SIR प्रक्रिया पर बढ़ा भ्रम: मतदाता परेशान, BLO पर बढ़ा दबाव
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SIR प्रक्रिया पर बढ़ा भ्रम: मतदाता परेशान, BLO पर बढ़ा दबाव

SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट रखना सही है, लेकिन तरीका जटिल और दबावपूर्ण है। मतदाता और BLOs दोनों ही परेशान हैं और इससे प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।


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देशभर में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) ने मतदाता और बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) के बीच भारी भ्रम और तनाव पैदा कर दिया है। इस प्रक्रिया में लोगों को यह समझना मुश्किल हो रहा है कि कौन सा फॉर्म भरना है, रिश्तेदार फॉर्म भर सकते हैं या नहीं और अगर फॉर्म समय पर नहीं भरा तो नाम मतदाता सूची से हट जाएगा। ऐसे में 'श्रीनि से संवाद'कार्यक्रम में द फेडरल के मुख्य संपादक एस श्रीनिवासन ने इस मु्द्दे पर गहराई से प्रकाश डाला।

फॉर्म 6 और फॉर्म 8 को लेकर भ्रम

एस श्रीनिवासन ने बताया कि फॉर्म 6 नए मतदाताओं को जोड़ने के लिए है। जबकि, फॉर्म 8 मतदाता सूची से नाम हटाने या सुधारने के लिए। कई पुराने मतदाता यह नहीं जान पा रहे कि क्या उन्हें फिर से फॉर्म भरना जरूरी है। इसके अलावा रिश्तेदार किसे माना जाएगा — पति-पत्नी, माता-पिता या कोई अन्य — इसे लेकर भी गलतफहमियां हैं।


स्थानांतरण और पहचान की दिक्कतें

उन्होंने बताया कि कई लोग दूसरे राज्य में चले गए हैं और उनका आधार या EPIC कार्ड पहले राज्य में है। BLOs के सामने कभी-कभी नाम सूची में नहीं दिखते। डिजिटल रिकॉर्ड होने के बावजूद एपिक नंबर नहीं मिल पाना भी बड़ी समस्या है। लोग डरते हैं कि फॉर्म समय पर न भरा गया तो वोट देने का अधिकार छिन सकता है या नागरिकता पर असर पड़ सकता है। बुजुर्ग और शादीशुदा महिलाएँ इस प्रक्रिया से सबसे ज्यादा परेशान हैं।

SIR का मकसद

चुनाव आयोग का लक्ष्य मतदाता सूची को शुद्ध और अपडेट रखना है:-

* डुप्लीकेट नाम हटाना

* मृतक मतदाताओं के नाम हटाना

* नए मतदाताओं को जोड़ना

* स्थानांतरित मतदाताओं को सही सूची में जोड़ना

हालांकि, इस बार प्रक्रिया का तरीका बदल गया है। पहले इतने कम समय में इतना काम नहीं करना पड़ता था और BLOs पर इतना दबाव नहीं था।

BLOs पर दबाव और समस्याएं

एस श्रीनिवासन ने बताया कि BLOs को घर-घर जाकर फॉर्म भरने, जमा करने और डिजिटल रूप से अपलोड करने का काम करना पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में पता सही नहीं होता, कई घरों के दरवाजे बंद रहते हैं, शहरों में फ्लैट्स तक जाकर कई फॉर्म देना पड़ते हैं। BLOs को अपनी जेब से यात्रा करनी पड़ती है और उन्हें अपलोडिंग में भी घंटों लग जाते हैं।

उन्होंने बताया कि केरल, बंगाल, गुजरात और अन्य राज्यों में अत्यधिक दबाव के कारण कुछ BLOs ने खुदकुशी कर ली। चुनाव आयोग को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। कुछ राज्यों में भारी संख्या में नाम जोड़े या हटाए गए हैं। महिलाओं और अल्पसंख्यकों के नाम गलती से हटने की शिकायतें सामने आई हैं। लोग मान रहे हैं कि प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष नहीं है और बहुत दबावपूर्ण बन गई है।

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