
हाईकोर्ट के जज की रेप पीड़िता पर की गई टिप्पणी को लेकर SC की फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश की आलोचना की जिसमें यह कहा गया था कि बलात्कार पीड़िता ने "खुद मुसीबत को न्योता दिया था"।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस टिप्पणी को असंवेदनशील बताया और इस पर नाराज़गी जताई जिसमें बलात्कार पीड़िता को ही जिम्मेदार माना गया था।
मंगलवार को जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट की इस विवादित टिप्पणी को बेहद असंवेदनशील करार दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बलात्कार आरोपी को ज़मानत देते हुए यह कहा था कि शिकायतकर्ता ने शराब पीने के बाद आरोपी के घर जाने की सहमति देकर "खुद मुसीबत को न्योता दिया"।
यह फैसला ऐसे समय में सामने आया है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य हाईकोर्ट के बलात्कार प्रयास से जुड़े मामले में "असंवेदनशील" आदेश पर रोक लगाई थी।
हाईकोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया कि चूंकि महिला एमए की छात्रा है, इसलिए वह "अपने कार्य की नैतिकता और गंभीरता को समझने में सक्षम थी"। यह आदेश पिछले महीने जस्टिस संजय कुमार सिंह द्वारा पारित किया गया था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा, "हां, ज़मानत दी जा सकती है… लेकिन यह कहना कि उसने खुद मुसीबत को न्योता दिया – ऐसी बातें करते समय, खासकर न्यायाधीशों को, बहुत सावधान रहना चाहिए। एक शब्द इधर-उधर हुआ नहीं कि…"
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखाई भी देना चाहिए। आम व्यक्ति ऐसे आदेशों को कैसे देखेगा, यह भी महत्वपूर्ण है।"
जस्टिस गवई ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की और निर्देश दिया कि "प्रतिवादियों को नोटिस भेजे जाएं और मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाए।"
पिछले सप्ताह, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस नामक नागरिक संगठन और पीड़िता की मां द्वारा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल याचिका पर सुनवाई जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ में हुई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस. फूलका, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने अनुरोध किया कि इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिए गए मामले के साथ जोड़ा जाए, जिसकी सुनवाई 15 अप्रैल को होनी थी।
फूलका ने कोर्ट से कहा, "हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता यानी पीड़िता की मां का नाम आदेश में लिख दिया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश हैं जिनमें स्पष्ट किया गया है कि ऐसे मामलों में नामों को गुप्त रखा जाना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कार्रवाई
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एक अन्य आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी महिला की छाती पकड़ना और उसके पजामे की डोरी खींचना "बलात्कार के प्रयास" की श्रेणी में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने इसे "पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय सोच" बताया था।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में लाया गया था, जिसके बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की।
26 मार्च के आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा था,"सामान्यतः हम इस स्तर पर स्टे (रोक) नहीं देते, लेकिन चूंकि आदेश की पैराग्राफ 21, 24 और 26 की टिप्पणियाँ कानून की किसी भी धारणा के अनुरूप नहीं हैं और अत्यंत असंवेदनशील और अमानवीय हैं, हम इन टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी जोड़ा, "आगे के आदेश तक, हाईकोर्ट के 17 मार्च 2025 के आदेश के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियों पर रोक रहेगी।"
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट में शामिल सभी पक्षों को नोटिस जारी कर उनके जवाब मांगे हैं।
इस रोक का मतलब है कि हाईकोर्ट की वह टिप्पणी किसी भी न्यायिक कार्यवाही में आरोपी पक्ष द्वारा राहत पाने के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया था कि आरोपी पर बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं बनता और उसे केवल "महिला को बेइज्जत करने की नीयत से हमला या आपराधिक बल प्रयोग" जैसी हल्की धाराओं में समन भेजा जाए।