
हिमालय की ढाल नाकाम, क्या तिब्बत पहुंचा मानसून?
कहा जा रहा है कि मानव इतिहास में पहली बार मानसून हिमालय पार कर तिब्बत पहुंच गया। लेकिन क्या वास्तव में यह संभव है।
मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। दुबई के रेगिस्तान में बाढ़, भारत में थार रेगिस्तान में स्थित जिलों में भारी बारिश, ठंड के मौसम में बारिश, मानसूनी चक्र का आगे बढ़ना इसके कुछ उदाहरण हैं। मौसम के जानकार लगातार आगाह कर रहे है। इस दफा कहा जा रहा है कि कड़ाके की ठंड भी पड़ेगी। लेकिन इन सबके बीच हैरान करने वाले कुछ घटनाएं भी दर्ज हुई हैं। पहले यह माना जाता रहा है कि हिमालय, दक्षिण पश्चिम मानसून को रोककर रखता था। अगर सामान्य तरह से समझें तो तिब्बत के पठारों में मानसून की दस्तक नहीं होती थी। लेकिन कहा जा रहा है इस वर्ष हिमालय को पार कर गया। इसे लिखित इतिहास में असामान्य घटना और चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है। क्या यह हो सकता है।
इस साल बारिश तिब्बत तक पहुंच गई। यह सिर्फ मौसम का बदलाव नहीं बल्कि जलवायु असंतुलन की एक गहरी चेतावनी है। इस बीच हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर पहले ही रिकॉर्डतोड़ बारिश से जूझ रहे हैं।
ज़ंस्कार में बर्फ-बारिश का असामान्य संगम
ज़ंस्कार की पहाड़ियों में मात्र दो दिनों में 100 मिमी से अधिक बारिश और आधा फुट बर्फबारी दर्ज की गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ते वैश्विक तापमान बादलों को और ऊँचाई तक चढ़ने के लिए मजबूर कर रहा है। नतीजतन, जहाँ पहले बर्फबारी होती थी, अब वहाँ बारिश हो रही है।
बदलते पैटर्न के गंभीर खतरे
इस बदलाव के कई खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं। तेजी से पिघलती बर्फ हिमस्खलन (Avalanche) की घटनाओं को बढ़ा सकती है। मैदानी इलाकों में अचानक आई बाढ़ (Flash Floods) का जोखिम और गहरा होगा। वहीं तिब्बत और लद्दाख के शुष्क घाटियों में नए झीलों का बनना शुरू हो सकता है। अगर ये झीलें टूट गईं, तो कुछ ही मिनटों में पूरी बस्तियां बह सकती हैं।
असंभव से हकीकत तक
जो कभी असंभव माना जाता था, वह अब सच्चाई बन चुका है मानसून ने तिब्बत की सीमा पार कर ली है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह कोई सामान्य मौसमी उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के तेज़ी से बढ़ते असर का संकेत है। आने वाले वर्षों में इसके परिणाम और अधिक विनाशकारी हो सकते हैं।
दक्षिण-पश्चिमी मानसून (South West Monsoon) के मौसम में 19 पश्चिमी विक्षोभ आए हैं। इनमें से तीन सितंबर के पहले सप्ताह में बने थे। पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी हवाओं के परस्पर संपर्क के कारण नमी हिमालय के पार पहुँच गई होगी। दक्षिण-पश्चिमी मानसून (एसडब्ल्यूएम) के दौरान पश्चिमी विक्षोभ दुर्लभ होते हैं और इस वर्ष उनकी बढ़ी हुई आवृत्ति अनुसंधान का एक सक्रिय क्षेत्र है। लेकिन यह ग्लोबल वार्मिंग और उसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो सकता है।
इसे समझने के लिए द फेडरल देश की टीम ने जियोलॉजिस्ट और मौसम के जानकार महेश पलावत( वीपी, स्काईमेट) से बातचीत की। महेश पलावत ने कहा कि बंगाल की खाड़ी से उठने वाला मानसून ने तराई और पहाड़ी इलाकों में अच्छी बारिश की। जहां तक हिमालय पार कर मानसून के तिब्बत पहुंचने की बात है उसमें दम नहीं है। तिब्बत में भी बादल बनते और उससे बारिश होती है। यह कहना सही नहीं होगा कि हिमालय को पार कर मानसून तिब्बत पहुंचा होगा।