BJP-RSS संबंधों में आई दरार अब हुई दूर? फिर साथ आए मोदी और भागवत
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BJP-RSS संबंधों में आई दरार अब हुई दूर? फिर साथ आए मोदी और भागवत

हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली में हाल की जीत - पिछले साल के लोकसभा चुनाव के निराशाजनक अनुभव के विपरीत - भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को आरएसएस के महत्व का एहसास कराती है


पिछले साल लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी और उसके वैचारिक संरक्षक आरएसएस के बीच उभरती दरार अब भरती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत एक महीने बाद नागपुर में एक साथ मंच साझा करने वाले हैं। मोदी सरकार के 11 वर्षों के कार्यकाल में यह सिर्फ दूसरी बार होगा जब ये दोनों नेता सार्वजनिक रूप से एक साथ नजर आएंगे।

2024 लोकसभा चुनाव से सबक सीखा?

2024 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा था कि वह अब आरएसएस पर निर्भर नहीं है और अपने फैसले स्वतंत्र रूप से ले सकती है।लेकिन चुनाव नतीजों ने बीजेपी को सबक सिखाया। पूर्ण बहुमत से चूकने के बाद, पार्टी को एक गठबंधन सरकार बनानी पड़ी, जो पिछले 10 वर्षों में पहली बार हुआ। इस हार के बाद, मोहन भागवत ने बीजेपी पर कड़ी टिप्पणी भी की थी। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दोनों पक्षों ने पुरानी कड़वाहट भुलाकर फिर से हाथ मिला लिया है।

गुढ़ी पड़वा पर नया अध्याय

30 मार्च को गुढ़ी पड़वा, जो महाराष्ट्र का नया वर्ष माना जाता है, के दिन नागपुर में मोदी और भागवत एक साथ मंच साझा करेंगे। यह दिन आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती भी है।इस कार्यक्रम में दोनों नेता 6.5 एकड़ जमीन पर बनने वाले अस्पताल की आधारशिला रखेंगे। यह अस्पताल आरएसएस के दूसरे प्रमुख माधव सदाशिवराव गोलवलकर के नाम पर होगा।

अयोध्या से नागपुर तक – एकता का संदेश

लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का नेतृत्व किया था। इस मौके पर मोहन भागवत भी मौजूद थे, लेकिन उन्होंने कोई भाषण नहीं दिया।"इस बार नागपुर में, मोदी और भागवत दोनों मंच से बोलेंगे।" – नागपुर के आरएसएस विचारक दिलीप देवधर

यह बीजेपी और आरएसएस के बीच नई एकजुटता का संदेश देने वाला है। 2024 के चुनावों में बहुमत खोने के बाद बीजेपी को एहसास हुआ कि उसे आरएसएस के समर्थन की जरूरत है।

बीजेपी के रवैये में बदलाव क्यों?

2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने खुद को आरएसएस से अलग दिखाने की कोशिश की थी। लेकिन हाल ही में हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में मिली जीत के बाद पार्टी को आरएसएस की अहमियत का एहसास हुआ।

इस बदलाव की झलक 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में दिखी, जब मोदी ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि उनका जीवन आरएसएस से प्रेरित है।

नए बीजेपी अध्यक्ष पर आरएसएस की राय अहम

अब बीजेपी को अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना है, और यह फैसला बिना आरएसएस की राय लिए नहीं होगा।

"बीजेपी और आरएसएस मिलकर नए पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। अब दोनों संगठन बराबरी से फैसले लेंगे।" – दिलीप देवधर

बीजेपी और आरएसएस – परस्पर निर्भरता

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी और आरएसएस को एक-दूसरे की जरूरत है।

बीजेपी के सत्ता में रहने से आरएसएस का राष्ट्रीय प्रभाव बढ़ता है

चुनावों के दौरान बीजेपी को आरएसएस के कार्यकर्ताओं का समर्थन मिलता है

"यह एक सहजीवी (symbiotic) संबंध है। मोदी और बीजेपी समझ चुके हैं कि केवल उनकी लोकप्रियता और सरकार का कामकाज लोकसभा में बहुमत लाने के लिए पर्याप्त नहीं है।" – प्रो. अमित धोलकिया, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा

निष्कर्ष – एकता की ओर बढ़ते कदम

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में चुनावी सफलता ने बीजेपी और आरएसएस को फिर से करीब ला दिया है। अब सवाल यह है कि क्या यह गठबंधन टिकाऊ साबित होगा, या फिर भविष्य में फिर से दरारें उभरेंगी?

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