रामायण की विरासत की पुनर्खोज: जनकपुर–अयोध्या कॉरिडोर
x
दक्षिण एशिया में राम और सीता की कालातीत यात्रा का अनुसरण — एक प्राचीन मार्ग, जो आध्यात्मिक पर्यटन और क्षेत्रीय संबंधों को नया रूप दे सकता है

रामायण की विरासत की पुनर्खोज: जनकपुर–अयोध्या कॉरिडोर

नेपाल के मधेश प्रदेश के सांस्कृतिक हृदय जनकपुर को उत्तर प्रदेश के अयोध्या से जोड़ने वाला लगभग 500 किलोमीटर लंबा मार्ग अब नई ऊर्जा के साथ एक आध्यात्मिक विरासत कॉरिडोर के रूप में पुनर्जीवित किया जा रहा है।


Click the Play button to hear this message in audio format

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “कॉरिडोर” की अवधारणा को वैश्विक विमर्श में नई अहमियत तब मिली, जब चीन ने 2013 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की घोषणा की।

बीआरआई का उद्देश्य सड़क, रेल और समुद्री नेटवर्क के व्यापक जाल के ज़रिये महाद्वीपों को जोड़ना है, ताकि भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को नया आकार दिया जा सके। इस आधुनिक पहल से पहले, लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का सिल्क रोड सबसे पुराने अंतरमहाद्वीपीय कॉरिडोरों में गिना जाता था।

लेकिन इन दोनों से भी कहीं अधिक प्राचीन एक और अद्भुत मार्ग दक्षिण एशिया की सभ्यतागत स्मृति में गहराई से समाया हुआ है — जनकपुर–अयोध्या कॉरिडोर।

परंपराओं के अनुसार, जनकपुर से अयोध्या तक का यह मार्ग 10,000 से 17,000 वर्ष पुराना माना जाता है और इसकी उत्पत्ति रामायण काल में बताई जाती है। इस दृष्टि से यह मानव सांस्कृतिक इतिहास के सबसे प्राचीन ज्ञात मार्गों में से एक है। यद्यपि सदियों के दौरान प्राकृतिक और ऐतिहासिक कारणों से इस कॉरिडोर के कुछ हिस्से लुप्त हो गए, लेकिन यह मार्ग कभी पूरी तरह भुलाया नहीं गया।

आज, नेपाल के मधेश प्रदेश के सांस्कृतिक केंद्र जनकपुर को उत्तर प्रदेश की अयोध्या से जोड़ने वाला यह लगभग 500 किलोमीटर लंबा रास्ता फिर से पूरी सक्रियता के साथ पुनर्जीवित किया जा रहा है।

इस पुनरुत्थान को नेपाल और भारत दोनों देशों के लोगों की आकांक्षाओं के साथ-साथ उन सरकारी प्रयासों से भी बल मिला है, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से क्षेत्र को जोड़ने वाले आध्यात्मिक विरासत मार्गों को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं। हाल के वर्षों में इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

अयोध्या से उत्तर प्रदेश–बिहार सीमा तक के नए राजमार्ग खंड लगभग पूरे हो चुके हैं। बिहार वाला हिस्सा भले ही अभी लंबित हो, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में इसके भी जल्द निर्णायक रूप से आगे बढ़ने की उम्मीद है।

जैसे ही बिहार वाला हिस्सा पूरा होगा, पूरा कॉरिडोर पूरी तरह चालू हो जाएगा। नेपाल की ओर सीमा पर स्थित भीठ्ठामोड़ से जनकपुर तक का मार्ग पहले ही पूरा किया जा चुका है। शेष हिस्सों के सफल एकीकरण से अंततः दुनिया भर के करोड़ों श्रद्धालुओं, विशेषकर वैश्विक हिंदू समुदाय को, इन दो पवित्र नगरों के बीच बिना किसी बाधा के यात्रा करने की सुविधा मिलेगी।

ग्रंथ क्या कहते हैं

जनकपुर–अयोध्या कॉरिडोर केवल एक भौगोलिक संपर्क मार्ग नहीं है; यह रामायण की कथाओं से पवित्र हुआ एक मार्ग है।

ल्मीकि की रामायण और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस — दोनों ही ग्रंथ — इस मार्ग का उल्लेख मिथिला की सीता और कोसल के राम के विवाह के संदर्भ में करते हैं।

भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले राम का जन्म अयोध्या में हुआ, जबकि सीता, जिन्हें महालक्ष्मी का दिव्य स्वरूप माना जाता है, मिथिला की धरती से प्रकट हुईं। उस समय मिथिला और कोसल के राज्य दुनिया के सबसे समृद्ध और बौद्धिक रूप से उन्नत क्षेत्रों में गिने जाते थे, जहाँ शिक्षा, दर्शन, वैज्ञानिक चिंतन, कला और आध्यात्मिक साधना में उत्कृष्टता थी।

मिथिला पर राजधानी जनकपुर से ऋषि-राजा सीरध्वज जनक का शासन था, जबकि अयोध्या पर राजा दशरथ का राज था। महाकाव्य में वर्णन मिलता है कि मिथिला में आयोजित धनुष यज्ञ के दौरान राम ने उस दिव्य धनुष को उठाकर तोड़ दिया, जिसे असंख्य योद्धा हिला तक नहीं पाए थे। इसी पराक्रम के कारण राम का सीता से स्वयंवर में विवाह तय हुआ।

इसके बाद राजा जनक ने अयोध्या में एक दूत भेजकर राजपरिवार को विवाह समारोह में आमंत्रित किया।

यह विवाह मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को संपन्न हुआ था, जिसे आज विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह शुभ अवसर 25 नवंबर को पड़ा, जब भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह की वर्षगांठ को सम्मान देने के लिए हजारों श्रद्धालु जनकपुर पहुँचे।

राम–जानकी पथ

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जनकपुर से अयोध्या तक दूत को पहुँचने में चार दिन लगे थे। माना जाता है कि उस समय के सबसे तेज़ यातायात साधन, अर्थात घोड़े पर यात्रा करते हुए, उसने यह दूरी तय की थी। विवाह की बारात भी अयोध्या से जनकपुर चार दिनों में पहुँची थी और इस दौरान तीन रातों तक मार्ग में ठहराव किया गया था। विवाह के बाद राम और सीता बारात के साथ अयोध्या लौटे और यह यात्रा भी चार दिनों में पूरी हुई।

इस प्राचीन मार्ग को ऐतिहासिक रूप से राम–जानकी पथ के नाम से जाना जाता था, और यह नाम आज भी प्रचलित है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भी यह मार्ग श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय रहा। उस समय कई यात्री रेल व्यवस्था की बजाय इसी मार्ग से यात्रा करना अधिक पसंद करते थे। हालांकि, नारायणी नदी पर बगहा पुल के ढह जाने से यह प्राचीन मार्ग बाधित हो गया और धीरे-धीरे यह जनमानस की स्मृति से ओझल होता चला गया।

इस कॉरिडोर की पुनः खोज और उसका दस्तावेज़ीकरण मुख्य रूप से तीन विद्वानों के प्रयासों का परिणाम है— सच्चिदानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राम अवतार शर्मा और उपेन्द्र नाथ मिश्र। अज्ञेय ने 1983 में इस मार्ग को खोजने के लिए एक ऐतिहासिक यात्रा की, जिसका वर्णन उन्होंने अपनी कृति जन, जनक, जानकी में किया। उपेन्द्र नाथ मिश्र ने अपनी अग्रणी पुस्तकों पराशक्ति श्री सीता और अवतरण भूमि सीतामढ़ी (1979) तथा सीता परिणयन (1985) में भी इस मार्ग के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया। वहीं, राम अवतार शर्मा ने जहाँ जहाँ राम चरण चली जाहिं और बनबासी राम और लोक संस्कृति जैसी पुस्तकों के माध्यम से इस विषय पर सबसे विस्तृत कार्य प्रस्तुत किया, जिनमें इस प्राचीन यात्रा से जुड़े स्थलों का विस्तृत विवरण मिलता है।

श्रीयंत्र

इन विद्वानों के विवरणों के आधार पर, बारात ने अपनी यात्रा के दौरान तीन प्रमुख स्थानों पर विश्राम किया था। पहला पड़ाव सीतामढ़ी से लगभग आठ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में पंथ पकड़ में था। दूसरा पड़ाव मोतिहारी से करीब बीस किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में वेदीवन या सीता कुंड में किया गया। अंतिम पड़ाव डेरवा में था, जो वर्तमान में गोरखपुर ज़िले के बरहलगंज क्षेत्र के रामनगर डुमरी गाँव में स्थित है।

ये सभी स्थान उस पारंपरिक लगभग 500 किलोमीटर लंबे मार्ग का अभिन्न हिस्सा हैं, जो वर्तमान नेपाल और भारत के मैदानी क्षेत्रों से होकर राम और सीता के पदचिह्नों का अनुसरण करता है। रोचक तथ्य यह है कि यदि सीधी रेखा में मापा जाए, तो जनकपुर (26.7295° उत्तरी अक्षांश) और अयोध्या (26.7964° उत्तरी अक्षांश) के बीच की दूरी केवल 368 किलोमीटर है, क्योंकि दोनों नगर लगभग एक ही अक्षांशीय रेखा पर स्थित हैं। जब इस सीधी भौगोलिक स्थिति को विवाह की ऐतिहासिक यात्रा के मार्ग से जोड़ा जाता है, तो यह पथ एक त्रिकोणीय ज्यामितीय आकृति बनाता है। यह आकृति श्रीयंत्र से काफी मिलती-जुलती है, जिसे तांत्रिक परंपराओं में शुभता, संतुलन और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक माना गया है।

निहितार्थ

इस प्राचीन कॉरिडोर के पुनर्जीवन का महत्व केवल आध्यात्मिक स्तर तक सीमित नहीं है। यह उन क्षेत्रों के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है, जिनसे होकर यह मार्ग गुजरता है— नेपाल का मधेश प्रदेश, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध होने के बावजूद, ये क्षेत्र लंबे समय से गरीबी, बेरोज़गारी और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे जैसी समस्याओं से जूझते रहे हैं।

धर्मशालाओं, विश्राम गृहों, होमस्टे, ध्यान केंद्रों और सीता–राम की कथाओं पर आधारित डिजिटल इंस्टॉलेशनों जैसी सहायक सुविधाओं के साथ इस कॉरिडोर का विकास स्थानीय अर्थव्यवस्था को उल्लेखनीय रूप से मजबूत कर सकता है। विशेष रूप से धार्मिक पर्यटन में तेज़ी से वृद्धि की संभावना है। दुनिया भर के करोड़ों श्रद्धालु अपने जीवन में कम से कम एक बार इस पवित्र यात्रा को करने की इच्छा रखेंगे, जिससे परिवहन सेवाओं, हस्तशिल्प, आतिथ्य उद्योग, छोटे व्यवसायों और समुदाय आधारित उद्यमों में नए अवसर पैदा होंगे। यह कॉरिडोर युवा उद्यमिता, विरासत शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए भी एक प्रभावी मंच बन सकता है।

गहन सूत्र

अंततः, जनकपुर–अयोध्या कॉरिडोर केवल दो शहरों को जोड़ने वाला मार्ग नहीं है, बल्कि यह सदियों से चली आ रही साझा सभ्यतागत विरासत, भक्ति और सांस्कृतिक पहचान को जोड़ने वाली एक गहन कड़ी है। इसका समयबद्ध पूरा होना न केवल दुनिया के सबसे प्राचीन सांस्कृतिक मार्गों में से एक को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि आर्थिक उन्नति और क्षेत्रीय सौहार्द के नए द्वार भी खोलेगा। इस प्राचीन मार्ग का पुनर्स्थापन एक सांस्कृतिक कर्तव्य होने के साथ-साथ नेपाल और भारत के बीच उन शाश्वत संबंधों को पुनः पुष्ट करने का अवसर भी है, जो इतिहास, पवित्रता और राम–सीता की अमर विरासत के माध्यम से स्थापित हुए हैं।

Read More
Next Story