
जम्मू कश्मीर में कई आतंकी तंजीमें सक्रिय, लेकिन TRF क्यों है अलग
जम्मू-कश्मीर में वैसे तो कई आतंकी तंजीमें सक्रिय हैं। लेकिन द रेजिस्टेंस फ्रंट की चर्चा क्यों अधिक हो रही है। यह संगठन घाटी में इतनी तेजी से आखिर कैसे फला फूला।
TRF को सुरक्षा तंत्र के भीतर अब भी कभी-कभी “वर्चुअल फ्रंट” कहा जाता है, क्योंकि इसकी शुरुआत इसी तरह से हुई थी। जब अगस्त 2019 में भारत सरकार ने कश्मीर की स्वायत्तता को खत्म किया तब इस समूह ने सोशल मीडिया पर संदेश प्रसारित करना शुरू कर अपना अस्तित्व बनाया।केंद्र सरकार ने कश्मीर के पुनर्गठन के तहत डोमिसाइल (निवास) दर्जा गैर-स्थानीय लोगों को भी देने का प्रावधान किया, जिससे उन्हें भूमि अधिकार और सरकारी नौकरियों में आरक्षण जैसे लाभ मिलने लगे और यही TRF द्वारा पहलगाम हमले के लिए दी गई कथित वजह भी है।
"द रेजिस्टेंस फ्रंट" (TRF) नाम कश्मीर के पारंपरिक विद्रोही समूहों से एक अलग पहचान रखता है, क्योंकि ज़्यादातर पुराने संगठनों के नाम इस्लामिक होते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि TRF नाम रखने का उद्देश्य एक “तटस्थ छवि” पेश करना था, जिसमें ‘रेजिस्टेंस’ (प्रतिरोध) शब्द कश्मीरी राष्ट्रवाद पर केंद्रित हो।
हालांकि भारतीय अधिकारियों का लगातार यह कहना रहा है कि TRF वास्तव में पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की ही एक शाखा या सिर्फ एक मोहरा है। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह को समर्थन देता है, जिसे इस्लामाबाद नकारता है। पाकिस्तान का कहना है कि वह केवल कश्मीरी लोगों को राजनयिक और नैतिक समर्थन देता है। साथ ही उसने पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले की निंदा भी की है। यह भी कहा जा रहा है कि मंगलवार का हमला असल में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा ही किया गया हो सकता है और TRF ने केवल जिम्मेदारी लेकर भारत की जांच को भटकाने की कोशिश की है।
"द रेजिस्टेंस फ्रंट" (TRF) ने अपने घातक हमलों से पहचान बनानी शुरू की, इसने नई और पुरानी रणनीतियों कॉकटेल बनाया। इसका अंग्रेज़ी नाम सबसे अलग था, और सोशल मीडिया का उपयोग भी विशेष रूप से ध्यान खींचता था। लेकिन कई मायनों में इसने पारंपरिक तरीकों का ही सहारा लिया।
TRF के आने से पहले और 2014 के बाद से कश्मीरी विद्रोही कमांडर ज़्यादा सार्वजनिक छवि अपनाने लगे थे। उनके संगठन सोशल मीडिया पर अपने कमांडरों के वीडियो पोस्ट करते थे। कभी वे सेब के बाग़ों में टहलते दिखते कभी डाउनटाउन में बाइक चलाते या क्रिकेट खेलते। इस सोशल मीडिया अभियान ने भर्ती में तेज़ी ला दी थी। ऐसे ही एक कमांडर था बुरहान वानी जो जुलाई 2016 में एनकाउंटर में मारा गया और उसके बाद बड़े पैमाने पर दक्षिण कश्मीर में हिंसा भी हुई। कड़ाई के साथ हिंसा पर लगामा लगा और TRF के लड़ाकों ने पुराने, आज़माए हुए तरीकों की ओर रुख किया।
TRF का नेतृत्व मोहम्मद अब्बास शेख कर रहा था जो कश्मीर के सबसे पुराने लड़ाकों में से एक था। बताया जाता है कि 1996 में वो बेहद सक्रिय था। उसने श्रीनगर को हमलों का केंद्र बनाया। 2021 में अब्बास शेख के मारे जाने के बाद टीआरएफ के लड़ाके पहाड़ियों के ऊंचे जंगलों की ओर लौट गए। जनवरी 2023 में भारत सरकार ने TRF को एक "आतंकी संगठन" घोषित किया। जैसे-जैसे सुरक्षा बलों द्वारा TRF के अधिक से अधिक लड़ाके मारे गए, उनकी संख्या में गिरावट आई।