File photo shows Pakistani army tanks roll down during a military exercise in Jhelum district
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फाइल फोटो में पाकिस्तानी सेना के टैंक पाकिस्तान के झेलम ज़िले में एक सैन्य अभ्यास के दौरान दिखाई दे रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बने युद्ध जैसे हालात में, दोनों में से किसी भी पक्ष ने एक-दूसरे की सीमा का उल्लंघन नहीं किया। | एपी/पीटीआई

ऑपरेशन सिंदूर ने युद्ध में क्या दिखाया: वायुसेना की ताकत में वृद्धि, ज़मीन पर एक भी सैनिक नहीं

एक समय था जब युद्ध की कल्पना भी ज़मीन पर सैनिकों के बिना नहीं की जा सकती थी; ऑपरेशन सिंदूर ने इस सोच को पूरी तरह बदल दिया है।


“युद्ध” शब्द सुनते ही आपके दिमाग में क्या आता है? अगर आपकी जानकारी फिल्मों से भी आई हो, तो शायद आपको लड़ाई की वर्दी में सैनिक, अत्याधुनिक राइफलों से लैस, आमने-सामने की गोलीबारी या हाथापाई करते हुए, ज़मीन पर खून से लथपथ शव और दर्द से कराहते घायल सैनिकों की तस्वीर दिखेगी।

अब कट टू 2025 की हकीकत।

ऑपरेशन सिंदूर 7 मई को रात 1:30 बजे शुरू हुआ और 10 मई शाम 5 बजे युद्धविराम (जिसे पाकिस्तान ने कई बार तोड़ा) लागू होने तक भारत ने: पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर तबाह किए, 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया, लाहौर में एक एयर डिफेंस रडार को उड़ा दिया, 11 पाकिस्तानी एयरबेस पर हमला किया, जिससे उनकी वायुसेना के 20% ढांचे को नुकसान पहुंचा, इस्लामाबाद के पास महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों पर प्रहार किया, पाकिस्तान की सरहद के सैकड़ों किलोमीटर भीतर तक पहुंच बना ली, बिना एक भी भारतीय सैनिक को सीमा पार भेजे।

इस पूरी कार्रवाई में भारतीय सशस्त्र बलों के केवल 5 जवान शहीद हुए, जबकि 12 नागरिकों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश पाकिस्तानी गोलीबारी और बमबारी के कारण मारे गए। दूसरी ओर, 35–40 पाकिस्तानी सेना और वायुसेना के जवान मारे गए।

इस मिशन में सटीक लक्ष्य साधने वाले हथियार (PGMs) और स्मार्ट मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ, जो जीपीएस और इन्फ्रारेड सेंसर जैसी अत्याधुनिक तकनीक से लैस थीं। इससे युद्ध की शैली में एक क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिला।

1999 के कारगिल युद्ध से कितनी अलग यह तस्वीर थी।

तकनीकी रूप से देखा जाए तो कारगिल युद्ध और ऑपरेशन सिंदूर दोनों ही “युद्ध” की श्रेणी में नहीं आते, लेकिन यदि ऑपरेशन विजय को टाइगर हिल, तोलोलिंग जैसी चोटियों को जीतने और विक्रम बत्रा, योगेंद्र सिंह यादव, मनोज पांडे जैसे वीरों की बहादुरी के लिए याद किया जाता है, तो ऑपरेशन सिंदूर को भारत की तकनीकी क्षमता से जीते गए युद्ध के रूप में याद किया जाएगा, जहां कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे विशेषज्ञों ने LMG चलाने वालों से ज्यादा काम किया।

पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हुआ, और सिर्फ 4 दिनों में वह शांति की गुहार लगाने को मजबूर हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को राष्ट्र को संबोधित करते हुए साफ किया कि भारत नहीं, पाकिस्तान ही वैश्विक मदद मांग रहा था ताकि भारत का हमला रुके।

हर युद्ध में नया गोला-बारूद

हर भारत-पाक युद्ध में नई पीढ़ी के हथियारों पर ध्यान गया, 1965 में पाकिस्तान के अमेरिकी पेटन टैंक, 1999 में भारत की बोफोर्स तोपें। आज, यूक्रेन और गाज़ा में चल रहे युद्धों ने सशस्त्र ड्रोन और एयर डिफेंस सिस्टम (जैसे इज़राइल का आयरन डोम) की अहमियत को सामने लाया।

7-8 मई को, ऑपरेशन सिंदूर की पहली कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने तुर्की के असीसगार्ड सोंगर ड्रोन का इस्तेमाल कर भारत के 36 ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की, ठीक वैसे ही जैसे 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर 3000-5000 रॉकेट दागे थे।

पर भारत ने अपने इंटीग्रेटेड काउंटर-UAS ग्रिड और मिसाइल डिफेंस सिस्टम की मदद से पाकिस्तान के सभी UAVs को मार गिराया। आकाश तीर (स्वदेशी) और S-400 (रूसी निर्मित “सुदर्शन चक्र”) ने सभी ड्रोन और 15 मिसाइलें रोक दीं। वहीं भारत ने इज़राइली हार्पी ड्रोन से लाहौर का एयर डिफेंस सिस्टम तबाह कर दिया।

वायुसेना की ताकत में जबरदस्त इज़ाफा

इस पूरे ऑपरेशन में सबसे बड़ी भूमिका भारतीय वायुसेना ने निभाई, जबकि पहले के युद्धों में सेना अग्रणी भूमिका में होती थी और वायुसेना-नौसेना सहयोगी।

1947 से लेकर 1999 तक वायुसेना का काम होता था सेना के लिए रास्ता साफ करना, दुश्मन ठिकानों पर बमबारी करना, सैनिकों को एयरड्रॉप करना और घायलों को निकालना।

1990-91 के खाड़ी युद्ध में पहली बार देखा गया कि अमेरिका ने ज़मीन पर सैनिक भेजने के बजाय एयर स्ट्राइक से युद्ध जीता। इराक की हार और कुवैत से वापसी मात्र 100 घंटे के ज़मीनी युद्ध में हो गई, जबकि हवाई हमले हफ्तों तक चले।

2025 में भारत ने इससे एक कदम आगे बढ़कर युद्ध लड़ा। पाकिस्तान की सरजमीं पर एक भी भारतीय सैनिक नहीं उतरा, 100 घंटे के लिए भी नहीं।

1947, 1965, 1971 और 1999 में जब-जब भारतीय सैनिक सीमा पार गए, भारी जानमाल का नुकसान हुआ:

1947: ~1,100–1,500 भारतीय सैनिक शहीद

1965: ~3,700 भारतीय सैनिक शहीद

1971: ~3,000 शहीद, ~9,800 घायल

1999: 527 शहीद, 1,363 घायल

इस बार निशाने पर सटीक वार

इन सभी युद्धों में वायुसेना और नौसेना की भूमिका सहायक रही। इस बार भी नौसेना पूरी तैयारी में थी, समुद्र में कराची सहित कई ठिकानों पर वार करने के लिए। पर ज़रूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि भारतीय राफेल जेट, SCALP मिसाइल और HAMMER बम, साथ ही हार्पी ड्रोन, ने इस्लामाबाद के पास महत्वपूर्ण पाक ठिकानों पर सटीक प्रहार किया।

सबसे खास बात रही तीनों सेनाओं का तालमेल, थलसेना, वायुसेना और नौसेना ने संयुक्त रूप से हमले किए।

PGMs के इस्तेमाल का असर साफ दिखा, सटीक निर्देशांक, onboard कंप्यूटर, ग्राउंड मैप, और बेहद कम त्रुटि संभावना (CEP) के साथ सिविलियन को कम नुकसान और अपने सैनिकों की जान की सुरक्षा।

भारत का स्पष्ट संदेश

भारत ने पाकिस्तान को साफ बता दिया कि हम आपके इलाके में कहीं भी सटीक वार कर सकते हैं। आपकी मौजूदा तकनीक से हमारे हमलों को रोकना मुश्किल है और इस पूरी प्रक्रिया में हमारा खुद का नुकसान नगण्य रहेगा। उम्मीद की जा सकती है कि यह एक निवारक के रूप में काम करेगा।

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