
'सच्चे भारतीय' पर सुप्रीम की टिप्पणी से गरमाई राजनीति, अभिव्यक्ति पर उठा विवाद
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने लद्दाख में भारतीय क्षेत्र पर कथित चीनी कब्जे पर टिप्पणी के लिए राहुल को फटकार लगाई, वहीं भाजपा ने कहा कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सिर्फ राजनीति करते हैं।
4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मानहानि मामले पर सुनवाई करते हुए उनके पक्ष में कार्यवाही पर तीन सप्ताह की रोक लगा दी। हालांकि यह राहत उनके लिए पाइरिक जीत (ऐसी जीत जिसमें नुकसान अधिक हो) साबित हुई, क्योंकि कोर्ट की मौखिक टिप्पणी ने बीजेपी को एक बार फिर उन्हें भारत विरोधी करार देने और भारतीय सेना का “मनोबल गिराने वाला” बताने का मौका दे दिया।
राहुल के बयान पर कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और एजी मसीह की पीठ राहुल गांधी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें लखनऊ की निचली अदालत में उनके खिलाफ मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार किया गया था।
यह मामला राहुल के 2022 में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान दिए उस बयान से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं।” इस बयान को लेकर बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) के पूर्व निदेशक उदय श्रीवास्तव ने लखनऊ कोर्ट में राहुल के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कराया था।
जब राहुल की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग रखी, तो जस्टिस दत्ता ने तल्ख टिप्पणी की “आपको कैसे पता चला कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय जानकारी है? अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसा नहीं कहेंगे।”
जब सिंघवी ने पलटवार करते हुए कहा कि “एक सच्चा भारतीय यह भी कह सकता है कि हमारे 20 जवानों की हत्या चिंता का विषय है,” तो जस्टिस दत्ता बोले, “सीमा पर जब टकराव होता है तो दोनों तरफ हताहत होना असामान्य नहीं है।”
“संसद में क्यों नहीं बोले?” – कोर्ट का सवाल
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी पूछा कि राहुल ने ये बातें सोशल मीडिया पर क्यों कहीं, संसद में क्यों नहीं उठाईं। “जो भी कहना है, संसद में क्यों नहीं कहते? सोशल मीडिया पर क्यों पोस्ट करते हैं?” जस्टिस दत्ता ने सवाल किया।कोर्ट की ये टिप्पणियां सीधे तौर पर उस राजनीतिक विमर्श से मेल खा रही थीं, जिसमें बीजेपी अकसर राहुल गांधी और कांग्रेस को देशविरोधी या सेना का मनोबल गिराने वाला बताकर निशाना बनाती रही है। कोर्ट की इस “अगर आप सच्चे भारतीय होते...” जैसी टिप्पणी को बीजेपी ने तुरंत हथियार बना लिया।
क्या भारत को इससे बेहतर विपक्षी नेता नहीं चाहिए?
सुनवाई के कुछ ही देर बाद केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में मीडिया से बात करते हुए कहा कि राहुल गांधी को बताना चाहिए कि उन्होंने “चीनी कब्जे” की जानकारी कहां से प्राप्त की — भारत सरकार से, चीनी सरकार से या खुद गढ़ी हुई कहानी से?
बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कोर्ट की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा कि राहुल गांधी ने संविधान की शपथ लेकर देश की संप्रभुता की रक्षा का वचन दिया है, तो क्या वो देश की संप्रभुता को नुकसान पहुँचा रहे हैं? क्या वो दुश्मन देशों की मदद कर रहे हैं? क्या वो हमारी वीर सेना का मनोबल गिरा रहे हैं?”
कांग्रेस का जवाब
कांग्रेस पार्टी ने कोर्ट की मौखिक टिप्पणी पर गहरी नाराजगी जताई। पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया पर लिखा किजब संसद चुप करा दी जाती है, तब सड़कों को गूंजना होता है। चीन की घुसपैठ पर सवाल उठाना देश की संप्रभुता का सवाल है।”
राहुल के वकील सिंघवी ने भी ट्वीट करते हुए कहा कि यह विडंबना है कि वास्तविक राहत मिलने के बावजूद हारने वाले लोग विजयी होने का दावा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों का मकसद दोनों पक्षों से प्रतिक्रिया लेना होता है, न कि फाइनल निर्णय देना।कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कोर्ट की टिप्पणी को अनावश्यक राजनीतिक बयान बताया और कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने वाला यह रुख खतरनाक है।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने लोकसभा में और बाहर बार-बार गलवान मुद्दा उठाया है। लद्दाख के स्थानीय लोग, यहां तक कि बीजेपी नेता भी कह चुके हैं कि चीन ने हमारी जमीन पर कब्जा किया है, लेकिन मोदी सरकार चुप है। सुप्रीम कोर्ट से हम उम्मीद करते हैं कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ऐसे शब्दों का प्रयोग न करे जो संविधान और कोर्ट के अपने फैसलों के विरुद्ध हो।”
जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को मानहानि मामले में अस्थायी राहत दी, वहीं मौखिक टिप्पणी ने राजनीतिक हलकों में विवाद खड़ा कर दिया। अब यह बहस केवल कोर्ट की टिप्पणी तक सीमित नहीं, बल्कि यह सवाल उठाता है कि क्या सत्ता की आलोचना करना अब “देशविरोध” बन चुका है? और क्या विपक्ष की आवाज को सीमित करना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है?