गांव की थाली से शहर की डाइनिंग तक: कैसे रागी-ज्वार की रोटियां बनीं हेल्दी सुपरफूड
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गांव की थाली से शहर की डाइनिंग तक: कैसे रागी-ज्वार की रोटियां बनीं हेल्दी सुपरफूड

ज्वार और रागी की रोटियां आज पारंपरिक पोषण और आधुनिक स्वास्थ्य के मेल का प्रतीक बन गई हैं।गांवों के चूल्हों से उठकर ये रोटियां शहरों के स्वास्थ्य-प्रेमी लोगों की पहली पसंद बन चुकी हैं।


तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में एक नई खाद्य क्रांति देखने को मिल रही है। अब चौराहों, गलियों और छोटे स्टॉल्स पर चावल की थालियों की जगह ज्वार और रागी की रोटियों ने कब्जा कर लिया है। कहीं ग्राहक कहते हैं, "बहन, तीन रोटियां और थोड़ा ज्यादा चटनी देना," तो कहीं शाम के वक्त सिर्फ ज्वार की रोटियों की दुकानें सजती हैं। इन पारंपरिक अनाजों की रोटियां अब शहरों के व्यस्त कोनों से लेकर शादी-ब्याह के भोज तक हर जगह दिखने लगी हैं।

COVID के बाद बदली जीवनशैली

कोविड महामारी के बाद लोगों के खाने के तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव आया है। डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और मोटापे जैसी बीमारियों के बढ़ने से लोग लो-कार्ब, हाई-फाइबर फूड की ओर मुड़े। ज्वार, रागी और बाजरा जैसे मोटे अनाज की रोटियों को अब सेहतमंद विकल्प माना जा रहा है।

नए ज़माने का ‘स्मार्ट फूड’

जो रोटियां कभी गांव के गरीबों का खाना मानी जाती थीं, वे अब शहरों के मिडल क्लास और अमीर तबके की थाली में शामिल हो चुकी हैं। हैदराबाद, विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम और गुंटूर जैसे शहरों में रागी और ज्वार की रोटियों की मांग तेज़ी से बढ़ी है। गुंटूर के किसान पी. रामबाबू कहते हैं, “मेरे बेटे की शादी में हमने गांव से रोटी बनाने वाले बुलवाए। सभी मेहमान रोटियों और चटनी का स्वाद लिए बिना नहीं गए।

अब रोटियों से रोजगार

कई स्वरोजगार करने वाले लोग, खासकर महिलाएं और प्रवासी ग्रामीण, अब इन रोटियों की बिक्री से घर चलाते हैं। गुंटूर में 10 रुपये प्रति रोटी, जबकि हैदराबाद और विजयवाड़ा में 15–20 रुपये में बिक रही हैं। नरसापुर की लक्ष्मी, जो अब रोज़ 150-200 रोटियां बनाती हैं, कहती हैं: “पहले ये गांव का खाना था, अब डॉक्टर खुद सलाह देते हैं।

रोटियां हैं सुपरफूड

पूर्व NIN वैज्ञानिक डॉ. दिनेश जी के अनुसार, ज्वार हाई प्रोटीन, फाइबर से भरपूर, वजन घटाने में सहायक और लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला होता है। वहीं, रागी सबसे अधिक कैल्शियम, फाइबर, धीमी पाचन दर, शुगर कंट्रोल में उपयोगी होती है।

ऑर्गेनिक आउटलेट तक फैला नेटवर्क

कृष्णा नगर की किष्टम्मा 15 वर्षों से ज्वार रोटियां बनाती हैं, 1 किलो आटे से 30-35 रोटियां निकलती हैं, हर रोटी 20 रुपये में बिकती है। आंध्र गो पुष्टि की विजयलक्ष्मी ऑर्गेनिक ज्वार और रागी का उपयोग करती हैं — दो रोटियों की प्लेट की कीमत 80-100 रुपये तक होती है।

उत्पादन और मांग में उछाल

2023-24 में भारत में मोटे अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। ज्वार का उत्पादन 4.03 मिलियन टन (2022–23 में 3.81 मिलियन टन) और सबसे ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र (14.04 लाख टन)। वहीं, रागी के उत्पादन में गिरावट देखी गई. यह 1.69 मिलियन टन से घटकर 1.39 मिलियन टन रह गया। प्रमुख उत्पादक कर्नाटक (62.4%), तमिलनाडु और उत्तराखंड है।

मिलेट उत्पादन में नंबर 1

FY24 में कुल उत्पादन: 15.38 मिलियन टन

निर्यात: 1.46 लाख टन (USD 70.9 मिलियन मूल्य)

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