
शिबू सोरेन : झारखंड को बनाने वाले क्रांतिकारी आदिवासी स्वर
साहूकारों से लड़ने से लेकर राज्य का दर्जा दिलाने तक, 'दिशोम गुरु' भारत के आदिवासी हृदय क्षेत्र के लिए संघर्ष, बलिदान और सशक्तिकरण की विरासत छोड़ गए हैं.
Shibu Soren : सभी के प्रिय "दिशोम गुरु" या "गुरुजी" कहे जाने वाले शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में लंबे समय से बीमारी से जूझने के बाद निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे।
उनका निधन झारखंड में एक ऐसे युग का अंत है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान बिरसा मुंडा से लेकर स्वतंत्र भारत में शिबू सोरेन तक आदिवासी समाज के उत्थान के लिए लड़ी गई लंबी लड़ाई का साक्षी रहा है।
जहाँ बिरसा मुंडा आज भी आदिवासियों द्वारा "भगवान" के रूप में पूजे जाते हैं, वहीं शिबू सोरेन को "दिशोम गुरु"—आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता—के रूप में संथाल, मुंडा, हो और अन्य आदिवासी समुदायों में अपार सम्मान प्राप्त था। उनके निधन से झारखंड की राजनीतिक और सांस्कृतिक धारा में एक गहरी रिक्तता उत्पन्न हो गई है।
आदिवासी नेता, विवादों के बावजूद पूजनीय व्यक्तित्व
राजनीतिक दलों से परे और आम जनता—चाहे वे आदिवासी हों या गैर-आदिवासी—सभी ने इस छोटे कद के परंतु विशाल व्यक्तित्व वाले आदिवासी नेता को आदर दिया, चाहे वे नरसिंह राव सरकार के दौरान 'नोट के बदले वोट' जैसे विवादास्पद मामलों में घिरे रहे हों।
उन्हें हत्या और सामूहिक हिंसा जैसे गंभीर मामलों का भी सामना करना पड़ा, बावजूद इसके वे झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के अघोषित संरक्षक बने रहे।
शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति के स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी अधिकारों और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए समर्पित कर दिया। वर्ष 2000 में झारखंड के गठन के पीछे उनकी दशकों लंबी लड़ाई थी।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत और क्रांतिकारी मोड़
11 जनवरी 1944 को रामगढ़ ज़िले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत आदिवासियों के भूमि अधिकार और महाजनी शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने से की।
बचपन में उनका नाम शिवलाल था और उन्हें गांव के स्कूल में शिवचरण मांझी के नाम से दाखिल किया गया था। उनके पिता सोबरन मांझी शिक्षक थे और साहूकारों द्वारा आदिवासियों के शोषण का खुलकर विरोध करते थे। नवंबर 1957 में जब सोबरन मांझी की हत्या महाजनी गठजोड़ द्वारा कर दी गई, तो यह घटना शिबू सोरेन के जीवन का निर्णायक मोड़ बन गई।
उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और उन साहूकारों के खिलाफ जनआंदोलन शुरू किया जिन्होंने कर्ज के बदले आदिवासियों की ज़मीन हड़प ली थी। उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में शराबबंदी के सफल अभियान भी चलाए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना और राज्य आंदोलन
1972 में उन्होंने वामपंथी नेता एके रॉय और महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की और झारखंड राज्य की मांग को लेकर संगठित आंदोलन शुरू किया।
उनकी राजनीतिक यात्रा जमीनी कार्यकर्ताओं, आदिवासी सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की ठोस नींव पर आधारित रही।
मुख्यमंत्री और सांसद के रूप में कार्यकाल
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे — 2005, 2008 और 2009 में।
उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
वे 1980, फिर 1989 से 1998 तक, और फिर 2002 से 2014 तक दुमका लोकसभा सीट से सांसद चुने गए।
2014 के चुनावों में झारखंड में JMM को केवल दो लोकसभा सीटें मिलीं, जिनमें से एक शिबू सोरेन ने दुमका से अपनी आठवीं जीत दर्ज की और दूसरी विजय कुमार हांसदा ने राजमहल (संथाल परगना) से जीती।
गंभीर आरोप और कानूनी विवाद
महाजनों के खिलाफ अपने संघर्ष के दौरान शिबू सोरेन पर सामूहिक हत्याओं के भी आरोप लगे। विशेषकर 1970 के दशक में उनके पिता की हत्या के बाद साहूकारों के विरुद्ध छेड़ा गया अभियान उन्हें आदिवासी चेतना का प्रतीक बना गया।
इसके अलावा, वे अपने निजी सचिव शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या के मामले में भी दोषी ठहराए गए। यह कहा गया कि झा कांग्रेस और JMM के बीच नरसिंह राव सरकार को बचाने के लिए हुए गोपनीय लेन-देन की जानकारी रखते थे। इस मामले में दोषी पाए जाने पर उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर कोयला मंत्री पद से इस्तीफा दिया—और हत्याकांड में दोषी ठहराए गए पहले केंद्रीय मंत्री बने।
इसके बावजूद, उनकी लोकप्रियता खासकर संथाल समुदाय में बनी रही, जो अब भी उन्हें प्रतीकात्मक रूप से पूजा जाता है—मजबूत पत्थरों को टोटेम के रूप में रखकर।
जल, जमीन, जंगल: आदिवासी संघर्ष की धुरी
शिबू सोरेन ने हमेशा "जल, जमीन, जंगल" के मुद्दे को आदिवासी एकता का केंद्र बनाया। वे अक्सर कहते,
“स्थानीय लोग जल, जंगल और ज़मीन पर ही जीवित रहते हैं—अगर ज़मीन हाथ से चली गई, तो जीवन भी चला जाएगा।”
हालाँकि, उन पर छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के उल्लंघन का भी आरोप लगा—वित्तीय लाभ के लिए, जो उनके घोषित आदर्शों के विरुद्ध माना गया।
पारिवारिक विरासत और अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी
शिबू सोरेन के निधन के बाद अब झारखंड में JMM की विरासत और संथाल परगना की राजनीतिक पकड़ को बनाए रखने की जिम्मेदारी उनके दूसरे पुत्र और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कंधों पर आ गई है।
शिबू सोरेन की करिश्माई उपस्थिति और संघर्षों की गूंज आने वाले वर्षों तक आदिवासी समुदायों में जीवित रहेगी। झारखंड के निर्माण और आदिवासी अधिकारों के लिए उनका योगदान अद्वितीय और अमर है।