बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नारे में उन्नाव की बेटी भी है कि नहीं?| श्रीनि से संवाद
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'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' नारे में उन्नाव की बेटी भी है कि नहीं?| श्रीनि से संवाद

यूपी के बहुचर्चित उन्नाव बलात्कार कांड में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर की आजीवन कारावास की सज़ा दिल्ली हाईकोर्ट से निलंबित होने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। न्याय की कसौटी पर यह फैसला कहां खरा नहीं उतर पाया, इस पर 'द फेडरल' के एडिटर-इन-चीफ एस.श्रीनिवासन की राय जानिए।


पिछले ग्यारह में एक स्लोगन बहुत बार गूंजा है- 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ।' लेकिन उन्नाव रेप केस की पीड़िता भी किसी की बेटी है जोकि अपने न्याय के लिए अब भी संघर्ष कर रही है। उसके गुनहगार बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा कोर्ट से निलंबित हो जाने के बाद उस बेटी (पीड़िता) को अपनी सुरक्षा की चिंता सता रही है। 'द फेडरल' के स्पेशल शो 'श्रीनि से संवाद' में श्वेता त्रिपाठी से बातचीत में एडिटर-इन-चीफ एस.श्रीनिवासन का कहना है कि इस फैसले में न्याय तकनीकी आधार पर देखा गया प्रतीत होता है, जबकि इसे संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए था।

प्रश्न : कहा जा रहा है कि यह बहुत निराशाजनक फैसला है। आप फैसले में किस तरह की खामियां देख रहे हैं?

श्रीनि : इस मामले में दिल्ल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को पलटकर लोक सेवक की परिभाषा बदल दी। लोक सेवक का मतलब है सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करने वाले और जनता की सेवा में प्राधिकार प्राप्त पदों पर आसीन व्यक्ति। लेकिन यहां पर यह कहा गया कि कुलदीप सिंह सेंगर लोक सेवक नहीं है। हालांकि लोक सेवक से ज्यादा कोर्ट को यह भी संज्ञान लेना था कि वो अपने क्षेत्र में कितने प्रभावशाली हैं। सेंगर के लोकसेवक की परिभाषा से बाहर हो जाने से यह हुआ कि पॉक्सो कानून की धारा- 5 लोकसेवक द्वारा किया गया बलात्कार कोई साधारण बलात्कार नहीं माना जाता है। मतलब गंभीर किस्म का अपराध माना जाता है। चूंकि नई परिभाषा में सेंगर को लोक सेवक नहीं माना गया है तो सजा की परिभाषा ही बदल गई। बलात्कार की सजा 7 साल है और चूंकि सेंगर 7 साल की सजा पूरा कर चुके हैं। इसीलिए कोर्ट का कहना है कि उन्हें छोड़ा जाना वाजिब है। इसी आधार पर उनकी सजा निलंबित हुई है। क्योंकि इनके ऊपर और भी केस हैं, वो भी जारी रहेंगे तो उन्हें अभी जेल से छोड़ा नहीं गया है। लेकिन इस तकनीकी परिभाषा ने लोगों को आक्रोश से भर दिया है।

प्रश्न : इस मामले में राजनीतिक दबाव और पुलिस की निष्क्रियता एक सवाल बनी हुई है। सेंगर की सजा निलंबित होने के बाद अब पीड़िता की सुरक्षा बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है। इन सवालों पर क्या कहेंगे?

श्रीनि : कोर्ट ये मानता है कि जो प्रोटेक्शन पीड़िता को दिया जाना चाहिए था, वो नहीं दिया गया। पीड़िता के वकील ने भी कहा कि सुरक्षा में सीआरपीएफ तो लगाई गई लेकिन सुरक्षा के बजाय पीड़िता के लिए वो जेल जैसा हो गया। लेकिन कोर्ट का कहना है कि जो न्यायसंगत था, वही फैसला किया गया है। लेकिन कोर्ट का ये कहना कि कुलदीप सेंगर पीड़िता के घर के 5 किलोमीटर दायरे में नहीं जाएंगे, यह तो बड़ा हास्यास्पद है। कैसे भूल सकते हैं कि पीड़िता पर कई बार हमला हुआ। उसके परिवार के लोग मारे गए। पीड़िता किसी तरह से बच पाई। अगर इन सब तथ्यों को नजरअंदाज किया जा रहा है तो इसे आम जनता कैसे स्वीकार कर पाएगी।

प्रश्न : इस रेप कांड की शुरुआत से लेकर अभी तक राजनीतिक दबाव रहा है। न्याय मिलने में भी पीड़िता को काफी समय लगा। अब सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पहुंची है। क्या न्याय की कोई उम्मीद दिख रही है?

श्रीनि : उम्मीद तो करनी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट से सही न्याय मिलेगा। यह मामला सिर्फ तकनीकी आधार पर नहीं सुना जाना चाहिए बल्कि संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में सुना जाना चाहिए। कोर्ट के सामने दो याचिकाएँ थीं, एक थी पिछले जजमेंट के खिलाफ और दूसरी थी कि सेंगर की सजा को सस्पेंड किया जाए। तो जजों ने दूसरी याचिका को पहले सुना। हालांकि बेल किसी भी आरोपी का अधिकार है। वह जेल तभी भेजा जाता है, जब कोई रास्ता नहीं बचता। लेकिन वकीलों का कहना है कि बेल तभी होती है कि आरोपी या दोषी या तो बहुत बेचारा हो। दया का पात्र हो। असमर्थ हो। लेकिन पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर का मामला तो ऐसा नहीं है। वह तो बहुत ताकतवर और बहुत प्रभावशाली आदमी हैं।

प्रश्न : क्या आपको भी लग रहा है कि जिन मामलों में प्रभावशाली लोग आरोपी हैं या दोषी हैं, उन मामलो में न्याय मिलना मुश्किल होता जा रहा है?

श्रीनि : इस मामले में तो ऐसा ही संदेश जा रहा है कि आप विधायक हो जाते हैं, तो आपके ऊपर लोकसेवक की परिभाषा नहीं लगती। भले ही आपने अपराध किया है। रेप किया है। पीड़िता और उसके परिवार पर हमला करवाया है, लेकिन कानून इस तरह से नहीं देखता। जनता में संदेश तो जाएगा कि एक तरफ 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का नारा देते हैं और दूसरी तरफ उन्नाव की बेटी को न्याय नहीं मिलता। लोगों में मैसेज यह गया है कि चूंकि यूपी में चुनाव होने हैं, तो सेंगर को इसलिए छोड़ा जा रहा है। सेंगर का राजपूत जाति से होना भी एक फैक्टर माना जा रहा है।

प्रश्न : क्या कोई ऐसा कदम है जो सरकार की तरफ से उठाया जा सकता है?

श्रीनि : कुलदीप सेंगर दोषी हैं। सज़ायाफ़्ता हैं। उसके बावजूद ये सब हो रहा है, तो हमारी कानून व्यवस्था और हमारे बेटियों के प्रति रवैये को लेकर बड़ा सवाल है। इस केस को यूपी से हटाकर दिल्ली इसीलिए लाया गया कि पीड़िता को न्याय मिले। उसके बावजूद ये हो रहा है, तो बड़ा सवालिया निशाना है। सरकार की तरफ से जनता के बीच एक अच्छा मैसेज दिया जाना चाहिए था, ऐसा हुआ नहीं। बीजेपी की तरफ भी चिंता नहीं जताई गई। न ही ये कहा गया कि इस फैसले पर पुनर्विचार हो।




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