'मेक-इन-इंडिया का शेर मार रहा दहाड़, अब भारत को चीनी ड्रैगन की नहीं जरूरत
मेक इन इंडिया पहल को खास तरह से डिजाइन किया गया था. जिसका मकसद घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना, रोजगार पैदा करना और उद्यमशीलता के अवसर प्रदान करना था.
Make in India initiative: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता खुद उसकी मेहनत से है, न कि किसी चीन प्लस वन रणनीति की वजह से. एक दशक पहले शुरू की गई मेक इन इंडिया पहल को एक खास तरह से डिजाइन किया गया था. जिसका मकसद घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना, रोजगार पैदा करना और उद्यमशीलता के अवसर प्रदान करना था.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गोयल ने कहा कि उस समय कोई चीन प्लस वन या चीन विरोधी मूड नहीं था. हम इन सब में सफल रहे हैं. भारत ने अगले मैन्युफैक्चरिंग अभियान के लिए 300 कानूनी बिंदु और धाराएं चुनीं. उन्होंने कहा कि विकसित देशों की भारत में भारी रुचि है, चीन प्लस वन रणनीति के कारण नहीं, बल्कि भारत के अपने प्रतिस्पर्धी लाभों के कारण.
उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया भारत की घरेलू क्षमताओं को मजबूत करने के विश्वास पर आधारित है, न कि 'कहीं भी-लेकिन-चीन' नीति पर. 25 सितंबर, 2014 को शुरू की गई भारत की मेक इन इंडिया पहल का उद्देश्य भारत को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना था. इस कार्यक्रम ने भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ावा देने और देश को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण सफलता देखी है.
गोयल ने कहा कि भारत ने मैन्युफैक्चरिंग में जबरदस्त प्रगति की है और समग्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए तैयार है. यह प्रगति चीन पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से वैश्विक रणनीतियों में बदलाव से जुड़ी नहीं है, बल्कि भारत के अपने निहित लाभों से जुड़ी है.
गोयल ने आगे बताया कि पिछले एक दशक में भारत का परिवर्तन व्यापार करने में आसानी को बेहतर बनाने के उद्देश्य से रणनीतिक सुधारों का परिणाम है. साल 2014 में मोदी सरकार को एक टूटी हुई अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी. पीएम मोदी ने चुनौती का सामना किया, जीएसटी जैसे प्रमुख सुधारों को पेश किया, कानूनों को अपराधमुक्त किया और निवेशकों की चिंताओं को दूर किया. इन उपायों ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद भारत को सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है.
गोयल ने कहा कि भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता देश की अनूठी ताकत में निहित है. उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों के महत्व को रेखांकित किया, जो उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना जैसी पहलों की बदौलत तेजी से बढ़े हैं. व्यापार मंत्री ने कहा कि इन क्षेत्रों ने न केवल उत्पादन बढ़ाया है, बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा दिया और रोजगार पैदा किए हैं. एक मैन्युफैक्चरिंग डेस्टिनेशन के रूप में भारत की अपील तेजी से स्पष्ट हो रही है, वैश्विक कंपनियां देश में अपने उत्पादन ठिकानों का विस्तार कर रही हैं. भारत सरकार का लक्ष्य अगले सात वर्षों में सालाना 110 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करना है. जबकि हाल के वर्षों में यह औसतन 70 अरब डॉलर रहा है.
सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया के निवेशकों के साथ अपनी चर्चाओं पर विचार करते हुए गोयल ने कहा, यह स्पष्ट है कि निर्माताओं को प्रतिस्पर्धी होने और एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बड़ा बाजार हिस्सा हासिल करने के लिए, उन्हें बड़े पैमाने पर और प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पादन करने की आवश्यकता है. भारत अपने निर्णायक नेतृत्व, जनसांख्यिकीय लाभांश, मांग और लोकतांत्रिक कानून के साथ यह प्रदान करता है, जो निवेश की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.