
'यह संशोधन नहीं, वोटरों के अधिकार का है हनन', SIR पर बोले योगेंद्र यादव
एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में राजनीतिक कार्यकर्ता और भारत जोड़ो अभियान के संयोजक ने कहा कि यह अभ्यास अभूतपूर्व, दोषपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित है।
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत वोटर लिस्ट में बदलाव को लेकर देशभर में बहस तेज हो गई है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष है और आम नागरिकों के वोटिंग अधिकारों को प्रभावित कर रही है। राजनीतिक विशेषज्ञ योगेंद्र यादव ने फ़ेडरल से बातचीत में कहा कि यह कदम अब तक का सबसे असामान्य, दोषपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित प्रयास है।
SIR का असली मकसद
योगेंद्र यादव का कहना है कि इसे सिर्फ वोटर लिस्ट साफ करने के लिए पेश किया गया है, लेकिन असलियत में यह 1950 के बाद सबसे बड़े स्तर पर वोटर लिस्ट को फिर से लिखने जैसी प्रक्रिया है। यह कोई सामान्य संशोधन नहीं है। इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग, सरकार और सत्ताधारी पार्टी के बीच सीमाएं धुंधली हो गई हैं। असल में वोटर लिस्ट और भी असत्यापित हो गई हैं। यह विदेशी नागरिकों को हटाने का काम भी नहीं कर रही। बिहार में इस प्रक्रिया से जुड़े कोई ठोस प्रमाण नहीं दिए गए हैं, जबकि असम को पूरी तरह छूट दी गई है। इसका नतीजा बड़े पैमाने पर वोटरों के अधिकारों की हानि हो रहा है।
पहले भी हुआ है वोटर लिस्ट संशोधन
योगेंद्र यादव के अनुसार, पहले कभी भी मौजूदा वोटरों से नई फॉर्म भरवाई नहीं गई थी या नागरिकता साबित करने के लिए कहा नहीं गया था। यह कानून के खिलाफ है। चुनाव आयोग की 2002 की दस्तावेज़ी प्रमाणिकता से पता चलता है कि संशोधन के दौरान नागरिकता निर्धारित नहीं करनी चाहिए। इस बार का SIR छिपा हुआ उद्देश्य रखता है यानी कि बीजेपी के लिए सुविधाजनक वोटरों को बनाए रखना।
सत्ताधारी पार्टी को लाभ
योगेंद्र यादव कहते हैं कि साक्ष्य स्पष्ट हैं कि SIR ने आम नागरिकों और बूथ लेवल अधिकारियों के लिए परेशानी बढ़ा दी। इस प्रक्रिया में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा हटाया गया। यह पूरी तरह बीजेपी, गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग के बीच तालमेल दिखाती है। बिहार में हुए SIR में 3.9 लाख आपत्तियां आईं और 24 लाख नए नाम जोड़े गए। इनमें आधे लोग 25 वर्ष से अधिक उम्र के थे। इसका मतलब है कि कई पुराने वोटरों को वापस जोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
SIR के बजाय क्या किया जा सकता है?
योगेंद्र यादव का सुझाव है कि पहले से मौजूद पारंपरिक तरीका ही अपनाना चाहिए। घर-घर जाकर नामों की जांच। नए नाम जोड़ने और पुराने की पुष्टि और कोई नई फॉर्म या नागरिकता प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। उनका कहना है कि पारदर्शी और ठोस प्रक्रिया अपनाई जाए तो वोटर लिस्ट दशकों तक भरोसेमंद रही है।

