असहमत सहयोगी-संसद में अपर्याप्त संख्या, PM मोदी के स्वतंत्रता दिवस के वादों को कर सकती है कमजोर
x

असहमत सहयोगी-संसद में अपर्याप्त संख्या, PM मोदी के स्वतंत्रता दिवस के वादों को कर सकती है कमजोर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि सत्तारूढ़ भाजपा यूसीसी और 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के अपने प्रमुख चुनावी वादों को लागू करेगी.


PM Modi Independence Day Address: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद अपने पहले स्वतंत्रता दिवस संबोधन में अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि सत्तारूढ़ भाजपा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के अपने प्रमुख चुनावी वादों को लागू करेगी.

रास्ते में बाधाएं

हालांकि, भाजपा अपने दो वादों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर का दृष्टिकोण सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में नहीं है. अपने चुनावी वादे को लागू करने में भगवा पार्टी के सामने दो बड़ी बाधाएं हैं. पहली यह कि एनडीए के साझेदार समान नागरिक संहिता के समर्थन में नहीं होंगे और दूसरी यह कि सत्तारूढ़ पार्टी के पास एक राष्ट्र, एक चुनाव संबंधी विधेयक को पारित कराने के लिए संसद के दोनों सदनों में आवश्यक संख्या नहीं है.

पूर्वोत्तर में विरोध

एनपीपी के उपाध्यक्ष युमनाम जॉय कुमार ने द फेडरल से कहा कि यूसीसी का क्रियान्वयन पूर्वोत्तर में एक बड़ा मुद्दा है और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का रुख भी वही है. हम देश में यूसीसी को लागू करने के किसी भी कदम का समर्थन नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि यह पूर्वोत्तर में एक बड़ा मुद्दा है और इस क्षेत्र की अधिकांश पार्टियां इस बात पर एकमत हैं कि इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है. हम समझ सकते हैं कि यूसीसी का कार्यान्वयन भाजपा का दृष्टिकोण हो सकता है. लेकिन यह हमारा दृष्टिकोण नहीं है. यूसीसी पर किसी भी तरह के बदलाव को मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा द्वारा सार्वजनिक किया जाएगा और मुझे नहीं लगता कि वह इस मुद्दे पर अपना रुख बदलेंगे. बता दें कि एनपीपी केंद्र में भाजपा की सहयोगी है.

जेडीयू चाहती है आम सहमति

जबकि पूर्वोत्तर के एनडीए साझेदार यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए समर्थन देने से इनकार करने के बारे में अधिक मुखर हैं. वहीं, जनता दल (यूनाइटेड) या जेडीयू जैसे अन्य सहयोगियों के लिए भी स्थिति अलग नहीं है, जो भी यूसीसी के कार्यान्वयन पर सर्वसम्मति से निर्णय चाहते हैं. जेडी(यू) के महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने द फेडरल से कहा कि हम यूसीसी के क्रियान्वयन के खिलाफ नहीं हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही इस फैसले का समर्थन करते हुए एक पत्र लिख चुके हैं. हालांकि, जेडी(यू) का मानना है कि इस मुद्दे पर अधिक विचार-विमर्श होना चाहिए.

त्यागी ने कहा कि सभी हितधारकों को एकमत होना चाहिए और यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए सहमत होना चाहिए. हम चाहते हैं कि इस मुद्दे पर सभी मुख्यमंत्रियों, धार्मिक निकायों, कानूनी विशेषज्ञों और संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ चर्चा की जाए. यूसीसी के लागू होने से पहले सभी हितधारकों को इस पर सहमत होना चाहिए. अगर जरूरत पड़ी तो केंद्र सरकार इस मुद्दे का अध्ययन करने और सभी हितधारकों के बीच आम सहमति बनाने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन कर सकती है.

सभी हितधारकों से परामर्श आवश्यक

भाजपा के लिए और भी मुश्किलें खड़ी करने वाली बात यह है कि एनडीए के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी पर अपने शासन वाले राज्यों में यूसीसी के पक्ष में कानून पारित करके इसे लागू करने की अनुमति देने का आरोप लगाया है. एनडीए नेताओं का तर्क है कि ऐसा कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों के साथ अधिक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि भाजपा को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि देश में राजनीतिक स्थिति बदल गई है और अब संसद में उसके पास पूर्ण बहुमत नहीं है. त्यागी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अक्सर एनडीए के सहयोगियों और राजनीतिक दलों के बीच सरकार और संसद के सुचारू संचालन के लिए आम सहमति बनाने की बात कही है. हमें पूरा भरोसा है कि आम सहमति बनेगी और यूसीसी पर सर्वसम्मति से फैसला लिया जाएगा.

आरएसएस से जुड़े लोगों का विरोध

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के लिए चुनौती सिर्फ़ एनडीए के सहयोगियों से ही नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भी है. आरएसएस से जुड़ा वनवासी कल्याण आश्रम (वीकेए), जो मुख्य रूप से आदिवासियों के साथ काम करता है, पहले ही केंद्र को सुझाव दे चुका है कि आदिवासियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा जाए. देश में यूसीसी लागू करने से पहले वरिष्ठ भाजपा नेताओं को वीकेए के सदस्यों को मनाने का कठिन काम करना होगा.

एक राष्ट्र, एक चुनाव के पक्ष में कोई नहीं?

जबकि केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता पर आम सहमति बनाने के लिए संघर्ष कर रही है. वहीं एक राष्ट्र, एक मतदान को लागू करवाना भी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

हालांकि, एनडीए के भीतर इस महत्वपूर्ण पहल के लिए अधिक समर्थन है. लेकिन भाजपा के लिए समस्या यह है कि इस निर्णय को लागू करने के लिए एनडीए को संसद में कम से कम दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी. साल 2024 के आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास संसद में कानून पारित करने के लिए आवश्यक संख्या नहीं है.

यद्यपि संख्या बल की कमी एक मुद्दा है, फिर भी भाजपा को एक राष्ट्र, एक चुनाव के समर्थन में एनडीए सहयोगियों के बीच आम सहमति बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. जॉय कुमार ने कहा कि हम एक राष्ट्र, एक चुनाव का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं हैं. हमने दोनों मुद्दों पर भाजपा को अपने विचार पहले ही बता दिए हैं और हमारे विचार में कोई बदलाव नहीं आया है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि संसद में भाजपा की ताकत में गिरावट के बावजूद उसकी छवि में कोई बदलाव नहीं आया है. एमपी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के निदेशक यतींद्र सिंह सिसोदिया ने द फेडरल से कहा कि प्रधानमंत्री मोदी इस समय इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर इसलिए बोल रहे हैं. क्योंकि वह नहीं चाहते कि कहानी बदल जाए और वह अपने समर्थकों को यह आभास भी दे रहे हैं कि भाजपा उतनी कमजोर नहीं है, जितना विपक्षी दल लोगों को विश्वास दिलाना चाहते हैं. मोदी यह धारणा बनाना चाहते हैं कि देश में राजनीतिक स्थिति पर अभी भी भाजपा का नियंत्रण है.

Read More
Next Story