तो UP में BJP हो जाती पूरी तरफ साफ, माया को राहुल क्यों मान रहे जिम्मेदार
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तो UP में BJP हो जाती पूरी तरफ साफ, माया को राहुल क्यों मान रहे जिम्मेदार

रायबरेली में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि यह समझ के बाहर है कि मायावती इन दिनों ठीक से चुनाव क्यों नहीं लड़ रही। अगर लोकसभा चुनाव में साथ रहीं होती तो नतीजा कुछ और होता।


Rahul Gandhi VS Mayawati: आम चुनाव में अगर बीएसपी सुप्रीमो हम लोगों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी होतीं तो बात कुछ और रही होती। हम तीनों यानी सपा, कांग्रेस और बीएसपी की आंधी में बीजेपी का सफाया हो जाता है। हमने लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती को न्यौता दिया था। लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि इन दिनों वो मन से चुनाव क्यों नहीं लड़ रही है। दरअसल यूपी में बीजेपी की बीएसपी बी टीम थी। अब राहुल गांधी ने अपनी तरकश से तीर निकाल कर निशाना साध दिया तो प्रतिक्रिया भी आनी थी। मायावती ने तल्ख अंदाज में टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हकीकत तो यह है कि कांग्रेस खुद बीजेपी की बी टीम है।

मायावती ने ऐसे साधा निशाना
कांग्रेस पार्टी जिन राज्यों में मजबूत है या जहां उनकी सरकारें हैं वहां बीएसपी व उनके अनुयाइयों के साथ द्वेष व जातिवादी रवैया है, किन्तु यूपी जैसे राज्य में जहाँ कांग्रेस कमजोर है वहाँ बीएसपी से गठबंधन की बरगलाने वाली बातें करना यह उस पार्टी का दोहरा चरित्र नहीं तो और क्या है? अतः इस पार्टी के सर्वेसर्वा श्री राहुल गांधी को किसी भी मामले में दूसरों पर व ख़ासकर बीएसपी की प्रमुख पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में भी जरूर झांक कर देखना चाहिए तो यह बेहतर होेगा। इनको यही सलाह। साथ ही, दिल्ली में बनी नई भाजपा सरकार को यहाँ चुनाव में खासकर जनहित व विकास सम्बंधी किए गए अपने तमाम वादों को समय से पूरा करने की चुनौती है, वरना आगे चलकर इस पार्टी का भी हाल कहीं कांग्रेस जैसा बुरा ना हो जाए।

अब यहां सवाल है कि राहुल गांधी जिस तरह से निशाना साध रहे थे, उनका बयान सच्चाई के कितना करीब है। राहुल गांधी ने रायबरेली में दलित छात्रों के साथ संवाद में कहा कि मान्यवर कांशीराम जी ने बीएसपी गठित की। मायावती जी ने उस मिशन को आगे बढ़ाया। लेकिन आपको नहीं लगता कि अब वो पूरी क्षमता और समर्पण से चुनाव नहीं लड़ रही हैं। सवाल यह है कि अगर मायावती पूरी क्षमता से चुनाव लड़े तो किसका नुकसान अधिक होता। जानकार कहते हैं कि यूपी की सियासत में अब लोगों का टेस्ट समय के साथ बदला है। जिस वोटबैंक को कभी कांग्रेस, बीएसपी अपनी जागीर समझा करते थे, उसमें सेंध लग चुकी है।

यूपी की सियासत में अगर बीजेपी के खिलाफ मुकाबला करना है उस सूरत में तीनों दलों यानी समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी को साथ आना होगा। लेकिन मायावती कहती हैं कि हकीकत में उनका वोटबैंक तो उनके सहयोगी दलों को ट्रांसफर हो जाता है। लेकिन उन्हें फायदा नहीं होता। अगर वो इस तरह की बात कर रही हैं तो उसे आंकड़ों से भी समझना होगा। 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच गठबंधन हुआ था और उसका फायदा बीएसपी को मिला था। इसका अर्थ यह हुआ कि दूसरे दलों का वोट बीएसपी की तरफ ट्रांसफर नहीं होता यह मानना गलत होगा।

जानकार कहते हैं कि अगर आप 2024 के नतीजों को देखें तो बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली है। इसके साथ ही वोट शेयर में भी गिरावट दर्ज की गई। बात यह है कि चुनावी पिच पर सीटों की गणित के साथ अगर केमिस्ट्री भी बन जाए तो आप आसानी से सीट अपने पाले में कर सकते हैं। लेकिन सिर्फ आंकड़ों की गणित से चुनाव नहीं जीत सकते। इसके अलावा चाहे कांग्रेस हो या बीएसपी या समाजवादी पार्टी वोटर्स के मिजाज को समझना पड़ेगा। लेकिन इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि यूपी में विपक्षी दलों के सामने मुश्किलों का माउंट एवरेस्ट खड़ा है।

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