
क्या चुनावी लोकतंत्र बचाने की जंग में INDIA ब्लॉक कामयाब होगा?
विपक्षी नेताओं को मतदाता सूची में हेराफेरी का आरोप लगाने और चुनाव आयोग की जवाबदेही की मांग करने पर हिरासत में लिया गया था।
राजधानी दिल्ली ने सोमवार (11 अगस्त) को एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम देखा, जब ‘INDIA’ ब्लॉक के सांसद संसद से चुनाव आयोग (EC) कार्यालय की ओर मार्च करते हुए पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिए गए। बीच रास्ते, ट्रांसपोर्ट भवन के पास रोके जाने पर समाजवादी पार्टी (SP) सांसद अखिलेश यादव बैरिकेड पर चढ़ते नजर आए, जबकि टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और मिताली बाग बेहोश हो गईं। बाद में सभी को छोड़ दिया गया।
इस घटनाक्रम पर The Federal के Capital Beat कार्यक्रम में चुनाव डेटा विशेषज्ञ डॉ. प्यारे लाल गर्ग, पूर्व नौकरशाह ईएएस शर्मा और राजनीतिक संपादक पुनीत निकोलस यादव ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के खिलाफ विपक्ष के इस प्रदर्शन के मायने और कथित चुनावी गड़बड़ियों पर चर्चा की।
विपक्ष की एकजुट लड़ाई
यादव के अनुसार, SIR और उससे जुड़ी मतदाता सूची की अनियमितताओं ने विपक्षी दलों को एकजुट कर दिया है, यहां तक कि आम आदमी पार्टी (AAP) भी, जो पहले ‘INDIA’ ब्लॉक से दूरी बनाए हुए थी, इस मुद्दे पर विरोध में शामिल हुई।
उन्होंने बताया कि मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने विपक्ष की कथा में एकजुटता लाई है। यादव के अनुसार, 250 से अधिक सांसद इस प्रदर्शन में शामिल हुए, जो बिहार और कर्नाटक की महादेवपुरा सीट में कथित गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए गंभीर राजनीतिक कदम था। खड़गे द्वारा आयोजित डिनर भी इसी एकजुटता को बनाए रखने की कोशिश का हिस्सा था।
इस प्रदर्शन की लाइव कवरेज को बीच में रोककर भाजपा की प्रेस कॉन्फ्रेंस दिखा दी गई, जिसमें चुनाव आयोग का पक्ष दोहराया गया। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा चुनावी लोकतंत्र के लिहाज से बेहद अहम है और इसे अधिक सार्वजनिक ध्यान मिलना चाहिए।
उन्होंने EC पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए कहा कि मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट की जगह स्कैन की गई कॉपियां जारी की जा रही हैं, जिससे स्वतंत्र सत्यापन मुश्किल हो गया है। “उन्हें किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता की तरह व्यवहार बंद करना चाहिए।
चुनाव आयोग से जवाबदेही की मांग
पूर्व नौकरशाह ईएएस शर्मा ने EC की प्रतिक्रिया पर चिंता जताई और बताया कि उन्होंने कई पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने AAP की भागीदारी का स्वागत किया और दिल्ली चुनाव से पहले हुए समान खुलासों को याद किया।
शर्मा ने तेजस्वी यादव, भाकपा(माले) नेता दिपांकर भट्टाचार्य और The Reporters’ Collective की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिनमें मतदाता सूची में गड़बड़ियों, यहां तक कि पड़ोसी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों से नाम जोड़े जाने के आरोप लगाए गए।
बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के आरोप
शर्मा ने EC पर संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपने कर्तव्यों की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पत्रकारों, राजनीतिक दलों और जनता से मिले पुख्ता सबूतों पर कार्रवाई से इनकार लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
बिहार में मतदाता सूची संशोधन की पुरानी बेहतर प्रक्रियाओं का उल्लेख करते हुए शर्मा ने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया का मकसद असली मतदाताओं को शामिल करने के बजाय उन्हें बाहर करना लगता है, खासकर अल्पसंख्यक और महिलाओं वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए हैं।
तकनीकी खामियां और चुनावी जोखिम
शर्मा ने EVM की कमजोरियों और टोटलाइज़र के इस्तेमाल न होने पर चिंता जताई, जिससे बूथ-स्तर पर मतदान पैटर्न पहचानकर मतदाताओं पर दबाव या लालच देने का खतरा बढ़ता है।उन्होंने चेतावनी दी कि चुनावी प्रक्रिया की साख दांव पर है और NDA सहयोगियों समेत सभी राजनीतिक दलों को इस बढ़ती नाराजगी को गंभीरता से लेना चाहिए।
EC नेतृत्व पर कड़ा हमला
डॉ. प्यारे लाल गर्ग ने मुख्य चुनाव आयुक्त ग्यानेश कुमार के SIR प्रबंधन को लेकर पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि EC जनता और राजनीतिक पक्षों से संवाद से बच रहा है और उसके कदम लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं।गर्ग ने सुप्रीम कोर्ट से भी ज्यादा उम्मीद न होने की बात कही, भले ही राहुल गांधी की याचिका, The Reporters’ Collective की जांच और मीडिया रिपोर्टें अदालत के सामने हों।
कानूनी दायित्व और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
गर्ग ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23 के तहत, आधार कार्ड न देने पर मतदाता सूची से नाम हटाना गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट को इस प्रावधान के कड़े पालन का आदेश देना चाहिए।उन्होंने कोर्ट पर कानूनी अनिवार्यताओं से हटकर टिप्पणियां करने का आरोप लगाया, जो उनके अनुसार, कानून की भावना से मेल नहीं खातीं।
NDA सहयोगियों और BJP के भीतर चिंता
यादव के अनुसार, BJP सांसद और TDP व JD(U) जैसे NDA सहयोगी भी चिंतित हैं कि SIR विवाद उल्टा असर डाल सकता है। हालांकि, उन्होंने सवाल किया कि क्या यह चिंता वास्तविक कार्रवाई में बदलेगी, क्योंकि इन दलों की राजनीतिक निर्भरता BJP नेतृत्व पर है। असली कसौटी यह होगी कि सुप्रीम कोर्ट चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करता है या नहीं।