं

संघ ने अपनी शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में देशभर में 1 लाख से अधिक 'हिंदू सम्मेलनों' के आयोजन की योजना बनाई है. इसकी शुरुआत विजयदशमी (2 अक्टूबर) को नागपुर से मोहन भागवत के संबोधन के साथ होगी.

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