फर्श से अर्श तक का सफर, रेखा गुप्ता को हर कदम पर मिला RSS का साथ
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फर्श से अर्श तक का सफर, रेखा गुप्ता को हर कदम पर मिला RSS का साथ

उनकी प्रतिभा को पहचानने से लेकर उनके लिए उपयुक्त जीवनसाथी खोजने तक आरएसएस ने रेखा गुप्ता को राजनीति में बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश की.


जब रेखा गुप्ता ने गुरुवार (20 फरवरी) को दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट किया कि वह जमीनी स्तर से उभरी हैं. जिन्होंने छात्र राजनीति, राज्य संगठन, नगरपालिका प्रशासन में सक्रिय रूप से काम किया और अब विधायक तथा मुख्यमंत्री भी बनी हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि वह दिल्ली के विकास के लिए पूरी ऊर्जा के साथ काम करेंगी. पीएम मोदी के ये शब्द महज तारीफ नहीं थी बल्कि, रेखा गुप्ता की प्रगति सच में अद्वितीय है. उनका सफर आसान नहीं था और दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में उनका ताज पहनना एक तीन दशकों लंबी कठिन यात्रा का फल है. जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने हमेशा उनका सपोर्ट किया है.

इन 30 वर्षों में RSS ने गुप्ता का काफी समर्थन किया. जिसमें उनके सार्वजनिक जीवन में आने से लेकर, उनके शादी के लिए एक उपयुक्त वर तलाशने तक, ताकि वह राजनीति में करियर जारी रख सकें.

परिवार का विरोध

कुछ हद तक रेखा गुप्ता की राजनीतिक यात्रा बीजेपी के दिल्ली में सत्ता में लौटने के प्रयासों के साथ जुड़ी हुई है. पार्टी का राष्ट्रीय राजधानी पर नियंत्रण 1998 में सुषमा स्वराज के नेतृत्व में खत्म हुआ था. जबकि गुप्ता 1995 में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ सचिव के रूप में सार्वजनिक जीवन में आईं. गुप्ता ने राजनीति में अपना अगला कदम एक साल बाद 1996 में उठाया. जब उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने कांग्रेस नेता अलका लांबा को हराया. लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं था. जब RSS की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने 1996 में गुप्ता को DUSU अध्यक्ष के पद के लिए मैदान में उतारा तो उनके परिवार ने शुरू में इस विचार को खारिज कर दिया था.

पहली पीढ़ी की राजनीतिज्ञ

गुप्ता का परिवार, जो तब दिल्ली के पीतमपुरा इलाके में रहता था, राजनीति से बिल्कुल अपरिचित था; सिर्फ उनके भाई ने RSS से जुड़ाव दिखाया था. एक वरिष्ठ RSS नेता ने 'द फेडरल' को बताया कि रेखा गुप्ता एक पहली पीढ़ी की राजनीतिज्ञ हैं. उनके पिता एक बैंक में वरिष्ठ अधिकारी थे. जो सोनीपत में तैनात थे और उनका परिवार पीतमपुरा में रहता था. जब रेखा गुप्ता ने ABVP जॉइन किया तो ABVP और RSS के वरिष्ठ नेताओं को उनके बारे में उनके भाई के जरिए जानकारी मिली. जो पीतमपुरा में RSS सदस्य थे.

लेकिन यह सिर्फ उनके भाई की वजह से नहीं था कि RSS ने उन्हें पहचाना. ABVP जॉइन करने और DUSU सचिव बनने के बाद ABVP नेताओं को जल्द ही यह एहसास हुआ कि गुप्ता एक बेहतरीन वक्ता हैं. वह कांग्रेस की छात्र संघठन एनएसयूआई की अध्यक्ष अलका लांबा के मुकाबले छात्रों के मुद्दों को पूरी ताकत से उठाती थीं. लांबा, जो अब कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक हैं, ने भी गुरुवार को गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने पर उनके साथ अपने छात्र जीवन की यादें साझा कीं. उन्होंने कहा कि हमारी विचारधारा में अंतर हो सकता है. लेकिन हम दिल्ली विश्वविद्यालय में साथ काम कर चुके हैं, जब मैं DUSU की अध्यक्ष थी और रेखा गुप्ता सचिव थीं.

RSS द्वारा विवाह की व्यवस्था

चलिए, तीन दशकों पहले की बात करें. 90 के दशक में गुप्ता के परिवार के सदस्य चिंतित थे कि अगर उनकी बेटी राजनीति में सक्रिय हो जाती है और इसे अपने करियर के रूप में चुनती है तो उनके लिए एक उपयुक्त वर खोजना मुश्किल हो सकता है. इसलिए, वे DUSU चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को लेकर संकोच कर रहे थे. लेकिन ABVP और RSS ने हार नहीं मानी.

उस वरिष्ठ RSS नेता ने 'द फेडरल' को बताया कि ABVP के वरिष्ठ नेताओं और दिल्ली में RSS के सदस्यों को रेखा गुप्ता के परिवार को समझाने का काम सौंपा गया था कि वह चुनाव लड़ें. उन्हें मनाने के लिए ABVP के वरिष्ठ नेताओं ने यह वादा किया कि अगर गुप्ता के परिवार ने उन्हें DUSU चुनाव में भाग लेने की अनुमति दी तो वे उनके लिए एक अच्छा वर ढूंढेंगे. उन्होंने अपना वादा निभाया. कुछ साल बाद, उभरती हुई राजनीतिज्ञ का विवाह मनीष गुप्ता से हुआ. जो एक स्वयंसेवक परिवार से थे.

तीव्र उन्नति, फिर एक ठहराव

पहला चरण पार करते हुए गुप्ता ने छात्र नेता के रूप में सफलता पाई. उनके लिए अगला बड़ा पल 2004 में आया. जब उन्हें बीजेपी के युवा मोर्चा का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया. इस राष्ट्रीय भूमिका से, उन्होंने पार्टी के दिल्ली इकाई के महासचिव के रूप में पदभार संभाला. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, जो पार्टी अध्यक्ष थे, ने उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया. वह उन गिने-चुने बीजेपी नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने दिल्ली में सार्वजनिक संगठनों के सभी प्रकार में काम किया है. वह DUSU की सदस्य रही हैं, दो बार उत्तर पीतमपुरा से नगर निगम की पार्षद चुनी गईं (2007 और 2012 में). लेकिन अगला कदम समय ले रहा था.

आगे का रास्ता नहीं आसान

नगर निगम पार्षद के रूप में कार्य करने के बाद गुप्ता को 2015 में पहली बार दिल्ली चुनावों में उम्मीदवार बनने का अवसर मिला. लेकिन वह आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार से हार गईं. साल 2020 के दिल्ली चुनावों में भी वह कोई खास प्रभाव नहीं डाल सकीं. लेकिन इस फरवरी में उन्हें पहली बार शालीमार बाग से विधायक के रूप में चुना गया और अब दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में उनका सफर पूरा हुआ.

लेकिन अब उनका सामने चुनौतीपूर्ण रास्ता है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS), दिल्ली के लेखक और प्रोफेसर अभय दुबे ने 'द फेडरल' से कहा कि दिल्ली सरकार को भारी वित्तीय जिम्मेदारी का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि बीजेपी ने हर महिला को ₹2,500 देने का वादा किया है. नई सरकार ने पानी और बिजली की सब्सिडी को जारी रखने, यमुनाजी की सफाई और दिल्ली में कूड़ा हटाने का वादा किया है. यह कोई आसान काम नहीं है और बीजेपी के पास कोई बहाना नहीं हो सकता. क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर पर भी सत्ता में है.

दुबे ने आगे कहा कि रेखा गुप्ता के लिए असली चुनौती यह है कि उनके पास प्रशासनिक अनुभव नहीं है. उन्होंने पहले दिल्ली विधानसभा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है और नगर निगम में भी उनकी कोई बड़ी नीतिगत भूमिका नहीं रही है. तो अब नई मुख्यमंत्री और बीजेपी को साबित करना होगा. यह सिर्फ बीजेपी के लिए नहीं बल्कि RSS के लिए भी बड़ा परीक्षण होगा. क्योंकि गुप्ता का मुख्यमंत्री बनना RSS द्वारा उनमें 30 वर्षों तक दिखाए गए विश्वास का सबसे बड़ा इम्तिहान होगा.

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