नेपाल में अशांति से बिहार के सीमावर्ती शहर में धंधा ठप, दुकानदार बोले- पांच दिन से एक भी बिक्री नहीं”
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रक्सौल का बाजार, जो बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है, लगभग पूरी तरह नेपाल से आने वाले ग्राहकों पर निर्भर करता है

नेपाल में अशांति से बिहार के सीमावर्ती शहर में धंधा ठप, दुकानदार बोले- पांच दिन से एक भी बिक्री नहीं”

रक्सौल केवल नेपालियों का ही नहीं बल्कि बिहार के उन लोगों का भी पसंदीदा शॉपिंग स्थल है, जो नेपाल में काम करते हैं और त्योहारों पर लौटते समय यहां से खरीदारी करते हैं।


नेपाल में हिंसा और लूटपाट ने रक्सौल के व्यापारियों को दहशत में डाल दिया है। पांच दिन से बोहनी तक नहीं हुई है, एक गमछा भी नहीं बिका है,” रक्सौल चैंबर ऑफ कॉमर्स के संस्थापक सदस्य और परिधान की दुकान चलाने वाले आलोक कुमार श्रीवास्तव ने कहा। वह अपनी दुकान के अंदर चारपाई पर पालथी मारकर बैठे थे, उनकी निराशा उनके साथ बैठे कर्मचारी भी साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा,“दुर्गा पूजा नेपाल का सबसे बड़ा त्योहार है और त्योहारी खरीदारी ज़्यादातर यहीं रक्सौल में होती है। साल के इस समय तक तो दुकान में हमेशा 3-4 ग्राहक रहते थे।”

रक्सौल का बाजार नेपाल पर आधारित है

“हमारे 90% ग्राहक नेपाल से आते हैं, केवल 10% स्थानीय खरीदार हैं,” श्रीवास्तव ने बताया। कोविड-19 लॉकडाउन ने पहले ही कारोबार को पंगु कर दिया था। धीरे-धीरे सुधार के संकेत मिलने लगे थे, लेकिन नेपाल की अशांति ने फिर सब कुछ बिगाड़ दिया।

उन्होंने कहा—“इस साल व्यापार अच्छा नहीं रहा था, लेकिन सितंबर की शुरुआत से उम्मीद बढ़ने लगी थी। त्योहार को लेकर चहल-पहल थी। लगा था कि दुर्गा पूजा में धंधा ज़रूर सुधरेगा।”

श्रीवास्तव के अनुसार, रक्सौल केवल नेपालियों का ही नहीं बल्कि बिहार के उन लोगों का भी पसंदीदा शॉपिंग स्थल है, जो नेपाल में काम करते हैं और त्योहारों पर लौटते समय यहां से खरीदारी करते हैं।

लेकिन नेपाल में अशांति के बाद सारी उम्मीदें टूट गईं।

“हम रोज़ाना करीब 50,000 रुपये का माल बेचते थे। लेकिन इस गड़बड़ी के बाद बिक्री शून्य हो गई है। हम हमेशा यही दुआ करते हैं कि नेपाल खुश रहे तो हमारा बाजार भी खुश रहेगा।”

रक्सौल का मुख्य बाजा, जो रेलवे क्रॉसिंग से नहर चौक तक फैला है—सिर्फ़ एक किलोमीटर लंबा है लेकिन हमेशा गहमागहमी से भरा रहता था। रेलवे क्रॉसिंग के पास दुकान चलाने वाले सोनू कुमार ने कहा, “आम दिनों में इस हिस्से को गाड़ी से पार करने में एक घंटा लग जाता था। अब यहां सन्नाटा है।”

यह संकरी लेकिन घनी बाजार पट्टी है, जिसमें होटल, मॉल, कपड़े की दुकानें, सुपरमार्केट, दवा दुकानें, मोबाइल स्टोर, फर्नीचर शोरूम, फल विक्रेता,सब कुछ मौजूद है। लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत से ही ग्राहकों का आना लगभग बंद हो गया है।

श्रीवास्तव ने बताया कि कई व्यापारी अब अपने सप्लाई ऑर्डर रद्द करने पर विचार कर रहे हैं।

“कुछ के पास पहले ही माल आ चुका है और अब नुकसान उठाना पड़ रहा है। कुछ लोग छठ पूजा के ऑर्डर भी रद्द करने की सोच रहे हैं। नेपाल को उबरने में लंबा वक्त लगेगा।

बाहर माहौल उदासी से भरा है। एक होटल के पास कर्मचारी नेपाल की लूटपाट पर चर्चा कर रहे थे। “ज्वेलरी की दुकान में घुसकर सोना लूट लिया गया… अगर हम भी जान पर खेलकर जाते तो मालामाल हो जाते,” किसी ने मज़ाक किया और बाकी लोग हल्का-सा हंसे, लेकिन जल्द ही बातचीत गंभीर हो गई।

एटीएम, बैंक, दुकानें, मॉल—सब लूट लिया गया। सरकार से लड़ाई में उन्होंने खुद को ही नुकसान पहुंचा लिया। उन्हें लूटपाट का सहारा नहीं लेना चाहिए था,” एक ने कहा।

रक्सौल की करेंसी एक्सचेंज सेवाएं, जो सीमा-पार व्यापार के लिए ज़रूरी हैं, भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। एक मनी चेंजर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा—हम रोज़ 5 लाख रुपये का करेंसी एक्सचेंज करते थे। अब मुश्किल से 5,000 रुपये हो पा रहा है।”

एक स्थानीय ट्रांसपोर्ट एजेंसी मालिक ने भी यही चिंता जताई।

“हम रोज़ 15 से 20 ट्रकों का कागज़ी काम करते थे, कभी-कभी 50 तक। लेकिन पिछले पांच दिनों में एक भी ट्रक नहीं आया। कल सिर्फ़ खराब होने वाले माल की ढुलाई की इजाज़त मिली है।”

फल विक्रेता शंभु यादव बोले, “पिछले दिनों हमें बिना मुनाफे के ही फल बेचना पड़ा ताकि पूंजी वापस आ सके। ये चीज़ें जल्दी बिकें तभी पैसा बचता है, नहीं तो सब खराब हो जाता है।”

मोबाइल और ज्वेलरी दुकानदार भी, जो दुर्गा पूजा और धनतेरस पर अच्छे कारोबार की उम्मीद लगाए बैठे थे, अब मायूस हैं।

“सब कुछ तैयार था—स्टॉक, डिस्प्ले, स्टाफ—लेकिन नेपाल की घटनाओं ने पूरा माहौल बिगाड़ दिया। अब कोई उम्मीद नहीं बची,” एक ज्वेलरी दुकान मैनेजर ने कहा।

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