बीएलओ की बढ़ती मौतों से देश में हलचल, SIR पर घमासान
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बीएलओ की बढ़ती मौतों से देश में हलचल, SIR पर घमासान

वोटर लिस्ट संशोधन के भारी दबाव में कई BLO की मौतें; विपक्ष ने EC पर अमानवीय लक्ष्य थोपने का आरोप लगाया, आयोग ने सीमित कार्यभार और राहत की बात कही।


SIR And BLO's Deaths : अगले साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिविसन (SIR) अभियान पर देशभर में संकट गहराता जा रहा है। पिछले एक हफ्ते में कम से कम नौ बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) जो चुनाव आयोग के जमीनी सिपाही होते हैं, की मौत हो चुकी है। इनमें से कुछ ने आत्महत्या की है, जिसकी वजह से चिंता के साथ साथ बहस भी कड़ी हो गयी है।

बीएलओ की मौतों का मामला पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, केरल और यूपी से सामने आये हैं।
इन घटनाओं ने BLO पर बढ़ते दवाब, कम वेतन और डबल-ड्यूटी वाली परेशानियों को देश के सामने ला खड़ा किया है।

विपक्ष बनाम चुनाव आयोग: टाइमिंग पर सवाल

SIR की टाइमिंग पर कांग्रेस के राहुल गांधी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। इनका कहना है कि
संशोधन ठीक चुनावी साल से पहले क्यों?

पाँच राज्यों (बंगाल, तमिलनाडु, गोवा, गुजरात और पुडुचेरी) में 2026 में चुनाव हैं, ऐसे में बीएलओ पर अचानक बोझ क्यों डाला गया?
बिहार के विवाद की तरह ही विपक्ष आयोग की मंशा पर सवाल उठा रहा है।

कुछ नेताओं की भड़काऊ टिप्पणियाँ बढ़ा रहीं तनाव

झारखंड के एक मंत्री ने तो लोगों से कहा कि वे घर पर वोटर वेरिफिकेशन के लिए आने वाले बीएलओ को कैद कर लें। ये बातें बीएलओ के लिए पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा रही हैं।

चुनाव आयोग का जवाब: बोझ 1,000 मतदाताओं से अधिक नहीं होना चाहिए

चुनाव आयोग ने बीएलओ की मौतों पर चिंता जताई है और निर्देश दिया है कि किसी BLO को 1,000 से अधिक मतदाताओं की जिम्मेदारी न दी जाए।

BLO का वार्षिक भत्ता ₹12,000 कर दिया गया है

SIR संबंधित प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर ₹2,000 कर दी गई है

सत्तारूढ़ BJP का कहना है कि विपक्ष BLOs को संसाधन नहीं देता और फिर उनकी मौतों को राजनीतिक बना देता है।

UP BLO की चिट्ठी: अब नहीं कर सकती

उत्तर प्रदेश के नोएडा की BLO पिंकी सिंह ने दबाव में आकर इस्तीफा दे दिया। वे एक सरकारी स्कूल टीचर हैं और उन्हें 10 किलोमीटर दूर स्थित कॉलोनी में 1,179 मतदाताओं का सत्यापन सौंपा गया था।
उन्होंने लिखा मैं इस्तीफा दे रही हूँ… अब यह नहीं कर सकती। न ठीक से पढ़ा पा रही हूँ, न बीएलओ का काम कर सकती हूँ।

बंगाल में तनाव चरम पर: कई मौतें और अस्पताल में भर्ती

दक्षिण 24 परगना के कमल नस्कर तनाव के कारण अस्पताल में भर्ती हुए। नदिया जिले की बीएलओ रिंकू तारफदार ने आत्महत्या कर ली; परिवार ने SIR के दबाव को जिम्मेदार ठहराया।
राज्य में अन्य दो मौतों की भी जानकारी सामने आई है।

अन्य राज्यों से भी मौतें

केरल: BLO अनीश जॉर्ज ने आत्महत्या की

राजस्थान: हरिओम बैरवा की मौत, परिजनों का आरोप वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव

गुजरात: चार स्कूल टीचर्स BLO जिम्मेदारी निभाते हुए अत्यधिक दबाव से दम तोड़ चुके हैं

इन मौतों के बाद कई जगहों पर बीएलओ और कर्मचारी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए, कुछ जगहों पर प्रदर्शन उग्र भी हो गए।

केरल में एक बीएलओ तो तनाव में आकर नग्न अवस्था में फॉर्म भरते हुए पाया गया। चुनाव आयोग ने नोटिस जारी किया है।

विपक्ष का हमला: यह सुधार नहीं, अत्याचार है

राहुल गांधी ने कहा कि SIR के नाम पर पूरे देश में अफरातफरी है। तीन हफ्ते में 16 BLO की जान गई… हार्ट अटैक, तनाव, आत्महत्याएँ! यह सुधार नहीं, थोपा हुआ अत्याचार है।
उन्होंने आरोप लगाया कि बीएलओ को प्रतिदिन न्यूनतम संख्या में सत्यापन पूरा करने का लक्ष्य दिया जा रहा है, और राजनीतिक दल भी दबाव डाल रहे हैं।


ममता बनर्जी ने चुनाव योग पर सीधा हमला करते हुए कहा कि बीएलओ मानवीय सीमा से परे काम कर रहे हैं। उन्होंने SIR को अमानवीय बताया और इसे तुरंत रोकने की मांग की।
ममता बनर्जी ने X पर लिखा कि और कितनी मौतें होंगी? SIR के लिए और कितने शव उठेंगे?

कौन होते हैं बीएलओ, क्या होती है ज़िम्मेदारी ?

बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर, चुनाव आयोग के सबसे निचले स्तर के प्रतिनिधि होते हैं।
उनकी जिम्मेदारी होती है वोटर सूची में प्रत्येक प्रविष्टि का सत्यापन करना।
हजारों फॉर्म वितरित और एकत्र करना
पुराने डेटा से नए डेटा का मिलान
घर-घर जाकर भौतिक सत्यापन करना
और यह सब अपने नियमित नौकरी के साथ करना होता है।

अक्सर एक ही घर पर एक व्यक्ति को कई बार जाना पड़ता है, ताकि पूरे परिवार का सत्यापन हो सके।

बीएलओ देश के चुनावी तंत्र की रीढ़ हैं, लेकिन आज वही सबसे ज्यादा दबाव, असुरक्षा और मानसिक थकान झेल रहे हैं। मौतों की बढ़ती संख्या बता रही है कि चुनाव सुधारों की दौड़ में मानव संसाधन को दरकिनार किया गया है।

विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच चल रही रस्सा कसी के बीच, सवाल यही है कि क्या चुनावी व्यवस्था उन लोगों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित कर पाएगी, जो लोकतंत्र की नींव संभाले हुए हैं?


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