One nation, one election: कोविंद समिति रिपोर्ट में दिया गया 7 देशों का हवाला, जताया इस बात का शक
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One nation, one election: कोविंद समिति रिपोर्ट में दिया गया 7 देशों का हवाला, जताया इस बात का शक

एक राष्ट्र, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति ने सात देशों में चुनाव प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की, जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी.


Simultaneous Elections: 'one nation, one election' यानी कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” पर उच्च स्तरीय समिति ने सात देशों में चुनाव प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की, जिसे बुधवार (18 सितंबर) को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि समिति ने दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस की समान चुनाव प्रक्रियाओं का अध्ययन करके एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में सिफारिश की है.

मार्च में रिपोर्ट पेश

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुमु को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई थी और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई थी. समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले कई पूर्व चीफ जस्टिस, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और वर्तमान और पूर्व राज्य चुनाव आयुक्तों से भी परामर्श किया था. कथित तौर पर तीन पूर्व हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने एक साथ चुनाव कराने के विचार पर आपत्ति जताई थी. जबकि भारी बहुमत ने इसका समर्थन किया था.

तुलनात्मक विश्लेषण

बुधवार को मंजूर की गई रिपोर्ट के अनुसार, अन्य देशों का तुलनात्मक विश्लेषण इस उद्देश्य से किया गया था कि चुनावों में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं का अध्ययन किया जाए और उन्हें अपनाया जाए. रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण अफ्रीका में मतदाता राष्ट्रीय विधानसभा और प्रांतीय विधानमंडल दोनों के लिए एक साथ मतदान करते हैं. हालांकि, नगरपालिका चुनाव पांच साल के चक्र में प्रांतीय चुनावों से अलग आयोजित किए जाते हैं. 29 मई को दक्षिण अफ्रीका में एक नई राष्ट्रीय विधानसभा के साथ-साथ प्रत्येक प्रांत के लिए प्रांतीय विधानमंडल का चुनाव करने के लिए आम चुनाव होंगे.

स्वीडिश प्रक्रिया

पैनल ने कहा कि स्वीडन आनुपातिक निर्वाचन प्रणाली का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि राजनीतिक दलों को उनके वोटों के हिस्से के आधार पर निर्वाचित विधानसभा में कुछ सीटें आवंटित की जाती हैं. उनके पास एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें संसद (रिक्सडाग), काउंटी परिषदों और नगर परिषदों के चुनाव एक ही समय पर होते हैं. ये चुनाव हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं. जबकि नगरपालिका विधानसभाओं के चुनाव हर पांच साल में एक बार सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं.

जर्मन मॉडल

लोकसभा के पूर्व महासचिव और समिति के सदस्य सुभाष सी. कश्यप ने बुंडेसटाग द्वारा चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया के अतिरिक्त, रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव के जर्मन मॉडल का समर्थन किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने जापान में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में भी बताया. जापान में प्रधानमंत्री की नियुक्ति सबसे पहले राष्ट्रीय संसद द्वारा की जाती है और उसके बाद सम्राट द्वारा उसे स्वीकार किया जाता है. उन्होंने जर्मन या जापानी मॉडल जैसा मॉडल अपनाने की वकालत की. उनके अनुसार, यह भारत के लिए भी फायदेमंद होगा.

इंडोनेशिया का उदाहरण

साल 2019 से इंडोनेशिया एक साथ चुनाव आयोजित कर रहा है. एक ऐसी प्रणाली जहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों विधायी निकायों के सदस्य एक ही दिन चुने जाते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि मतदाता गुप्त मतदान करते हैं और दोहराव रोकने के लिए अपनी अंगुलियों को अमिट स्याही में डुबोते हैं. राष्ट्रीय संसद के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दलों को 4 प्रतिशत वोटों की आवश्यकता होती है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जीतने के लिए कुल वोटों के 50 प्रतिशत से अधिक और देश के आधे से अधिक प्रांतों में कम से कम 20 प्रतिशत वोटों की आवश्यकता होती है. इसमें कहा गया है कि 14 फरवरी, 2024 को इंडोनेशिया ने सफलतापूर्वक एक साथ चुनाव कराए. इसे दुनिया का सबसे बड़ा एक दिवसीय चुनाव कहा जा रहा है. क्योंकि लगभग 200 मिलियन लोगों ने सभी पांच स्तरों- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद सदस्य, क्षेत्रीय विधानसभाओं के सदस्य और नगरपालिका चुनावों में मतदान किया.

संदेह

हालांकि, भारत में चुनावों का पैमाना इन देशों की तुलना में बहुत बड़ा है. हाई कोर्ट के जिन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों से बात की गई, उनमें से नौ ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया. जबकि तीन ने चिंता या आपत्ति जताई. दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा का विरोध करते हुए कहा कि इससे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है, साथ ही विकृत मतदान पैटर्न और राज्य स्तरीय राजनीतिक बदलावों की चिंता भी पैदा हो सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक जवाबदेही में बाधा आती है. क्योंकि निश्चित कार्यकाल प्रतिनिधियों को प्रदर्शन की जांच के बिना अनुचित स्थिरता प्रदान करता है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती देता है.

लोकतांत्रिक सिद्धांत एक प्रमुख चिंता

कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने भी एक साथ चुनाव कराने का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है. मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव बनर्जी ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया था. क्योंकि उन्हें चिंता थी कि इससे भारत का संघीय ढांचा कमजोर होगा और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने लगातार मध्यावधि राज्य चुनावों को दर्शाने वाले अनुभवजन्य आंकड़ों का हवाला दिया, जिसमें लोगों को अपनी पसंद का चुनाव करने की अनुमति देने के महत्व पर जोर दिया गया. उन्होंने भ्रष्टाचार और अकुशलता से निपटने के लिए चुनावों के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषित किए जाने को अधिक प्रभावी सुधार बताया.

मुख्य न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्तों ने किया समर्थन

हालांकि, कोविंद समिति की रिपोर्ट के अनुसार, समिति द्वारा परामर्श किये गए सभी चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे और जस्टिस यूयू ललित ने लिखित जवाब दिये, जो एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में थे. पैनल द्वारा परामर्श किए गए सभी चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया. पैनल द्वारा परामर्श किए गए वर्तमान और पूर्व राज्य चुनाव आयुक्तों में से सात ने इस विचार का समर्थन किया. जबकि तमिलनाडु के पूर्व चुनाव आयुक्त वी पलानीकुमार ने चिंता व्यक्त की.

राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक मुख्य चिंता यह थी कि चुनावों के दौरान स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दों का व्यापक प्रभुत्व होता है. आयुक्त ने आशंका जताई कि इस प्रवृत्ति से क्षेत्र-विशिष्ट चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने में कमी आ सकती है और स्थानीय शासन की प्रभावशीलता कम हो सकती है. इसमें कहा गया है कि इसके अलावा आयुक्त ने चुनावी जनशक्ति की कमी के गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला तथा चुनावों के निर्बाध और कुशल निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों को बढ़ाने की अनिवार्यता पर बल दिया.

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