इस कंट्री में नहीं बचा एक भी ग्लेशियर, अब इन देशों की बारी
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इस कंट्री में नहीं बचा एक भी ग्लेशियर, अब इन देशों की बारी

ग्लेशियर धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे है या फिर सिकुड़ते जा रहे हैं. वेनेजुएला दुनिया का पहला ऐसा देश बन चुका है. जहां अब एक भी ग्लेशियर नहीं बचा है.


Glacier: ग्लेशियर साफ पानी का सबसे बड़ा स्रोत माने जाते हैं. इसके पानी में काफी पोषक तत्व मिलते हैं, जो इसके पानी को पीने योग्य बनाते हैं. इन ग्लेशियरों से ही कई नदियों का उदगम होता है, जो कई इलाकों को जीवन देती हैं और करोड़ों लोगों का प्यास बुझाती हैं. हालांकि, ग्लोबल वॉर्मिंग समेत कई कारणों से ग्लेशियर धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे है या फिर सिकुड़ते जा रहे हैं. वेनेजुएला दुनिया का पहला ऐसा देश बन चुका है. जहां अब एक भी ग्लेशियर नहीं बचा है. वहीं, आने वाले समय पर कई देशों में इस तरह की स्थिति आने वाली है. अगर दुनिया के सारे ग्लेशियर खत्म हो गए तो समुद्र के किनारे बसे सारे इलाके डूब सकते हैं.

आखिरी ग्लेशियर भी लगभग खत्म

वेनेजुएला में मौजूद पांच ग्लेशियर पहले ही गायब हो चुके थे और अब आखिरी ग्लेशियर भी लगभग खत्म हो गया है. विज्ञान पर काम करने वाली संस्था इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव के अनुसार, वेनेजुएला में साल 2011 तक पांच ग्लेशियर खत्म हो चुके थे और अब आखिरी ग्लेशियर हम्बोल्ट भी लगभग खत्म होने की कगार पर है. क्योंकि इसका जो बर्फीला हिस्सा बचा है, उसे ग्लेशियर नहीं बल्कि बर्फ का मैदान कहा जा रहा है.

इन देशों की अगली बारी

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, ग्लेशियर उसे कहा जाता है, जो कम से कम 10 हेक्टेयर में फैला होता है. जबकि वेनेजुएला का हम्बोल्ट महज 2 हेक्टेयर से भी कम जगह पर सिमट कर रह गया है. ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में इंडोनेशिया, मैक्सिको और स्लोवेनिया में भी एक भी ग्लेशियर न बचे.

जीवनदायिनी हैं ग्लेशियर

ग्लेशियर को दो भागों में विभाजित किया जाता है. एक ग्लेशियर पहाड़ों पर पाए जाते हैं. वहीं, दूसरे तरह के ग्लेशियर घाटी में मिलते हैं. पर्वतीय ग्लेशियर पहाड़ों पर जमी बर्फ की मोटी परत होती है, जो नीचे की तरफ आकर नदियों से मिलती है. इनसे दुनिया भर में 70 फीसदी पीने का पानी मिलता है. ग्लेशियर धरती के 10 प्रतिशत हिस्से पर मौजूद हैं. जिनमें अंटार्कटिका भी शामिल है. दुनिया के सबसे ज्यादा ग्लेशियर अंटार्कटिका में हैं. इस महाद्वीप की वजह से ही धरती पर जीवन संभव है. इसके न होने पर धरती पर इतनी अधिक गर्मी होती कि पेड़-पौधे, जीव-जंतु कोई भी जीवित न रह पाता. अंटार्कटिका का दक्षिणी महासागर लगभग 75 फीसदी गर्मी को सोखता है.

ग्लेशियर पिघले तो डूब जाएंगे ये देश

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डेटा के अनुसार, भारत में साढ़े 16 हजार से अधिक ग्लेशियर हैं. नेचर पत्रिका में छपी स्टडी के मुताबिक, साल 2000 से ग्लेशियरों के परतों के पतले होने की रफ्तार लगभग दोगुनी हो गई. एक अनुमान के मुताबिक, अगर दुनिया भर के सारे ग्लेशियरपिघल जाएं तो समुद्र का तल 230 फीट तक ऊपर आ जाएगा. ऐसा होने पर समुद्र के किनारे पर बसे सारे शहर डूब जाएंगे. यानी कि लंदन, वेनिस, नीदरलैंड, फ्लोरिडा, सैन डिएगो, चीन, बांग्लादेश समेत भारत के तटीय इलाके समुद्र के अंदर समा जाएंगे.

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