वोटर लिस्ट विवाद: क्या चुनाव आयोग पर उठ रहे हैं सवाल?
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वोटर लिस्ट विवाद: क्या चुनाव आयोग पर उठ रहे हैं सवाल?

चुनाव और लोकतंत्र की नींव लोगों के भरोसे पर टिकी होती है। जब लोग अपने वोट की वैधता पर ही सवाल उठाएं तो लोकतंत्र की आत्मा पर आंच आती है। यही वजह है कि अब चुनाव आयोग और राजनीतिक दल—दोनों के लिए ईमानदारी और पारदर्शिता दिखाना बेहद जरूरी हो गया है।


कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वोटर लिस्ट में बड़ी गड़बड़ियों का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि एक खास विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी को असामान्य रूप से ज़्यादा वोट मिले हैं। उन्होंने दावा किया कि छह महीने तक उनकी टीम ने वोटर लिस्ट की जांच की और कई अनियमितताएं पाई। ऐसे में 'श्रीनि से संवाद" के नये एपिसोड में 'द फेडरल' के एडिटर-इन-चीफ श्री एस श्रीनिवासन ने वोट चोरी के गंभीर आरोपों और इससे जुड़े सियासी घमासान पर विस्तार से चर्चा की।

श्रीनिवासन ने बताया कि राहुल गांधी के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद ये नई कंट्रोवर्सी उठी है। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ़ेंस में कहा कि वोटर लिस्ट का डिजिटल वर्जन उपलब्ध कराया जाए, ताकि गड़बड़ियों को आसानी से पहचाना जा सके। राहुल ने चुनाव आयोग पर संदेह जताया कि वह सभी जानकारी पूरी तरह से साझा नहीं कर रहा है। ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस अब इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की योजना बना रहे हैं। श्रीनिवासन ने बताया कि पहले राहुल गांधी को अमूमन लोग हंसी मजाक में उड़ा देते थे। लेकिन इस बार जब उन्होंने जो आरोप लगाए तो वो काफी गंभीर हैं।


चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल

श्रीनिवासन बताते हैं कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, लेकिन इसके पास हर राज्य में अपने स्थायी कर्मचारी नहीं होते हैं। वो राज्यों के सरकारी कर्मचारियों जैसे स्कूल टीचर, बीडीओ या अन्य अफसरों से काम करवाता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इन कर्मचारियों को ठीक से ट्रेनिंग दी जाती है? क्योंकि गड़बड़ियां अक्सर इन्हीं से होती हैं। अभी चुनाव आयोग जो इंटेंसिव रिव्यू कर रहा है। ये हर चुनाव के पहले होता है। वह इसलिएकिया जाता है, क्योंकि कई लोगों के नाम ट्रांसफर या मृत्यु के बाद भी लिस्ट में रहते हैं। कुछ लोग दो जगह वोटर के रूप में पंजीकृत पाए जाते हैं। जनसंख्या इतनी बड़ी है कि हर नाम की जांच मुश्किल होती है। राज्यों में रिकॉर्ड सिस्टम अभी भी पूरी तरह अपडेटेड नहीं है।

श्रीनिवासन ने बताया कि ये बात मानना पड़ेगा कि इस देश में स्वतंत्रता से लेकर अब तक चुनाव बहुत ही अच्छी तरीके से होते आ रहे हैं। इसको पूरी दुनिया ने देखा है कि इतना बड़ा देश होकर ये कैसे कर पाते हैं। इसमें ये भूमिका सभी अफसरों और कर्मचारियों की रही है। इसके बावजूद गलतियां हो सकती हैं। क्योंकि इतना बड़ा देश और इतनी बड़ी जनसंख्या है। हर एक वोटर लिस्ट में हर एक का नाम लिखना और उसको सही करना आम बात नहीं है। इलेक्शन कमीशन के पूर्व अधिकारी भी मानते हैं कि एकदम 100% सही थोड़ा मुश्किल है।

उन्होंने बताया कि यह पहली दफा नहीं है कि राहुल गांधी ने यह मुद्दा उठाया हो। महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे के बाद राहुल गांधी ने ये बात उठाई थी। मध्य प्रदेश के चुनाव में भी ये बात उठी थी कि ये कैसे हुआ? छत्तीसगढ़ का चुनाव जीतते-जीतते कैसे हार गए? लेकिन बीजेपी ने हमेशा इसका जवाब दिया, क्योंकि तब कांग्रेस पार्टी के पास कोई पक्का आधार नहीं था। लेकिन अब इंडिया गठबंधन की मीटिंग में यह तय किया गय है कि इस बात को और उठाया जाए। इस पर गहनता से काम किया जाए। वहीं, बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा कि राहुल गांधी हार का बहाना ढूंढ रहे हैं। उन्होंने उल्टा वायनाड, अमेठी और बंगाल जैसे इलाकों की मिसालें दीं जहां ‘फर्जी वोटिंग’ के आरोप कांग्रेस पर ही लगे हैं।

कांग्रेस पार्टी ने अभी फिलहाल तो यह तय किया है कि 20 से 25 इस तरह की संसदीय सीट, जहां वो बहुत कम मार्जिन से हारे हैं, वहां अपने तरीके से निरीक्षण करेगी। जैसा कि उन्होंने बेंगलुरु में किया। वहीं, बाकी विपक्ष जैसे कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में उनके साथ शामिल होंगे। बिहार में तेजस्वी उनके साथ शामिल होंगे। इसके अलावा केरल, बंगाल, तमिलनाडु- जहां विपक्षी पार्टियों की सरकार है, वहां भी इस पर गंभीरता से ध्यान दिया जा रहा है। क्योंकि वहां भी चुनाव आने वाले हैं।

श्रीनिवासन के अनुसार, इस मुद्दे के बाद चुनाव आयोग डिफेंसिव मोड में नजर आ रहा है। ऐसे में आयोग को अब और पारदर्शिता से काम करना होगा। जनता की चिंताओं को गंभीरता से लेना होगा। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाकर गड़बड़ियों को कम करना होगा। वोटर लिस्ट अपडेट करने की प्रक्रिया और मजबूत करनी होगी।

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