आलू पर क्यों छिड़ी जंग, देश के तीन राज्य आमने सामने
भारत, राज्यों का संघ है, संघवाद की भावना को आगे रखकर आगे चलने की बात भी 1947 में कही गई थी। लेकिन आलू के मुद्दे पर झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच जुबानी जंग जारी है।
Potato Price Rise Issue: यह बात सच है कि भारत 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का संघ है। हर एक राज्य की अपनी पहचान है। लेकिन भारत सबसे बड़ी पहचान। हम सब अलग अलग प्रदेशों के हो सकते हैं लेकिन नागरिक तो भारतीय हैं। अब जब सब भारतीय नागरिक हैं तो राज्य सरकारें विभेद कैसे कर सकती हैं। यह बात भी सच है कि हर एक राज्य की प्राथमिकता अपने राज्य के लोगों को बेहतर सुविधा देना प्राथमिकता होती है और होनी भी चाहिए। लेकिन यह कहां तक सही है कि कोई राज्य दूसरे राज्य के साथ सौतेला व्यवहार करे।
दरअसल इस समय सब्जियों के राजा आलू को लेकर जंग छिड़ी है। इस जंग में तीन राज्य आमने सामने हैं। पश्चिम बंगाल पर झारखंड (Jharkhand) और ओडिशा का आरोप है कि आलू से लदे ट्रकों को ममता बनर्जी की सरकार झारखंड और ओडिशा नहीं जाने दे रही है और इसकी वजह से आलू की कीमतों में इजाफा हो रहा है। कुछ इसी तरह का तर्क पश्चिम बंगाल की सरकार की तरफ से है। उनका भी यही कहना है कि आलू की बढ़ती कीमतों से हमारी जनता परेशान है और उस परेशानी के समाधान की जिम्मेदारी हमारी है। हमने जो भी फैसला लिया है, पश्चिम बंगाल की जनता को ध्यान में रखकर लिया है।
ममता बनर्जी की सरकार में दूसरे राज्यों में आलू की सप्लाई पर रोक लगा दी है। इस फैसले का सबसे अधिक असर झारखंड पर पड़ा है। यहां आलू की कीमतों में 10 रुपए प्रति किलो का इजाफा हुआ है। बंगाल की सरकार ने 27 नवंबर को आदेश जारी किया था। इसी तरह दूसरा प्रभावित राज्य ओडिशा है। ओडिशा के एक मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि बंगाल यह ना भूले के मछली और अन्य जरूरत के लिए वो दूसरे राज्यों पर निर्भर है। जो ट्रक बंगाल की तरफ जाते हैं वो ओडिशा से होकर गुजरते भी हैं। क्या यह अमेरिका और चीन का मसला है। इसी तरह की सूरत जुलाई और अगस्त में भी बनी थी। व्यापारियों को नुकसान भी हुआ था। व्यापारियों का कहना था कि उन्हें दोतरफा नुकसान हो रहा है। ट्रकों में आलू का माल सड़ जाएगा क्योंकि उन्हें दोबारा कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखा जा सकता।
सियासी तौर पर इस तरह के फैसलों से राजनीतिक दलों को फायदा हो सकता है। लेकिन आर्थिक और संघवाद की भावना को यह चोट पहुंचाता है। एक साल पहले यानी साल 2023 में भी अमूल डेयरी के उत्पादों का कर्नाटक में एंट्री का कर्नाटक डेयरी फेडरेशन ने विरोध किया था। विरोध का स्तर इतना अधिक बढ़ा कि राजनीतिक बयानबाजी सड़कों पर प्रदर्शन और होटल व्यवसायियों का बहिष्कार तक शामिल रहा। अगर भारत के संविधान को देखें तो अनुच्छेद में भारत का कोई भी नागरिक,समूह या संगठन देश के किसी भी हिस्से में व्यापार का काम कर सकता है। हालांकि इसमें कुछ न्यायसंगत विभेद की व्यवस्था की गई। लेकिन अगर सरकारें विरोध के इस स्तर पर उतर आएं तो अंदाजा लगा सकते हैं भारत की राजनीतिक व्यवस्था कड़वाहट के दौर से गुजर रही है।