
भारत का न्यूक्लियर मिशन: वादे बड़े, तैयारी कितनी पक्की?
भारत का परमाणु ऊर्जा विस्तार एक बड़ी उपलब्धि बन सकता है, लेकिन इसके लिए मज़बूत नियामक व्यवस्था, जवाबदेही तय करने वाले स्पष्ट कानून, तकनीकी परीक्षण और अनुमोदन, पारदर्शिता और संसदीय बहस अत्यावश्यक हैं। वरना ये ऊर्जा विस्तार विकास से ज़्यादा विनाश लेकर आ सकता है।
भारत ने जुलाई 2025 में अपनी कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हासिल कर लिया। यह लक्ष्य 2030 तक पूरा किया जाना था। लेकिन भारत ने इसे पांच साल पहले ही पार कर लिया। अब केंद्र सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षमता को 2025 के 8.9 गीगावॉट से बढ़ाकर 2032 तक 22.5 गीगावॉट और 2047 तक 100 गीगावॉट करने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में इस दिशा में बड़ी घोषणाएं की गई हैं। लेकिन विशेषज्ञों ने इस विस्तार को लेकर कई खतरे और कमजोरियों की ओर इशारा किया है — खासकर कानूनी व्यवस्था, परमाणु दुर्घटना में ज़िम्मेदारी (liability) और निजी क्षेत्र की एंट्री को लेकर।
बांसवाड़ा में 4x700 मेगावॉट परमाणु संयंत्र की नींव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 सितंबर को राजस्थान के बांसवाड़ा में 4x700 मेगावॉट की स्वदेशी परमाणु परियोजना (MBEAPP) की आधारशिला रखी। इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग ₹42,000 करोड़ बताई गई है। यह परियोजना दो सार्वजनिक उपक्रमों — न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) और एनटीपीसी (NTPC) के संयुक्त सहयोग से संचालित होगी।
निजी कंपनियों के लिए परमाणु ऊर्जा क्षेत्र खोला गया
इससे दो दिन पहले वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने न्यूयॉर्क में घोषणा की कि भारत अब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों को भी प्रवेश की अनुमति देगा — जो अब तक केवल सरकारी क्षेत्र के लिए सीमित था। उन्होंने कहा कि हम लंबे समय से इस दिशा में काम कर रहे थे। कुछ तकनीकी और कानूनी अड़चनें थीं, जिन्हें अब दूर किया जा रहा है।
होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में SMR-300 बेचने की अनुमति
31 मार्च 2025 को अमेरिकी कंपनी होल्टेक इंटरनेशनल ने घोषणा की कि उसे अमेरिका से अनुमति मिल गई है कि वह अपने SMR-300 (300 मेगावॉट के स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स) को भारत की तीन निजी कंपनियों L&T, Tata Consulting Engineers और Holtec Asia को बेच सके। हालांकि, अभी तक होल्टेक भारत की परमाणु रेगुलेटरी संस्था AERB के अधीन नहीं है और उसे भारत में संचालन के लिए लाइसेंस प्राप्त करना बाकी है।
रेड फ्लैग 1: नियामकीय मंजूरी अधूरी
AERB से मंजूरी के बिना SMR-300 रिएक्टर्स भारत में लगाए नहीं जा सकते। इसके लिए अमेरिका की अनुमति में संशोधन भी ज़रूरी होगा।
रेड फ्लैग 2: SMR-300 अभी कहीं प्रयोग नहीं हुआ है
अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DOE) के अप्रैल 2024 के बयान के मुताबिक, SMR-300 अभी कहीं व्यावसायिक रूप से लागू नहीं हुआ है। यह अभी केवल डिज़ाइन और परीक्षण के चरण में है — अमेरिका, यूके और कनाडा में।
123 समझौता और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की कहानी
होल्टेक को दी गई अमेरिका की अनुमति 2008 में भारत-अमेरिका के बीच हुए "123 एग्रीमेंट"** के तहत दी गई है। यह समझौता भारत के परमाणु क्षेत्र में अमेरिकी टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण और सहयोग के रास्ते खोलता है।
"विकसित भारत" के लिए 100 GW परमाणु ऊर्जा लक्ष्य
2025 के बजट में केंद्र सरकार ने विकसित भारत के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन की घोषणा की, जिसके तहत 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य, 5 स्वदेशी SMR विकसित करने का लक्ष्य (2033 तक), ₹20,000 करोड़ का बजटीय प्रावधान और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना है।
रेड फ्लैग 3: नियामकीय ढांचा अभी भी अधूरा
जून 2025 में MoS जितेंद्र सिंह ने बताया कि निजी कंपनियों द्वारा परमाणु संयंत्रों के निर्माण, संचालन और सुरक्षा पर अध्ययन के लिए एक टास्क फोर्स गठित की गई है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का मौजूदा नियामकीय ढांचा अभी इस बदलाव के लिए तैयार नहीं है।
रेड फ्लैग 4: आपदा में ज़िम्मेदारी तय नहीं
परमाणु आपदा की स्थिति में कंपनियों की ज़िम्मेदारी (liability) तय करने वाले कानून आज भी अस्पष्ट हैं। 2010 का "न्यूक्लियर डैमेज के लिए सिविल लाइबिलिटी एक्ट" इस मामले को कवर करता है, लेकिन सरकार इसे "नरम" बनाने की कोशिश में है — ताकि विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करने को तैयार हों। यह चिंताजनक है क्योंकि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में भी Union Carbide को मात्र $470 मिलियन की क्षतिपूर्ति देकर छुटकारा मिल गया था, जबकि मांग $3.3 बिलियन की थी।
रेड फ्लैग 5: भारतीय टैक्सपेयर्स पर आ सकता है मुआवज़े का बोझ
2010 कानून के सेक्शन 7 के मुताबिक, अगर ऑपरेटर (कंपनी) की ज़िम्मेदारी से ज़्यादा नुकसान होता है तो केंद्र सरकार मुआवज़ा देगी— यानी अंततः भारतीय जनता के टैक्स का पैसा लगाया जाएगा। यह प्रावधान बिना पर्याप्त बहस के चुपचाप पास किया गया था।
रेड फ्लैग 6: सिर्फ क्षमता बढ़ाने से नहीं चलेगा काम
हालांकि, भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता में 50% का आंकड़ा पार कर लिया है, लेकिन 74% बिजली अब भी कोयले से ही बन रही है। कोयला मंत्रालय ने अप्रैल 2025 में बताया था कि 2032 तक 80 GW कोयले से बिजली उत्पादन बढ़ाया जाएगा। सौर और पवन ऊर्जा के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा ट्रांसमिशन नेटवर्क और स्टोरेज टेक्नोलॉजी की कमी है।