समाज के हर वर्ग को साधने की कवायद, क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश
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समाज के हर वर्ग को साधने की कवायद, क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश

नरेंद्र मोदी 3.O पर नजर डालें तो इसमें जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का खास ख्याल रखा गया है.


Narendra Modi Cabinet News: नरेंद्र मोदी ने रविवार को सवा सात बजे के करीब शपथ ली. उनके साथ मंत्रियों को भी पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गई. अब मोदी कैबिनेट की पूरी तस्वीर सामने हैं. अगर इस मंत्रिपरिषद को देखें तो सबसे अधिक प्रतिनिधित्व यूपी को मिला है जहां पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. इसके साथ ही बिहार से कुल आठ लोगों को शपथ दिलाई गई जिसमें बीजेपी और जेडीयू दोनों दलों के सांसद शामिल हैं. अगर मंत्रिपरिषद पर गौर करें तो एक बात स्पष्ट तौर पर नजर आती है कि जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों पर खास ध्यान दिया गया है. मसलन पंजाब और तमिलनाडु जहां से बीजेपी एक भी सीटने में कामयाब नहीं हुई है वहां से भी एक एक चेहरों को शामिल किया गया है. पंजाब से रवनीत सिंह बिट्टू और तमिलनाडु से एल मुरुगन का नाम खास है.

ओबीसी-दलित समाज पर खास जोर
इस मंत्रिमंडल में ओबीसी और दलित समाज की हिस्सेदारी पर खास ध्यान रखा गया है. अगर यूपी की बात करें तो इस सूबे से सिर्फ दो लोग ही कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं. यूपी से कुल 11 लोगों को मंत्री बनाया गया है. इसमें दो ठाकुर, एक ब्राह्मण, लोध,जाट और सिख समाज को मौका मिला है. दलित कम्यूनिटी से दो लोगों को मौका मिला है, जिसमें एसपी सिंह बघेल और कमलेश पासवान का नाम खास है. अगर बात ओबीसी समाज की करें तो मोदी समेत चार ओबीसी को मिला है इसमें अनुप्रिया पटेल, पंकज चौधरी, बी एल वर्मा और खुद पीएम मोदी शामिल हैं. ब्राह्मण समाज से जितिन प्रसाद और ठाकुर बिरादरी से राजनाथ सिंह और कीर्तिवर्धन सिंह शामिल हैं.

क्षेत्रीय समीकरण पर जोर

इसके साथ ही यूपी में क्षेत्रीय संतुलन पर भी खास ध्यान दिया गया है. जैसे अवध इलाके में बीजेपी को सिर्फ दो सीट पर जीत मिली है. लेकिन राजनाथ सिंह और कीर्तिवर्धन सिंह दोनों को मौका मिला है. इसी तरह पूर्वांचल से पंकज चौधरी और कमलेश पासवान को मौका दिया गया है. इसके अलावा पीएम मोदी और अनुप्रिया पटेल खुद पूर्वांचल के इलाके से प्रतिनिधित्व करती हैं. इसके साथ ही अगर बिहार की बात करें तो वहां भूमिहार. ब्राह्मण, यादव और दलित समाज के जरिए जातीय संतुलन को साधने की कोशिश की गई. इसी तरह से झारखंड में अन्नपूर्णा देवी को मौका देकर जातीय संतुलन को साधा गया है. अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो मतुआ समाज के शांतनु ठाकुर को मौका मिला है.

क्या है जानकार की राय
गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार अजीत सिंह कहते हैं कि चुनावों में जीत और हार का सिलसिला तो चलता रहता है. लेकिन जब हार एकतरफा हो तो सोचने की जरूरत पड़ती है. आपने देखा होगा कि 2014 और 2019 के दौरान बीजेपी का प्रदर्शन देश भर में कैसा था. अगर आप 2024 के नतीजों को देखें तो बीजेपी के लिए दो राज्य यूपी और महाराष्ट्र विलेन की भूमिका में नजर आ रहे हैं. हालांकि राजनीति में एक बात और कही जाती है कि अतीत में क्या कुछ मिला उससे आगे बढ़कर नीतियां बनानी चाहिए. किसी भी चुनाव में हार का मतलब यह नहीं होता कि आप हमेशा हारते रहेंगे. इसी तरह से किसी भी चुनाव में जीत का यह मतलब नहीं है कि आपकी हमेशा जीत होती रहेगी.यह सबकुछ ताकतवर या कमजोर विपक्ष पर निर्भर करता है. विपक्ष किस तरह का नैरेटिव सेट करने में कामयाब होता है. लिहाजा आप 2024 के नतीजों की झलक नरेंद्र मोदी की मौजूदा कैबिनेट में देख रहे हैं.

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