
ईरान से लौटे जम्मू-कश्मीर के छात्र, अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंतित, सरकार से मदद की मांग
भारत सरकार के 2023 में दिए आंकड़े के अनुसार लगभग 1,700 भारतीय छात्र ईरान में पढ़ाई करते हैं, जिनमें ज़्यादातर मेडिकल क्षेत्र से हैं, कुछ इंजीनियरिंग के छात्र भी हैं।
ईरान पर इज़राइल के हमलों की रात को धमाकों की आवाज़ से जब फैसल लतीफ़ की नींद टूटी, उसके तीन दिन बाद उन्हें एक मैसेज मिला कि ईरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (IUMS) के सभी छात्रों को अगली सुबह 5 बजे एक तय स्थान पर रिपोर्ट करना है, जहां से उन्हें "स्थानांतरित" किया जाएगा।
कश्मीर के बडगाम ज़िले से ताल्लुक रखने वाले लतीफ़ ने सोचा कि यह अस्थायी विस्थापन होगा, इसलिए केवल अपना मोबाइल, लैपटॉप और दो जोड़ी कपड़े लेकर निकल पड़े। दो दिन क़ुम और फिर दो दिन मशहद में बिताने के बाद लतीफ़ शनिवार (21 जून) की रात श्रीनगर पहुंचे, जब ईरान ने भारतीयों की निकासी के लिए अपना एयरस्पेस खोला।
अब, हालांकि वह जैसे कई अन्य छात्र एक अनिश्चित शैक्षणिक भविष्य को लेकर परेशान हैं। संसद में 2023 के रिकॉर्ड के अनुसार, लगभग 1,700 भारतीय छात्र ईरान में पढ़ाई करते हैं, जिनमें ज़्यादातर मेडिकल क्षेत्र से हैं, कुछ इंजीनियरिंग के छात्र भी हैं। इसका कारण भारत में मेडिकल सीटों की भारी प्रतिस्पर्धा और ईरान में पढ़ाई की किफायती लागत है।
अनिश्चित भविष्य
IUMS में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष के छात्र लतीफ़ क्लीनिकल फेज में थे, जिसमें अस्पतालों में जाकर मरीज़ों के साथ काम करना शामिल होता है। उन्होंने कहा, “हमें बताया गया कि जो भी सामान है, पैक कर लें और स्थानांतरित होना है। हमें नहीं पता था कि इसका मतलब निकासी होगा। हमें लगा था कि दो-तीन दिन में लौट आएंगे, इसलिए मैंने तो टेक्स्टबुक्स भी नहीं लीं। बाकी छात्रों को तो शायद ऑनलाइन क्लासेस मिल जाएं, लेकिन हम फाइनल ईयर के छात्र कैसे एमबीबीएस पूरा करेंगे बिना फिजिकल ट्रेनिंग के? हमने पहले ही इस पर बहुत पैसा खर्च कर दिया है। मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार कुछ करेगी।”
लतीफ़ ने बताया कि ईरान में अनुभव बेहद कठिन रहा। इंटरनेट और वीपीएन बंद थे, क़ुम में एटीएम कार्ड भी काम नहीं कर रहे थे, शायद साइबर हमले के कारण। इस वजह से वे भारतीय दूतावास से मिल रही सहायता के अलावा कुछ भी खरीद नहीं पा रहे थे।
“अंत में, चाहे जितनी भी परेशानियाँ झेली हों, घर लौटकर बहुत राहत महसूस हो रही है। क़ुम पहुंचने के बाद हमें होटल में ठहराया गया और धमाकों की आवाज़ के बिना चैन से सोना संभव हुआ, जो कि ईरान में रोज़मर्रा की बात बन चुकी थी।”
कोई स्पष्टता नहीं
बेनिश फ़ातिमा, जो श्रीनगर से हैं, IUMS में अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। वह भी हाल तक विभिन्न अस्पतालों में ‘रोटेशन’ कर रही थीं। शाफा याह्यायन हॉस्पिटल उनकी आखिरी पोस्टिंग थी, जिसके बगल में स्थित सरकारी इमारत को इज़राइली हमले में नष्ट कर दिया गया।
“पहली रात तो मैं धमाकों के बीच भी सोती रही, लेकिन बाद में दिन में हमले होने लगे। हम सब डर गए थे और भागने को तैयार थे, लेकिन वह भी जोखिम भरा था। अंततः भारतीय दूतावास की मदद से हम क़ुम, फिर मशहद और फिर भारत लौटे। लेकिन सच कहें तो हम लौटना नहीं चाहते थे। ईरान एक बहुत शांतिपूर्ण देश है। हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा।”
उन्होंने अपने करियर को लेकर भी चिंता जताई, “हमें बताया गया है कि यूनिवर्सिटी चाहती है कि हम अगले शनिवार से रोटेशन के लिए लौट जाएं, लेकिन इस हालात में रहना संभव नहीं है। मैंने अपने वॉट्सऐप ग्रुप में लिखा है कि मैं दो हफ्ते कहीं नहीं जा रही। वापसी पर चाहे डबल शिफ्ट करवा लें, पर अभी कुछ स्पष्ट नहीं है।”
छात्र अब भी मशहद में फंसे
शकीरा मंज़ूर, जो पटन (बारामूला) से हैं, बेनिश की सहपाठी हैं। वह अभी घर आई ही थीं कि भविष्य की चिंता सताने लगी।
“दिल्ली से श्रीनगर की यात्रा 23 घंटे की थी, वह भी सामान्य बस में, स्लीपर बस भी नहीं थी। लेकिन ईरान से निकासी प्रक्रिया बहुत ही सुव्यवस्थित थी। यूनिवर्सिटी ने सिर्फ इतना कहा कि इंटरनेशनल छात्र निकल जाएं, उसके बाद से कोई सूचना नहीं मिली।”
शकीरा के मुताबिक, ईरान की अन्य यूनिवर्सिटीज़, शीराज़, इस्फ़हान, अहवाज़ जंदीशापुर और केर्मान मेडिकल यूनिवर्सिटीज़ के भारतीय छात्र अब भी मशहद में हैं और आने वाले दिनों में भारत लौटने वाले हैं।
कठिन समय
उमर बशीर मीर, जो तेहरान स्थित उर्मिया यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में चौथे वर्ष के एमबीबीएस छात्र हैं, 13 जून को दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले थे, लेकिन हालात बिगड़ने से उड़ान रद्द हो गई।
“मैं छुट्टियों में घर आने की योजना बना ही रहा था, इसलिए मेरे सभी एग्ज़ाम पहले से हो चुके थे। लेकिन मेरे साथी और सीनियर इस वक्त बहुत तनाव में हैं। जब मेरी फ्लाइट कैंसिल हुई, तो मैं दोस्त के पास रुक गया। मैंने सोचा था अब घर नहीं जा पाऊंगा। मेरे सभी क्लासमेट्स आर्मीनिया के रास्ते निकाले गए, मैं क़ुम के छात्रों के साथ आया। कश्मीर में हम बहुत कुछ देख चुके हैं, लेकिन ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ।”