बेल के बाद आरोपी की निजी जिंदगी पर नहीं रखें नजर, सुप्रीम कोर्ट की हिदायत
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बेल के बाद आरोपी की निजी जिंदगी पर नहीं रखें नजर, सुप्रीम कोर्ट की हिदायत

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोई आरोपी जमानत पर रिहा है तो उसकी निजी जिंदगी में पुलिस तांक-झांक नहीं कर सकती.


उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जमानत के लिए ऐसी शर्त नहीं रखी जा सकती जो पुलिस को आपराधिक मामले में आरोपी के निजी जीवन में झांकने की अनुमति दे।न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई जमानत की शर्त को खारिज कर दिया, जिसके तहत एक नाइजीरियाई नागरिक को मादक पदार्थ मामले में जांच अधिकारी के साथ अपने मोबाइल डिवाइस में गूगल मैप्स पिन साझा करना अनिवार्य था।

न्यायमूर्ति ओका ने फैसला सुनाते हुए कहा, "जमानत की कोई शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को ही खत्म नहीं कर सकती। हमने कहा है कि गूगल पिन जमानत की शर्त नहीं हो सकती। जमानत की कोई शर्त नहीं हो सकती जिससे पुलिस लगातार आरोपी की हरकतों पर नज़र रख सके। पुलिस को जमानत पर आरोपी की निजी ज़िंदगी में झाँकने की अनुमति नहीं दी जा सकती।" अदालत ने यह फैसला नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस की याचिका पर सुनाया, जिसने ड्रग्स मामले में जमानत की शर्त को चुनौती दी थी।

शीर्ष अदालत ने 29 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि क्या दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई शर्तों में से एक शर्त निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसमें आरोपी से कहा गया है कि वह अपने मोबाइल फोन से "गूगल पिन डालें" ताकि जांचकर्ता जमानत पर रहते हुए उसकी गतिविधियों पर नज़र रख सकें।

एक ऐतिहासिक फैसले में, नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 24 अगस्त, 2017 को सर्वसम्मति से घोषणा की थी कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।शीर्ष अदालत ने इस स्थिति पर गौर किया और कहा कि प्रथम दृष्टया यह जमानत पर रिहा आरोपी के निजता के अधिकार का उल्लंघन है।गूगल पिन साझा करने की इसी तरह की जमानत शर्तें उच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में अन्य आरोपियों पर भी लगाई हैं। शीर्ष अदालत ने अन्य आरोपियों की भी ऐसी ही जमानत शर्तों पर गौर किया है।

इस साल 8 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने रमन भुरारिया नामक व्यक्ति को ज़मानत दे दी। उन्हें शक्ति भोग फ़ूड्स लिमिटेड के खिलाफ़ कथित 3,269 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता मामले से उत्पन्न मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था।उच्च न्यायालय ने जमानत के लिए कई शर्तें लगाई थीं और उनमें से एक यह थी कि "आवेदक को अपने मोबाइल फोन से गूगल पिन लोकेशन संबंधित जांच अधिकारी को देनी होगी, जिसे उसकी जमानत अवधि के दौरान चालू रखा जाएगा । "

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