सुप्रीम कोर्ट से रणवीर को मिली जुली राहत, अरेस्ट पर रोक- शो करने पर पाबंदी
x

सुप्रीम कोर्ट से रणवीर को मिली जुली राहत, अरेस्ट पर रोक- शो करने पर पाबंदी

रणवीर इलाहाबादिया को अब गिरफ्तारी से राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी पर स्टे तो लगाया है लेकिन शो करने पर पाबंदी लगाई है।


Ranveer Allahbadia News: एक कहावत है कि नापतोल के बोलिए हमेशा खुश रहेंगे। बात ऐसी बोलिए जो निंदनीय ना हो। इन सबके बीच चर्चा मशहूर यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया की हो रही है, जो आलोचना के केंद्र में हैं। इंडिया गॉट लेटेंट (India's Got Latent) में की गई टिप्पणी के बाद वो कानूनी आफत में है। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली। लेकिन कानून का डंडा भी चल गया। उनकी टिप्पणी से नाराज लोगों ने जगह जगह एफआईआर दर्ज करायी जिसके बाद गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी थी। लेकिन उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल चुकी है। हालांकि यह राहत पूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court))ने गिरफ्तारी पर रोक लगाई। लेकिन शो करने पर पाबंदी भी लगा दी है।

बार एंड बेंच के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शो में इलाहाबादिया के शब्दों और आचरण की भी आलोचना की। आपने जो शब्द चुने हैं, उनसे माता-पिता शर्मिंदा होंगे। बेटियां और बहनें शर्मिंदा होंगी। पूरा समाज शर्मिंदा होगा। आप और आपके सहयोगी इस हद तक गिर गए हैं, वे भ्रष्ट हो गए हैं। कानून और व्यवस्था का पालन होना चाहिए। उसने माता-पिता के लिए जो बोला उसके लिए उसे शर्मिंदा होना चाहिए। हम हाथी दांत के टॉवर में नहीं हैं और हम जानते हैं कि उसने ऑस्ट्रेलियाई शो की सामग्री की नकल कैसे की। ऐसे शो में चेतावनी होती है।

14 नवंबर, 2024 को खार हैबिटेट में शूट किए गए एपिसोड में शो के पैनल द्वारा लगातार अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया, जिसमें इलाहाबादिया, कॉमेडियन समय रैना, यूट्यूबर आशीष चंचलानी और अन्य शामिल थे। इस शो को कुछ दिनों पहले प्रसारित किया गया था।

विवाद के बाद महाराष्ट्र और असम में इलाहाबादिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।इसके बाद उन्होंने अनुच्छेद 32 के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के दौरान, इलाहाबादिया की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि यूट्यूबर को 10 सेकंड के वीडियो क्लिप के लिए जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं.. जीभ काटने पर 5 लाख का इनाम। यह सब 10 सेकंड के क्लिप के लिए।

क्या आप इस्तेमाल की गई भाषा का बचाव कर रहे हैं?

बार एंड बेंच के मुताबिक न्यायमूर्ति कांत भाषा पर सवाल किया तो उसके जवाब में अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में वो मैं इस्तेमाल की गई भाषा से घृणा करते हैं। इस जवाब पर पीठ ने फिर पूछा कि अश्लीलता और अश्लीलता के मापदंड क्या हैं। समाज में कुछ स्व-विकसित मूल्य हैं और जब हम उन मापदंडों के भीतर व्यवहार करते हैं तो हम जानना चाहते हैं कि याचिकाकर्ता के कहने का मकसद क्या था।

पीठ ने कहा कि इस्तेमाल की गई भाषा पहली नजर में अश्लीलता के बराबर है। अगर यह अश्लील नहीं है, तो क्या है? आप अपनी अश्लीलता कभी भी दिखा सकते हैं और अपनी भ्रष्टता कहीं भी खा सकते हैं।न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि इस मामले से संबंधित केवल दो एफआईआर हैं। केवल दो एफआईआर हैं। एक मुंबई में और एक असम में। स्वतंत्रता एक अलग मुद्दा है। ऐसा नहीं है कि हर मामला आपको लक्षित करता है और आप उलझे हुए हैं। मान लीजिए कि 100 एफआईआर हैं, तो वह कह सकता है कि वह अपना बचाव नहीं कर सकता।

अदालत के इस सवाल पर चंद्रचूड़ ने कहा कि रविवार को तीसरी एफआईआर दर्ज की गई। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि एफआईआर में आरोप अलग हैं। एक एफआईआर में कुछ आरोप हैं और दूसरे में नहीं। अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के खिलाफ अश्लील और गंदी भाषा का इस्तेमाल किया इसलिए आरोप अलग हैं। यदि आप एक व्यक्ति को मारते हैं और दूसरे को मारने का प्रयास करते हैं तो 302 और 307 दोनों लागू होंगे।

न्यायालय ने आगे कहा कि व्यक्ति अपनी लोकप्रियता का लाभ उठाकर समाज को हल्के में नहीं ले सकता।इस तरह के व्यवहार की निंदा की जानी चाहिए। सिर्फ इसलिए कि आप लोकप्रिय हैं, आप समाज को हल्के में नहीं ले सकते। क्या धरती पर कोई ऐसा है जो इस तरह की भाषा को पसंद करेगा। उसके दिमाग में कुछ बहुत गंदगी है जो उल्टी हो गई है। हमें उसकी रक्षा क्यों करनी चाहिए? न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि कई एफआईआर नहीं हैं, बल्कि केवल दो एफआईआर हैं और इलाहाबादिया दोनों मामलों में अलग-अलग अपना बचाव कर सकता है।

पीठ ने पूछा कि अगर केवल दो या तीन एफआईआर हैं तो आप अपना बचाव करें। एक बार जब आप इतनी सारी एफआईआर में उलझ जाते हैं तो आपके अपने बचाव के अधिकार के खिलाफ एक मजबूत बाधा उत्पन्न होती है और इसलिए न्यायालय को आपकी रक्षा करनी चाहिए। लेकिन केवल इसलिए कि एक वादी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है, मैं जानना चाहूंगा कि क्या न्यायालय ऐसे मामले में हस्तक्षेप कर सकता है।

न्यायालय ने राहत देने के आधार के रूप में मौत की धमकियों पर भी विचार करने से इनकार कर दिया।चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय के एक आरोपी को एसिड अटैक की धमकी दी गई है। यह ठीक है। धमकियां तो हर दिन आती रहती हैं। राज्य कोई भी कार्रवाई कर सकता है।"

Read More
Next Story