हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 1978 वाले फैसले को पलट दिया
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हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 1978 वाले फैसले को पलट दिया

हर निजी संपत्ति भौतिक संसाधन नहीं है लिहाजा राज्य अधिग्रहण नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।


Supreme Court Verdict On Private Properties: हर निजी संपत्ति को सरकार अपने पाले में नहीं ले सकती है। यानी कि अधिग्रहण नहीं कर सकती है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूडड़(CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली 9 जजों की पीठ ने 8-1 की बहुमत से फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय के सामने सवाल था कि क्या राज्य यानी सरकार आम भलाई के लिए वितरण हेतु निजी संपत्तियों को अपने अधीन ले सकता है। अदालत ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए राज्यों द्वारा उन पर अधिकार नहीं किया जा सकता।

कुल 16 याचिकाओं पर फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत के निर्णय द्वारा यह नियम बनाया कि सभी निजी संपत्तियां संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' का हिस्सा नहीं बन सकतीं और राज्य प्राधिकारियों द्वारा "आम भलाई" के लिए उन पर अधिकार नहीं किया जा सकता।सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति से जुड़ी 16 याचिकाओं पर फैसला सुनाया है। जिसमें मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका भी शामिल है। मामला 1986 में महाराष्ट्र में हुए कानून संशोधन से जुड़ा है, जिसमे सरकार को प्राइवेट बिल्डिंग को मरम्मत और सुरक्षा के लिए अपने कब्जे में लेने का अधिकार मिला था। चीफ जस्टिस CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कुल तीन जजमेंट हैं - उनका और छह अन्य जजों का, जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला।


1978 में अधिग्रहण के पक्ष में था फैसला
इस तरह से 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस फैसले को पलट दिया जिसमें सभी निजी संपत्तियों का सरकार अधिग्रहण कर सकती थी। इस पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस राजेश बिंडल और जस्टिस ए जी मसीह शामिल रहे। अदालत ने तर्क दिया कि भारत की अर्थव्यवस्था का मकसद विकासशील देश की चुनौतियों से निपटना है। पीठ ने कहा कि बीते 30 सालों में बदली हुई आर्थिक नीतियों के कारण भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना है। जस्टिस अय्यर के इस विचार से सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं है कि निजी संपत्ति को भी सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि भारत की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य किसी खास आर्थिक मॉडल को फॉलो करना नहीं है। बल्कि उसका मकसद विकासशील देश होने के नाते आने वाली चुनौतियों का सामना करना है।

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