
उपराष्ट्रपति की न्यायपालिका पर टिप्पणी से राजनीतिक बवाल, विपक्ष का हमला तो BJP का पलटवार
Dhankhar statement ने देश की संवैधानिक संस्थाओं के बीच भूमिका और सीमाओं को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी है. विपक्ष का कहना है कि संविधान में सभी संस्थाओं की भूमिका तय है.
Opposition protested against Jagdeep Dhankhar: गुरुवार को विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की हाल की न्यायपालिका पर की गई टिप्पणी को लेकर कड़ा विरोध जताया. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), द्रमुक (DMK) समेत कई पार्टियों और वरिष्ठ वकीलों ने धनखड़ के बयान को संविधान और न्यायपालिका की अवमानना के करीब बताया.
बता दें कि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा था कि भारत ने ऐसा लोकतंत्र नहीं चाहा था,जिसमें जज 'सुपर संसद' की तरह काम करें. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 के उपयोग पर भी सवाल उठाए, जिसमें कोर्ट को "पूरा न्याय" सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश देने की शक्ति दी गई है. उन्होंने इसे "लोकतंत्र पर परमाणु मिसाइल" बताया और कहा कि यह ताकत कोर्ट को हर समय उपलब्ध है.
विपक्ष का जवाब
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि हमारे लोकतंत्र में केवल संविधान सर्वोच्च है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राज्यपाल कोई भी पद संविधान से ऊपर नहीं है. उन्होंने 8 अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों को विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा. सुरजेवाला ने इसे “साहसिक और समय पर फैसला” बताया. TMC सांसद कल्याण बनर्जी ने धनखड़ के बयान को "न्यायपालिका के लिए अपमानजनक" बताया और कहा कि एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को अन्य संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करना चाहिए. DMK नेता तिरुचि शिवा ने इसे "अनैतिक" करार दिया और कहा कि कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका पद कितना भी बड़ा हो, कानून से ऊपर नहीं हो सकता.
वरिष्ठ वकीलों की राय
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने अनुच्छेद 142 पर उपराष्ट्रपति की आपत्ति को अनुचित बताया. उन्होंने कहा कि संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को यह ताकत दी है ताकि वह पूरा न्याय कर सके. इसमें राष्ट्रपति की शक्तियों में कोई कटौती नहीं होती.
BJP का पलटवार
इस विवाद के बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) उपराष्ट्रपति के पक्ष में आ गई. भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि संवैधानिक शिष्टाचार की सीख हमें उस पार्टी से नहीं लेनी जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने से मना करती है और दंगाइयों को वोट बैंक के नाम पर बचाती है.